सार्सापैरिला का होम्योपैथिक उपयोग
( Sarsaparilla Homeopathic In Hindi )
(1) गुर्दे का दर्द (Renal colic); बरबेरिस तथा सार्सापैरिला की तुलना – गुर्दे के दर्द में जैसे बरबेरिस उत्तम है, वैसे सार्सापैरिला भी इस दर्द में उत्तम लाभ करती है। डॉ० हैरिंग ने गुर्दे की दर्द के संबंध में इस औषधि के अनेक गुण गाये हैं। खासकर ‘वात-रोग’ (Rheumatism) से पीड़ित व्यक्तियों के गुर्दे में पथरी बन जाने और उसके निकलने के समय होने वाले दर्द में इस से लाभ होता है। डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि यह औषधि मूत्राशय की पथरी को घोल देती है। यह मूत्र की प्रकृति को ही इस प्रकार बदल देती है कि पथरी बनना ही बन्द हो जाता है, और जो बनी होती है वह मूत्र की प्रकृति के बदल जाने से घुल-घुल कर छोटी हो जाती है। सार्सापैरिला देने से गहरे रंग का रुधिर-तथा-श्लेष्मा-मिश्रित-मूत्र जिसमें पथरी के कण मिले रहते हैं, साफ रंग का हो जाता है। जब इस औषधि से मूत्र साफ रंग का हो जाने के बाद फिर गदला होने लगे, तब इस औषधि की दूसरी मात्रा देने का समय आ गया-यह समझना चाहिये। वे लिखते हैं कि एक रोगी के मूत्राशय में पथरी इतनी बड़ी थी कि डाक्टरों ने उसे ऑपरेशन की सलाह दी। उसे डॉ० कैन्ट ने सार्सापैरिला से ठीक कर दिया। पथरी घुलकर निकल गई।
(2) पथरी हो तो पेशाब रखने से सफेद तलछट नीचे बैठ जाता है और पेशाब कर चुकने के बाद अत्यन्त दर्द होता है (सार्सापैरिला, लाइको, बरबेरिस की तुलना) – इस औषधि तथा लाइकोपोडियम की पथरी के लक्षण में भेद यह है कि लाइको में पेशाब को किसी बर्तन में रखने से लाल चूरा नीचे बैठ जाता है, इसमें लाल की जगह सफेद रेत-के-से कण पेशाब के नीचे बैठ जाते हैं। लाइको में पथरी का दर्द गुर्दे के दाहिनी तरफ से उठता है, बरबेरिस में बायीं तरफ से। बरबेरिस में नाभि के केन्द्र-स्थल से दर्द उठकर चारों तरफ फैल जाता है, सार्सापैरिला में पेशाब कर चुकने के बाद रोगी को अत्यन्त दर्द होता है।
(3) पेशाब कर चुकने के बाद कराहने का-सा दर्द – इस औषधि में पथरी के दर्द का विशेष-लक्षण यह है कि पेशाब करने से पहले या पेशाब करते समय रोगी को इतना दर्द नहीं होता जितना पेशाब करने के बाद होता है। रोगी दर्द से चिल्लाने लगता है। छोटे बच्चे जिन्हें पथरी का दर्द होता है पेशाब करने से पहले भी चिल्ला उठते हैं। इसका कारण यह है कि पेशाब के बाद जो दर्द उन्हें हुआ करता है उसकी याद आते ही वे पेशाब से पहले भी चिल्लाया करते हैं, परन्तु इसका दर्द मुख्य तौर पर पेशाब करने के बाद होता है। यह लक्षण मूत्राशय के रोग में हीरे के समान है। अगर किसी अन्य कारण से भी पेशाब रुक जाय, और यह लक्षण मिले, तो इस औषधि से अवश्य लाभ होगा। डॉ० केस ने मूत्र रुक जाने पर इस लक्षण के होने पर अनेक रोगी ठीक किये। कैन्थरिस तथा मर्क सौल में भी पेशाब के साथ दर्द का लक्षण है, परन्तु इनमें पेशाब से पहले या पेशाब करना शुरू करने के समय दर्द होता है, सार्सापैरिला में पेशाब करने के बाद दर्द होता है।
(4) रज:स्राव के दिनों में पेशाब की शिकायत नहीं रहती, फिर शुरू हो जाती है – इसका एक विशेष-लक्षण यह है कि जब रज:स्राव होता है तब पेशाब की तकलीफ, जो कोई भी हो, तब तक के लिये रुक जाती है, उन दिनों नहीं होती, परन्तु ज्यों ही रज:स्राव बन्द होता है, पेशाब की तकलीफ फिर शुरू हो जाती है, और जब तक अगला रज:स्राव नहीं आ जाता तब तक बनी रहती है।
(5) बैठकर पेशाब करने से मूत्र बूंद-बूंद आता है, खड़े होकर करने से ठीक से होता है – इसका एक विशेष लक्षण यह है कि रोगी जब बैठकर पेशाब करता है, तब बूंद-बूंद टपकता है, जब खड़ा होकर करता है तब ठीक से पेशाब होता है। स्त्रियों के संबंध में इस लक्षण का विशेष महत्व है। कॉस्टिकम, कोनायम तथा हाइपेरिकम में भी खड़े होकर रोगी आसानी से पेशाब करता है। जिंकम में रोगी सिर्फ बैठकर पेशाब कर सकता है, या उसे पेशाब के लिये पीठ की तरफ झुकना पडता है।
(6) मूत्र-नली से हवा ख़ारिज होती है – इस औषधि का एक अद्भुत लक्षण यह है कि रोगी की मूत्र-नली से हवा ख़ारिज होती है। पथरी के कारण या अन्य किसी भी कारण से मूत्राशय में श्लैष्मिक झिल्ली की सड़ांद के कारण जो गैस बनती रहती है वही हवा के रूप में मूत्र-नली से ख़ारिज होती है।
(7) बच्चों तथा बूढ़ों के सूखे के रोग (Marasmus) में – बच्चों के सूखे के रोग में गर्दन विशेष रूप में दुबली हो जाती है। शरीर की त्वचा में झोल पड़ जाते हैं। जिन बच्चों को माता-पिता के उपदंश-रोग के वंशानुगत होने से सूखा हो जाता है उनके लिये यह उत्तम औषधि है। बच्चों के अतिरिक्त वृद्ध-व्यक्तियों के लिये भी यह औषधि उपयोगी है। शरीर के सब अंग शिथिल हो जाते हैं, रुधिर का ठीक-से सब अंगों में संचार नहीं हो पाता, वैरिकोज वेन्स (Varicose veins) का रोग हो जाता है, बवासीर में नीले मस्से बन जाते हैं, मुख पर नीले धब्बे पड़ जाते हैं, हाथ-पैर की पीठ पर भी ऐसे नीले धब्बे दीखने लगते हैं। यह सब वृद्धावस्था में रुधिर के संचार की कमी के कारण होता है। सारे शरीर पर रुधिर की शिथिलता की छाप पड़ जाती है। इस अवस्था में यह औषधि लाभप्रद है।
(8) दबे हुए सुजाक से सिर-दर्द – सुजाक को ठीक करने के बजाय उसे तेज दवाओं से दबा देने पर अगर सिर-दर्द का लक्षण प्रकट हो जाय, तो इस से लाभ होता है।
(9) रोगी ठंडा भोजन, ठंडा पानी चाहता है, परन्तु शरीर के बाहर त्वचा पर गर्म सेक से आराम होता है – ठंड और गर्मी के विषय में इस औषधि का विचित्र-लक्षण यह है कि रोगी खाने को तो ठंडी वस्तुएं पसन्द करता है, ठंडा भोजन, ठंडा पानी चाहता है, परन्तु शरीर की त्वचा पर ठंडक पसन्द नहीं करता, त्वचा पर गर्म कपड़ा ओढ़ना पसन्द करता है।
(10) शक्ति तथा प्रकृति – sarsaparilla 1 से sarsaparilla 6 (नमी से रोग बढ़ता है, पेशाब करने के बाद रोग बढ़ता है; रज:स्राव के दिनों में रोग घटता है)