[ बेंग का छत्ता – फंगस जातीय एक तरह के पदार्थ से टिंचर तैयार होता है ] – रक्त प्रदर, मेट्रोरैजिया (जरायु से रक्तस्राव), मनोरेजिया (अतिरजः), रजःस्राव बंद होने की उमर में रजःस्राव, जरायु का अपनी जगह से हट जाना (नाभि टलना), जरायु का बढ़ना, डिम्बकोष का प्रदाह (ovaritis ), रह-रहकर बिच-बिच में रजःस्राव, प्रसव के बाद बहुत दिनों तक रक्तस्राव प्रभृति स्त्रियों की कई बीमारियों में ही इससे फायदा दिखाई देता है। विशेष लक्षणो के लिये
ऋतुस्राव का रंग चमकदार, गहरा लाल, पतले रक्त में बहुत सा थक्का-थक्का खून रहता है। ऋतु के समय इस तरह रक्तस्राव होने पर या प्रसव और गर्भस्राव के बाद या गर्भस्राव के साथ तथा ऋतु बंद हो जाने उम्र में इस तरह का रक्तस्राव होते रहने पर – अस्टिलैगो 3x लाभदायक होता है।
जरायु के रक्तस्राव में भी अस्टिलैगो का प्रयोग होता है, किन्तु रक्त परिमाण में ज्यादा नहीं गिरता, बल्कि बहुत दिनों तक थोड़ा-थोड़ा निकलता है, दो-एक दिन बंद रहने के बाद फिर रक्त दिखाई देने लगना तथा रक्तप्रदर और गर्भस्राव के बाद बहुत दिनों तक थोड़ा-थोड़ा रक्तस्राव होता रहना। जरायु का अपने स्थान से हट जाना, डिंबकोष का प्रदाह, जरायु का अर्बुद ( polypus ), जरायु के भीतर बतौड़ी ( tumour ) इत्यादि रोगों में भी इस दवा का प्रयोग होता है। मृतवत्सा यानी जिनके प्रायः गर्भस्राव हो जाया करता है उनके लिए भी यह दवा अमृत के समान फायदेमंद है, किन्तु कुछ दिनों तक धीरज के साथ इसका सेवन करना आवश्यक है।
क्रम – 3x, 6, 30, 200 वीं शक्ति से कितनी ही बार बहुत ज़्यादा फायदा होता है।