विवरण – खून में श्वेत-कणों की अधिक वृद्धि हो जाने पर इस रक्ताल्पता का जन्म होता है। इसके उपसर्गों में प्लीहा, यकृत एवं लसिका-ग्रन्थियों की वृद्धि, हड्डी में दर्द, चेहरे का मलिन तथा मोम जैसा हो जाना, नाक आदि से रक्त-स्राव, शोथ तथा चर्म रोग आदि हैं। यह रोग जल्दी ही ठीक नहीं होता, परन्तु उचित-उपचार से इसके उपसर्ग दबे रहते हैं ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
आर्सेनिक-आयोड 3x – यह इस रोग की सर्वश्रेष्ठ औषध है । इसे भोजन के बाद दो ग्रेन की मात्रा में सेवन कराना चाहिए ।
आर्सेनिक-एल्बम 3x – डॉ० लिलि ऐन्थस इस औषध की राय देते हैं ।
पिकरिक-एसिड 3x – यदि उक्त बीमारी में कामोद्रेक के लक्षण हों तो इसका प्रयोग करने की सिफारिश डॉ० हयूज करते हैं। प्रति एक मात्रा एक ग्रेन दें।
नेट्रम-म्यूर 30 – डॉ० नैश के मतानुसार यह इस रोग की श्रेष्ठ औषध है । शरीर का ररंग मटमैला हो जाना, चित्त एवं खिन्नता, ठण्डक तथा धातु-विकार के लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
नेट्रम-सल्फ 3x – डॉ० ग्राउपोगल के मतानुसार इस रोग की अच्छी दवा है।
थुजा 30 – यह भी नेट्रम-सल्फ जैसी ही मानी जाती है।
कैल्केरिया-कार्ब 6 – दोनों पाँवों में सूजन, थुल-थुल शरीर, ठण्डा तथा चिपचिपा पसीना आना एवं ठण्डे पानी से स्नान करने के बाद उपसर्गों में वृद्धि – इन लक्षणों वाले रोग में इसका प्रयोग हितकर है ।
सियानोथस 2x – रक्त में श्वेत कणों की वृद्धि के साथ ही यदि तिल्ली में दर्द भी हो तो इसे देना चाहिए।
चायना Q – इस औषध के मूल-अर्क की 5-10 बूंदें दिन में दो-तीन बार देना लाभकर रहता है ।
थूजा 3x अथवा नेट्रम-सल्फ 3x – यह प्रमेह धातु-ग्रस्त लोगों की बीमारी में हितकर है ।
टिप्पणी – पौष्टिक-भोजन, विश्राम एवं खुली हवा का सेवन हितकर है। जिन लोगों को सदैव सिहरन का अनुभव होता हैं, वे प्रात:काल अपने शरीर में शराब (Wine) की मालिश भी कर सकते हैं ।