(डॉ घोष के अनुसार) – खांसी और यक्ष्मा आदि कुछ बीमारियों में एलोपैथिक चिकित्सा में इस दवा का बहुत अधिक प्रयोग होता है। इसके बहुत अधिक प्रयोग का कभी-कभी यह नतीजा निकलता है कि किसी के मुंह से खून आने लगता है, ऐसे मौके पर इस औषधि के प्रयोग से बहुत जल्द फायदा होता है। बहुत ज्यादा पसीना, कमजोरी, खून का घट जाना, शरीर का रंग फीका पड़ जाना, हाथ पैर ठण्डे रहना इत्यादि इस औषधि के चरित्रगत लक्षण हैं। यक्ष्मा-कास में जब पतले दस्त, खांसी, छाती में दर्द, फेफड़े से खून निकलना आदि लक्षणों के साथ इसके उपर्युक्त चरित्रगत लक्षण मौजूद रहते है, उस हालत में इसका प्रयोग पहले ही करना चाहिए। संग्रहणी रोग में कैल्केरिया हाइपोफॉस फायदा करती है। कैल्केरिया हाइपोफॉस में पेट में एक तरह का दर्द होता है, जो भोजन के ठीक दो घण्टे बाद शुरू होता है और थोडा सा दूध या कोई और चीज खा लेने से तुरन्त बन्द हो जाता है।
इन बीमारियों के अलावा कैल्केरिया हाइपोफॉस बड़े-बड़े फोड़े (big abscess) इत्यादि में जहां रोग हड्डी तक फैल जाता है, यहां तक कि हड्डी में अस्थिक्षत (नेक्रोसिस) भी हो जाता है रोगी दिनों दिन दुबला होता जाता है और खाट से लग जाता है। अस्त्र चिकित्सक को नश्तर लगाने का साहस नही होता, वहां तुरन्त इसका प्रयोग करना उचित होता है, यहां इसकी निम्न शक्ति 1x शक्ति अधिक लाभदायक होगी। रोज 4-5 मात्रा तब तक खिलानी चाहिए, जब तक कि फायदा न हो तथा इसी तरह कई दिनों तक प्रयोग करना चाहिए।
वृद्धि – शीत और वर्षा ऋतु में वृद्धि।
ह्रास – ग्रीष्म और शुष्क मौसिम में ह्रास।
मात्रा – 1x, 3x शक्ति विचूर्ण।