शरीर के किसी भी भाग से रक्तस्राव होना, घाव में कीटाणुओं का संक्रमण हो जाना, अधिक समय तक घाव को नंगा रखना, जंग लगे यन्त्रों का घाव में प्रयोग, शरीर का कोई अंग फट जाने या छिल जाने से घाव होना, गर्भपात कराने पर बहुत अधिक रक्त निकलना, मासिक लाने वाली दवाओं का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से अधिक मात्रा में मासिक-स्राव आना, घाव में सेप्टिक हो जाना, बच्चा पैदा होने पर स्टेलाईज किये बिना डॉक्टरी यन्त्रों अथवा ब्लेड से नाल काटना, कभी-कभी तो मामूली खराश आ जाने और कुनीन का चर्म में इन्जेक्शन लगाने से खराश के स्थान या जिस स्थान पर सुई लगी है – उस मार्ग से बैसीलस टिटनेस कीटाणु शरीर में संक्रमण फैलाकर यह घातक रोग उत्पन्न कर देते हैं । इस रोग के प्रारम्भ में गले में दर्द, गर्दन अकड़ जाना, दाँत जकड़ जाना, चेहरे के पुट्ठों में ऐंठन और अकड़न आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं । बाद में रोगी टकटकी लगाकर एक ओर ही देखता रहता है और धीरे-धीरे समस्त शरीर में अकड़न उत्पन्न होकर शरीर धनुष (कमान) की भाँति टेढ़ा हो जाता है। सिर पीछे की ओर मुड़ जाता है, आँखें ऊपर चढ़ जाती हैं, शरीर ढीला और शक्तिहीन हो जाता है। ऐंठन और अकड़न से पसीना बहुत आता है। कई बार तो 108 डिग्री फारेनहाईट तक ज्वर हो जाता है। थोड़े समय के बाद टिटनेस के दौरे पड़ने लगते हैं, जिससे सिर, छाती, पीठ आदि अंग पीछे की ओर टेढ़े होकर अकड़ जाते हैं । दौरे के समय रोगी को तीव्र दर्द और कष्ट होता है। रोग बढ़ जाने पर रोगी की दशा बिगड़ जाती है तथा दौरे भी शीघ्र-शीघ्र पड़ने लगते हैं ।
टिटनेस का एलोपैथिक दवा
• रोग का सावधानीपूर्वक निरीक्षण एवं परीक्षण करने के उपरान्त ही चिकित्सा आरम्भ करें । रोग यदि तीव्र हो तो तुरन्त रोगी को राजकीय चिकित्सालय में भेज दें। तब तुरन्त सही-सही जाँच के लिए टिटनेस एन्टीटाक्सिन सीरम वयस्क रोगी को 500 इण्टरनेशनल यूनिट और बच्चों को 750 ई. यू का चर्म में इन्जेक्शन लगाकर एक घण्टे तक देख लें कि इन्जेक्शन लगाने से कोई विषैली प्रतिक्रिया तो नहीं हुई । यदि विषैली प्रतिक्रिया उत्पन्न हो जाये तो तुरन्त एड्रेनालीन का इन्जेक्शन चर्म या माँस में (रोग की अधिकता में शिरा में) लगायें । यदि टिटनेस रोग के लक्षण इस इन्जेक्शन से कम हो जायें तो इस दवा के 1 लाख यूनिट के एम्पूल का पहला इन्जेक्शन लगायें । बच्चों को आधी से चौथाई (25 से 50 हजार इण्टरनेशनल यूनिट) की मात्रा का एम्पूल का इन्जेक्शन लगायें । इसके 12 घण्टे के बाद वयस्क रोगी को 50 हजार इण्टरनेशनल यूनिट का दूसरा (दोबारा) इन्जेक्शन लगायें और बच्चे को 10 से 25 हजार ई. यू का शिरा में बहुत सावधानी से इन्जेक्शन लगायें । इसके प्रत्येक दो घण्टे बाद वयस्क रोगी को 25 हजार ई. यू के 4 इन्जेक्शन और लगायें ! इन्जेक्शन लगाने से पहले उसकी ठण्डक दूर करके ही लगायें । शिरा में इन्जेक्शन लगाने से रोग शीघ्र दूर हो जाता है।
• यदि चोट लग जाने के कारण घाव से यह रोग हुआ हो तो घाव को कीटाणुरहित करके बोरिक रुई से पोंछकर बोरिक रुई में क्रिस्टोपेन मरहम (ग्लैक्सो कम्पनी) या एम. एण्ड बी. एंटीसेप्टिक क्रीम (मे ऐण्ड बेकर कम्पनी) लगाकर घाव पर स्ट्रेप्टोसाईड पाउडर छिड़ककर ड्रेसिंग कर दें । घाव को खुला न रखें ।
• ऊपर लिखे हुए एंटीटाक्सिन सीरम के इन्जेक्शन के साथ ही पेनिसिलीन के भी इन्जेक्शन लगाते रहें। पेनिसिलीन जी क्रिस्टेलाईन 5 लाख यूनिट का माँस में इन्जेक्शन, प्रत्येक 12 घण्टे बाद लगायें। प्रोकेन पेनिसिलन 4 लाख यूनिट का इन्जेक्शन आवश्यकता पड़ने पर माँस में लगायें ।
• रोग का दौरा और मांसपेशियों की ऐंठन दूर करने के लिए पैराल्डीहाईड के 5 से 15 मि.ली.वाले एम्पूल का 1 इन्जेक्शन माँस या शिरा में लगायें और उसके बाद नार्मल सैलाइन 5 से 15 मि.ली. के एम्पूल का शिरा में इन्जेक्शन उपरोक्त दवा के उपद्रवों को दूर करने के लिए लगायें अथवा 5 मि.ली. पैराल्डीहाईड 20 मि.ली. आलिव ऑयल में घोलकर प्रत्येक 3 घण्टे के बाद ग्लीसरीन सिरिन्ज से गुदा में प्रवेश करें। इससे ऐंठन, आक्षेप, झटके लगने से आराम आ जाता है ।
• रोगी की मानसिक उत्तेजना, आक्षेप, झटकों तथा ऐंठन में लार्ज़ेक्टिल (एम. बी. कम्पनी) 2% का या 2 मि.ली. का दिन में 2-3 इन्जेक्शन माँस में लगायें।
• मस्तिष्क की बेचैनी को दूर करने के लिए काम्पोज टिकिया (रैनबैक्सी कम्पनी) 1-1 प्रत्येक 4-4 घण्टे के बाद खिलायें। रोग की अधिकता में इसी दवा का इंजेक्शन लगायें।
• ल्यूमिनाल (बायर कंपनी) 1 टिकिया प्रत्येक 4 घण्टे पर उबले हुए पानी में घोलकर पिलायें ।
• टिटनेस एंटीटाक्सिन सीरम किसी विश्वसनीय कम्पनी की दवा का प्रयोग अवधि की अन्तिम तिथि से पहले ही पत्रक के निर्देशानुसार इन्जेक्शन लगायें ।
• दौरा, कंपकंपी, दर्द आदि दूर करने, रोग के बार-बार आक्रमण करने और दर्द को रोकने के लिए मार्फिन का 11 से 22 मि.ग्रा. का एक एम्पूल चर्म या माँस में 1 इन्जेक्शन लगायें ।
• प्रोस्टैट ग्लैण्ड की मांसपेशी सिकुड़ जाने के कारण यदि मूत्र बन्द हो जाये तो मूत्र मार्ग में कैथेटर प्रवेश करके मूत्र निकाल दें।
• नाक से दूध पिलायें अथवा गुदा मार्ग से हाइड्रोग्लाइको प्रोटीन का एनिमा करें।
• रोगी को अन्धेरे कमरे में रखें । वहाँ कोई आवाज तथा शोर न हो । (प्रकाश और शोर से रोग बढ़ जाता है । रोगी के पुराने गन्दे, गले, सड़े घाव होने या एकाएक चोट से त्वचा छिल जाने पर तुरन्त ही टिटनस एंटी टाक्सिन 3 हजार यूनिट का चर्म में इन्जेक्शन लगा दें, ताकि उसको 3-4 दिन के बाद यह रोग पुन: न हो जाये ।
• मैग्नेशियम सल्फेट (बी. आई. कम्पनी) इसका एक इन्जेक्शन प्रत्येक 6 से 12 घण्टे बाद माँस में लगायें । इससे ऐंठन, दर्द एवं आक्षेप दूर हो जाते हैं ।
• जाइलीकेन मरहम 5% (एस्ट्रा आई. डी. पी. एल. कम्पनी) इसे पर्याप्त मात्रा में ऐण्ठन और दर्द के स्थान पर लगाकर मालिश करें ।
• सिक्विल इन्जेक्शन का प्रयोग भी किया जा सकता है। यह इन्जेक्शन साराभाई कम्पनी का है। इसकी टिकिया भी प्राप्य है। आक्षेप निवाराणार्थ पेण्टोथाल सोडियम, एविपान सोडियम, सोडियम एमिटाल, नेबुटाल का भी प्रयोग किया जा सकता है ।
नोट – इस रोग में एंटी टिटनेस सीरम का प्रयोग महत्वपूर्ण है। बिना इसके प्रयोग के लाभ की आशा नहीं की जा सकती है । पेनिसिलिन का प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है। एण्टी टिटनेस सीरम आई.सी. आई, एस. पी. डब्ल्यू, इवान्स, यू. डी., बी. डब्ल्यू, बी. आई और पी. डी. कम्पनियाँ निर्मित कर रही हैं ।