गलकोष के पश्चात् श्वास-नली अथवा वायु-नली (Windpipe) शुरू होती है । इसी का प्रारम्भिक-भाग ‘टेंटुआ’ अथवा ‘स्वर-यन्त्र’ (Larynx) के रूप में दिखायी देता है। यहाँ पर शोथ हो जाने पर गला बैठ जाता है। टेंटुए से आगे फेफड़ों तक जाने वाली नली को ‘श्वास-नली’ (Trachoma) कहते हैं । स्वर-यन्त्र से भी आगे गहराई में चली जाने वाली सूजन को ‘श्वास-नली का शोथ’ कहा जाता है।
प्राय: दाँत निकलते समय बच्चे की कण्ठ-नली का छिद्र बन्द होकर साँस रुक जाया करती है। इस स्थिति को ‘श्वास-नली का आक्षेप’ अथवा ‘क्रूप-खाँसी’ भी कहा जाता है । इस प्रकार की तकलीफ में साँस के साथ ही ‘घं-घं’ जैसी आवाज वाली खाँसी आती है तथा साँस रुकती है । एक रात्रि में इस रोग के अनेक दौरे हो सकते हैं । दौरों के समय चेहरा नीला हो जाता है, शरीर-गर्म रहता है तथा त्वचा सूखी हो जाती है । इसे एक प्रकार का ‘स्नायविक-रोग’ माना गया है । ‘श्वास-यन्त्र की बीमारी’ अथवा ‘खाँसी’ की श्रेणी में इसकी गणना नहीं की जाती । इस रोग के कारणों में सर्दी नहीं लगना, पाकाशय की गड़बड़ी, दाँत निकलने के कारण प्रदाह, बालास्थि-विकृति एवं माता-पिता के वंश में इस रोग का रहना आदि की गणना की जाती है । यह रोग प्राय: बच्चों को अधिक होता है । बड़ों को भी हो सकता है । इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
ब्रायोनिया 30 – श्वास-नली में दर्द, श्वास-नली के पक जाने जैसा अनुभव, बोलते समय अथवा सिगरेट पीते समय खाँसी का उठना, खाँसते समय श्वास-नली में दर्द, श्वास-नली में धुंआ-सा उठते रहना तथा ठण्डक में से गरम कमरे में आने पर खाँसी उठना-इन सब लक्षणों में हितकर है ।
कैप्सिकम 3, 6 – रात को बिस्तर पर लेटते समय स्वर-यन्त्र तथा श्वास-नली में कीड़ा रेंगने जैसी अनुभूति तथा श्वास-नली में खुरखुराहट के साथ ही, लगातार छींकें आना-इन लक्षणों में प्रयोग करें ।
स्टैनम 2, 30 – श्वास-नली में श्लेष्मा होने के कारण उसमें खाँसने के लिए खरखराहट का उठना, प्रत्येक बार खाँसने के बाद श्वास-नली के निम्न-भाग में दुखन तथा श्वास-नली से पीला, दुर्गन्धित एवं मीठा कफ निकलना-इन सब लक्षणों में लाभकर है ।
कैनाविस-सैटाइवा 3 – प्रातः-काल श्वास-नली के निम्न भाग में कड़ा बलगम होना, जो सरलता से निकाला न जा सके। बहुत अधिक खाँसने के बाद श्वास-नली में दुखन तथा अन्त में कफ का ढीला होकर निकल जाना, परन्तु उसके बाद भी लगातार खाँसी का आते रहना-इन लक्षणों में इस औषध का प्रयोग लाभकारी है ।
फास्फोरस 30 – स्वर-यन्त्र एवं श्वास-नली में दुखन के साथ ही गहराई में पड़े हुए कफ को बाहर निकालने के लिए बार-बार जोर लगा कर खाँसते रहने की आवश्यकता। कफ के बाहर न निकल पाने की अनुभूति, श्वास-नली के नीचे गहराई में छाती में खुरखुराहट होना तथा गले से कफ निकालने के लिए गहरा खाँसने का प्रयत्न करना-इन सब लक्षणों में हितकर है ।
आर्सेनिक-ऐल्बम 30 – स्वर-यन्त्र तथा श्वास-नली में जलन और खुश्की, खुरखुराहट, बलगम को बाहर निकालने के लिए गहराई में खाँसना, जलन तथा मध्य रात्रि में रोग के लक्षणों में वृद्धि होने पर इसे दें।
सल्फर 30 – श्वास-नली में निरन्तर खुरखुराहट, छाती की गहराई से सूखी अथवा बलगमी खाँसी उठना तथा रात के समय कष्ट का बढ़ जाना-इन लक्षणों में लाभकारी है।
नक्स-वोमिका 30 – स्वर-यन्त्र के निम्न-भाग में चिपटने वाला कफ, श्वास-नली में वक्षोस्थि वाले पृष्ठ-भाग में खुरखुरी होना, खाँसी उठना तथा श्वास को बाहर निकालने के साथ ही खाँसी में वृद्धि होना-इन लक्षणों में हितकर है।
कार्बो-वेज 30 – वायु-नली के निम्न-भाग में खुश्की, गला बैठ जाना, ठण्ड अथवा बरसाती मौसम में कष्ट-वृद्धि, सायंकाल अथवा बोलते समय भी कष्ट में वृद्धि, खाँसने पर भी बलगम का न निकल पाना, वृद्धावस्था की शक्ति-हीनता के कारण जीवनी-शक्ति के ह्रास से उक्त लक्षणों में वृद्धि।
कैल्केरिया-कार्ब 30 – श्वास-नली में ऐसी खुरखुराहट तथा चिरमिराहट, जैसे उस जगह कोई पंख फड़फड़ा रहा हो और उसके कारण खाँसी का उठना । श्वास-नली में किसी वस्तु के पड़े होने का अनुभव कफ के ऊपर-नीचे चले जाने जैसी प्रतीति तथा उसका बड़ी कठिनाई से ही बाहर निकल पाना-इन लक्षणों में उपयोगी है।
रोग के आक्रमण की चिकित्सा
एकोनाइट 1x – सूखी खाँसी उठते समय श्वास बन्द हो जाने की आशंका में इसका प्रयोग करें ।
इपिकाक 2x – वमन तथा बलगम में वृद्धि हो जाने के लक्षणों में इसे दें ।
सैम्बुकस 3x, 6 – भयंकर श्वास-कष्ट, बच्चे का कच्ची नींद से जग कर उठ बैठना तथा चेहरे का पीला पड़ जाना, हाँफना, श्वास खींच लेना, परन्तु उसे छोड़ न पाना तथा नाक का बन्द रहना – इन लक्षणों में हितकर है ।
ऐण्टिम-टार्ट 6 – खाँसी के दौरे के समय श्वास रुक जाने को तैयार । घरघराहट का ऐसा शब्द-जिससे ऐसा अनुभव हो, मानो बहुत-सा बलगम जमा है, परन्तु निकलता नहीं एवं स्वर-भंग के लक्षणों में इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
लैंकेसिस 30 – निद्रावस्था में खाँसी का दौरा होने पर इसका प्रयोग हितकर सिद्ध होता है ।
बेलाडोना 3x अथवा जेल्सीमियम 2x – अकड़न उत्पन्न होने के लक्षणों में इनमें से किसी भी एक औषध का प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है ।
टिप्पणी – रोग की तेजी के अनुसार उक्त औषधियों को 10-15 मिनट के अन्तर से सेवन करना चाहिए ।