यह निश्चित समय के अन्तर से आक्रमणशील स्नायवीय सिर-दर्द, पाचन शक्ति का ह्रास, स्नायुपीड़ा, कब्ज, निरन्तर सिर दर्द, डिस्पेप्सिया इत्यादि की औषधि है। अधकपारी के सिर दर्द में पहले बाईं तरफ आक्रांत होता है और ब्रह्माण्ड प्रदेश में भारी मालूम होना, सिर में मानो कील घुस रहा है इस प्रकार का दर्द, सिर का भारी मालूम होना, वह प्रातः काल से दोपहर तक वृद्धि होना इत्यादि लक्षणों में व्यवहार होता है।
अदम्य छींक, नाक बंद, सर्दी में नाक की नोक फूल जाती है व लाल रंग का होना, नाक की जड़ में नया दर्द, वह ललाट से होकर सिर के ब्रह्माण्ड प्रदेश में जाता है। पाकस्थली का नया दर्द, वह कंधे तक फैलता है। प्यास के साथ तेज हिचकी, चबाने वाले दाँतों (molars) से बदबूदार स्राव निकलता है, दूध पीने के बाद उदरामय; मासिक अति विलंब से व अति अल्प मात्रा में स्राव होता है; अत्यधिक प्रदरस्राव – यह प्रसव के बाद व ऋतुस्राव के बाद बढ़ जाता है।
खाँसी – सूखी आक्षेपिक, गाला बैठ जाना, खाँसने पर छाती में सुई चुभने की तरह दर्द होना, रोगी खाँसी की धमक से सिर पकड़ कर बैठा रहता है, खाँसी के समय झुक कर जाँघों पर दोनों हाथ रख कर खाँसता है।
चर्मरोग – सारा शरीर खुजलाता है, गर्दन पर जोरों से खुजलाकर नोच डालने पर भी वह घटता नहीं।
श्वास – सूखी कष्टदायक खांसी, गला बैठ जाना, खांसने पर छाती में सुई गड़ने की तरह दर्द, रोगी खांसी की धमक से सिर पकड़कर बैठा रहता है। खांसी के समय जांघों पर दोनों हाथ रख कर खांसता है।
मात्रा – 3x से 6 शक्ति तक।