देवदारु के वृक्ष की तरह के एक प्रकार के पहाडी वृक्ष के पत्तों से इसका अरिष्ट तैयार होता है। यह डॉ० कालीकुमार बाबू की परीक्षित दवा है।
दार्जिलिंग और आसाम के चाय के बगीचों में ब्लैक वाटर फीवर नामक एक प्रकार का काला-आजर होता है, रक्त का पाखाना व रक्त का पेशाब होना ही उसका प्रधान उपसर्ग है और उसी के साथ मस्तिष्क व हृत्पिण्ड आक्रान्त होकर रोगी की मृत्यु हो जाती है। आसाई इस प्रकार के रोग की एक उत्तम औषधि है। हमारी होमियोपैथी में उक्त लक्षणों पर – एकोनाइट, बेलेडोना, टेरिबिन्थ, हैमामेलिस, क्रोटेलस इत्यादि और एलोपैथी में – कैसिया बैबियाना लिक्विड औषधि इसमें फायदा पहुंचाती है।
आसाई होम्योपैथिक दवा के मुख्य लक्षण
- भविष्य के लिये आशंका, उत्कण्ठा व निराशा का भाव।
- स्वप्न में मानो जल के ऊपर बहा जा रहा है ऐसा देखता है।
- सिर के एक तरफ जलन व चिमटी काटने की तरह दर्द।
- आँखे पीले रंग की होती हैं और पानी गिरता है।
- कान से जल की तरह तरल व बदबूदार स्राव और कान में स्टोव ( stove ) की आवाज की तरह भों-भों शब्द होता हैं।
- मुख में सड़ी बदबू और मुख व जीभ में छिला-सा घाव, जीभ फूली व लाल रंग की।
- दांतों में दर्द, मसूढ़ा फूला, उसमें काले रंग का रक्त जमा रहना।
- खांसी के समय गले में जलन, गले में श्लेष्मा, श्वासनली व अन्ननली-पथ में छोटे-छोटे दाने युक्त उद्भेद के कारण श्वास बाघायुक्त खाँसी।
- रक्त के दबाव ( ब्लड-प्रेसर ) की वृद्धि, बार-बार हृद्स्पन्दन व श्वासकष्ट।
- पाकस्थली में वायु-संचय होना, आहार के बाद पेट के ऊपरी भाग में दबाव मालूम होना।
- ठण्डी चीजें पीने और दही, खट्टी व मीठी चीजों के खाने की इच्छा, मांस व पतले दूध में अरुचि किन्तु घने दूध के लिये रुचि रहना।
- छाती में दबाव मालूम पड़ना व उस कारण श्वासकष्ट होना, यह दाहिनी छाती में अधिक, लम्बी साँस छोड़ता है।
- खाँसी के साथ कै और ओकाई आना, खाँसी प्रारम्भ में थोड़ी व सूखी, किन्तु बाद में तरल व घड-घड़ शब्द युक्त होती है तथा पीले रंग का कफ निकलता है ;
- प्लीहा व यकृत के स्थान पर दर्द।
- कभी कब्जियत और कभी उदरामय होना।
- गन्दे जल की तरह पतला मल, उसके नीचे की तलछट सफेद या पीली, अनपची वस्तुमिश्रित, सफेद या रक्तमिला आँव-शुदा मल, केवल रक्त का पाखाना होना, रक्त का रंग काला, मल त्यागने के बाद रोगी दुर्बल होकर सो पड़ता है।
- पेशाब बहुत थोड़ा, उसका रंग घुला, रक्त का पेशाब, उदरामय के साथ पेशाब बिलकुल बन्द या परिमाण में बहुत थोड़ा, पेशाब करते समय मूत्रनली में जलन, वह पेशाब करने के बाद भी रहता है।
- काम-वृत्ति का अभाव।
- ज्वर – भीतर कंपकंपी व हाथ-पैर ठण्डा होकर ज्वर आता है, अति मात्रा में पसीना होकर स्वर छुट जाता है।
क्रम – 3x, 6x, 30, 200 शक्ति।