[ मण्डूकपर्णी नामक एक तरह के छोटे लता सरीखे पौधे से मूल-अर्क तैयार होता है। कहीं-कहीं इसे ‘थुलखड़ी’ कहते हैं ] – मानसिक और शारीरक दुर्बलता तथा सभी पेशियों में चोट लगने जैसा दर्द होना – इस दवा के प्रधान लक्षण हैं। इसका रस कोढ़, उपदंश, नासूर और चर्म-रोग में लगाया जाए तो फायदा होता है। मुँह के घाव, ऐसा विसर्प-रोग जिसमे चमड़ी जली-हुई सी हो जाती है, और व्रण इत्यादि में लाभदायक है।
फीलपाव ( elephantiasis ) और कुष्ठ-रोग ( leprosy ) अच्छा करने के लिए – इस दवा का विशेष उपयोग होता है। किसी तरह के चर्म-रोग में, त्वचा का ऊपरी अंश जितनी ही ज्यादा फूला हुआ और मोटा होगा, इससे उतना ही ज्यादा फायदा होगा। सूखी-खुजली, पुराना अकौता ( एक्जिमा ), मुँहासे इत्यादि कितने ही चर्म-रोग में इससे बहुत फायदा देखने में आता है। लियुपस-रोग ( lupus : इस रोग में नाक, मुँह, पलक और होंठों में घाव हो जाता है ) भी हाइड्रोकोटाइल फायदा करती है।
कोढ़ ( leprosy ) – जहाँ पतली त्वचा पर लाल दाग फूल जाता है, उसके बाद घाव होकर चमड़ा सुन्न हो जाता है, छूने की शक्ति लोप हो जाती है वहाँ – एनाकार्डियम ज्यादा फायदा करती है। उपर्युक्त किसी भी दवा का भीतरी सेवन करते समय – उसका मूल-अर्क 20 बून्द और ग्लिसरीन 1 औंस मिलाकर मरहम बनाकर 2-1 बार लगाने से बीमारी में कुछ जल्दी फायदा होना सम्भव है। इस बीमारी में कम-से-कम 5-6 महीने तक दवा देनी पड़ती है।
स्कूकम चक ( skookum chuk ) – 1x से 3x विचूर्ण शक्ति का 2-3 मास तक उपयोग करने से बहुतों का कुष्ठ रोग अच्छा हुआ है।
पाइपर मेथिस्टिकम ( piper methysticum ) Q से 6 शक्ति – कुष्ठ-रोग में पहले चमड़ी के किसी अंश में पपड़ी-जैसी एक तह जमती है, फिर घाव हो जाता है। प्राचीनकाल के ऋषि जिस सोमरस का पान किया करते थे वह यही चीज है।
होयांग नान ( hoang nan ) निम्न शक्ति – कुष्ठरोग के घाव और चर्म रोग इससे जल्द आरोग्य हो जाते हैं। इससे कैंसर की बदबू और रक्तस्राव भी दूर हो जाता है।
फीलपा – इस रोग में कुछ ज्यादा दिनों तक और नियमित रूप से दवा देनी पड़ती है। डॉ पियर्स का कहना है – एक व्यक्ति के बाएं पैर में फीलपा हो गया था और वह पैर दुसरे नीरोग पैर की अपेक्षा प्रायः 6 इंच अधिक मोटा हो गया था ; हाइड्रोकोटाइल सेवन करने से उसे विशेष लाभ हुआ। इससे देह में बहुत ज्यादा कुटकुटी होती है और पैर बहुत ज्यादा खुजलाता है।
क्रम – Q से 3 शक्ति।