बच्चा पैदा होने के बाद प्रसूता स्त्री को यह ज्वर हो जाता है । जब आंवल (प्लेसेन्टा) का विषैला पदार्थ प्रसूता के रक्त में पहुँच जाता है तो यह ज्वर उत्पन्न हो जाता है । बच्चा पैदा होने के तीन दिन के बाद जच्चा (प्रसूता) को सर्दी लगकर कंपन के साथ ज्वर चढ़ जाता है, जिसका तापमान 102 से 105 डिग्री फारेनहाईट तक होता है। नाड़ी बहुत तेज, गर्भाशय के स्थान पर दर्द, जी मिचलाना, दस्त, पेट फूल जाना, स्तनों में दूध न उतरना, गर्भाशय से दूषित तरल निकलना बन्द हो जाना इत्यादि लक्षण प्रकट हो जाते हैं । रोग की अधिकता में पीड़ित स्त्री बड़बड़ाती है । पेट अधिक फूल जाने तथा समय पर उचित चिकित्सा के अभाव में रोगिणी की मृत्यु भी हो सकती है। इस रोग का कारण दूषित कीटाणुओं का संक्रमण है । प्राय: देखने में आया है कि दाई (नर्स) के गन्दे हाथों अथवा प्रसूता की गुदा से कीटाणु गर्भाशय में चले जाते हैं अथवा प्लेसेन्टा ठीक ढंग से न निकलने और प्रसवोत्तर स्राव रुक जाने से यह रोग हो जाया करता है ।
प्रसूता ज्वर का एलोपैथिक चिकित्सा
• गर्भाशय ग्रीवा को किसी एण्टीसेप्टिक दवा जैसे – लाइसोल 1 छोटा चम्मच 10 छटांक उबले हुए पानी में घोलकर उससे दिन में 2 बार डूश करें। तदुपरान्त योनि को बोरिक रुई से पोंछकर भली प्रकार साफ कर दें ।
• स्त्री के सिर और पीठ के नीचे तकिया लगा दें ताकि सिर और छाती ऊँची हो जाने से योनि मार्ग से दूषित तरल निकल जाये ।
• गर्भाशय के स्थान पर गरम टकोर करने अथवा गरम पुल्टिस बाँधने से भी रुका हुआ तरल आने लग जाता है ।
• इस रोग में सल्फा ग्रूप की और पेनिसिलीन ग्रूप की औषधियाँ विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होती हैं ।
• पेनिसिलीन इस ज्वर को दूर करने के लिए लाभकारी औषधि है, 50 हजार यूनिट का इन्जेक्शन प्रत्येक 4-4 घण्टे बाद माँस में लगायें । इस उद्देश्य हेतु क्रिसफोर (साराभाई कम्पनी) भी उत्तम है ।
अन्य औषधयों में अोरियोमायसिन, टेरामायसिन अथवा क्लोरो मायसेटिन, एक्रोमायसिन, होस्टा सायक्लिन तथा होस्टा सायक्लिन एच. (हैक्स्ट कम्पनी) का आयु तथा रोगानुसार सेवन करना परम लाभकारी है । सल्फा ग्रूप में सेप्ट्रान, सायनास्टाट, सुपरिस्टाल इत्यादि का सेवन सोडा-बाई-कार्ब के साथ पानी से करने से प्रसूत ज्वर में पीप के समान दुर्गन्धित तरल निकलता है।