इस पोस्ट में हम रोगी के कोंस्टीटूशनल दवा को कैसे पता करें, होम्योपैथिक दवा का चुनाव कैसे करें, इसके बारे में एक उदाहरण के रूप में समझेंगे, तो आइयेगा समझते हैं :-
एक स्त्री जिनकी उम्र करीब 52 वर्ष चिकित्सा के लिए मेरे पास आयी। उसने कहा कि उसके पेट मे दर्द रहता है और बड़ा कष्ट अनुभव होता है । खाने के तुरंत बाद पेट मे हवा भर जाती है, धीरे धीरे पेट कुछ हल्का हो जाता है । पेट मे गड़गड़ाहट रहती है, भूख बहुत थोड़ी है परंतु पेट साफ हो जाता है। पिछले 20 वर्ष से चाय बहुत पीती रही है । वह चाहती थी कि उनके पेट के दर्द का कुछ इलाज किया जाय।
इतना भर कह देने या जान लेने मात्र से औषधि का चुनाव कैसे हो सकता था ? ये सब एक अंग, मात्र पेट – के लक्षण थे। ऐसे में हर होमियोपैथ को जिरह करके, सवाल पूछ कर रोगी के मानसिक – लक्षण, व्यापक – लक्षण, विशिष्ट – लक्षण की जानकारी लेनी होती है।
मैंने भी उनसे जिरह करके, सवाल जवाब करके यह पता लगाया कि उसके मानसिक – लक्षण क्या थे , व्यापक – लक्षण क्या थे और क्या कोई उसके रोग का विशिष्ट – लक्षण भी था या नहीं ।
इच्छा – अनिच्छा ( Desires and Aversion ) पूछने पर उसने कहा कि नमक तथा मीठा उसे बेहद पसंद है, चर्बी के खाने जैसे घी मक्खन मलाई आदि – उसे नापसंद हैं, तेज़ाबी चीज़े – खट्टी – नींबू का अचार आदि भी उसे नापसंद हैं। खट्टी चीजों से एसिडिटी हो जाती है।
उसे गर्मी की तरेंरें ( Flushes of heat ) आती हैं पसीना आने पर तबियत अच्छी लगने लगती है। वह बहुत दुबली पतली थी , जरा सी बात मैं उत्तेजित हो जाती थी।
और अधिक गहराई में पूछने पर पता चला कि वह ठंड बेहद महसूस करती थी । बसंत ऋतु में उसका रोग बहुत बढ़ जाता था। तूफान, बादल की गर्ज या गड़गड़ाहट हो तो भी उसकी तबियत गिर जाती थी।
प्रातःकाल उठने पर उसका मिज़ाज़ चिड़चिड़ा होता था। दुसरो के प्रति चिंतित रहती थी । घर मे घुसने वालो चोरों या डाकुओं का डर उसे सताया करता था । कहीं कुछ हो न जाय – यह भी डर रहता था ; भीड़ का डर, सुरंग में से गुजरे तो डर रहता था कि सांस न घुट जाए । बेसबरापन , शक्कीपन उसकी तबियत में था । थोड़ी सी बात मे गुस्सा आ जाना ,जरा सी खटकन हो तो चौंक जाना भी उसका स्वभाव था ।
आइये , अब इस स्त्री के लक्षणों पर होम्योपैथिक – दृष्टि से विचार करते हैं :-
सबसे पहली बात जिस पर हमारा ध्यान जाता है वह यह है कि रोगिणी ‘ शीत प्रधान’ (Chilly) है। इसलिए जितनी उष्णता प्रधान औषधियां हैं वे औषधियों के इस चुनाव मे निरसित हो जाती है, eliminate हो जाती है। होम्योपैथिक सिद्धांत के अनुसार शीत प्रधान रोगी के लिए शीत प्रधान औषधियों पर ही विचार कर सकते हैं तो आगे जिन लक्षणो पर हम विचार करेंगे उनमे उन्हीं औषधियों को स्थान देंगे जो शीत – प्रधान हैं।
सबसे पहले मानसिक तथा व्यापक लक्षण को देखते हैं – : मानसिक लक्षणो में इस रोगिणी में ‘भय’ मुख्य लक्षण है । भय के अतिरिक्त ‘चिंता’ ‘शक्कीपन’ ,’क्रोध’ भी हैं। ‘भय’ की औषधि कैन्ट की रिपर्टरी में दी गयी है जिनमे से शीत -प्रधान औषधियों का उल्लेख हम कर रहे हैं। धयान दीजियेगा जो औषधियां थर्ड ग्रेड की हैं – उसके आगे हम अंक नहीं दे रहे ; जो औषधियां सेकंड ग्रेड की है उनके आगे ब्रैकेट में हम ( 2) – नीचे लिख दे रहे हैं ; जो औषधियां उच्चतम ग्रेड अर्थात टॉप ग्रेड की हैं उनके आगे उनका मूल्यांकन दर्शाने के लिए हम (3) दे रहे हैं।
(a) अंधेरे का डर : कैलकेरिया (2) ; कैम्फर (2); कार्बो एनीमेलिस (2); कास्टिकम (2); रस टाक्स; स्ट्रेमोनियम (3) स्ट्रोंनटिया (2) । यहाँ बता दूँ जिनके आगे सिर्फ सेमी कोलन ही दिया है उनका मूल्यांकन भी (1) है ।
(b) भीड़ का डर – एलू ;आर्सनिक ; बैराइटा कार्ब ; कैलकेरिया कार्ब ; कॉस्टिकम ; कोनियम ; फेरम ; ग्रेफाइट्स ; हिपर ; कैलि आर्स ; कैलि बाइक्रोम ; कैलि कार्ब ; कैलि फॉस ; नैट्रम आर्स ; नक्स वोमिका (2) ; फॉस्फोरस ; प्लम्बम ; रस टॉक्स; स्टैनम।
(c) कुछ हो न जाये का डर – एलुमिना; आर्सनिक (2) ; कैलकेरिया कार्ब (2) ; कॉस्टिकम (3) ; ग्रेफाइट्स ; कैलिआर्स (2) ; कैलिफॉस ; मैगनेशिया कार्ब ; मैंगेनम ; नेट्रम आर्स ; फॉस्फोरस (3)।
(d) बंद कमरे या बंद जगह पर घुट जाने का डर – : कार्बो एनीमेलिस ; फॉस्फोरस (2) ; स्ट्रैमोनियम (2)।
(e) डाकुओ का डर – एलुमिना ; आर्सनिक(3) ; बेलाडोना; कोनियम(२) इग्नेशिया(2); मैंग कार्ब ; नैट्रम कार्ब; फॉस्फोरस(2) ; साइलीशिया ; ज़िंकम।
(f) दूसरो के लिए चिंता – आर्सनिक (2) ; बैराइटा कार्ब ; कौकुलस ; फॉस्फोरस।
(g) शक्कीपन (संदेहशील) – आर्सनिक (3) ; आरम(2); बैराइटा कार्ब(3) ; बैराइटा म्यूर ( 2); बेलाडोना (2) ; बोरैक्स (2) ; कैलकेरिया फॉस(2); कॉस्टिकम (3); कैमोमिला ; चायना ; सिमिसिफ्यूगा(2) ; कौक्यूल्स (2) ; कोनियम ; ग्रेफाइट्स ; कैलि आर्स(3) ; फॉस्फोरस(2) ; रस टॉस्क (3)।
(h) जरा सी बात पर गुस्सा आ जाना – ऐगैरिकस ; एलम(2) ; आर्सनिक (2); आरम् (2) ; बोरेक्स; कैल्केरिया कार्ब (2); कैम्फर ; कैपसिकम (2); कॉस्टिकम (2) ; कैनोमिला ; चेलिडोनियम ; चायना ; कौक्यूलस (2) ; साईंक्लेमन (2) ; ग्रेफाइट्स (2) ; नक्स वोमिका (3) ; फॉस्फोरस ; सारसापेरिला (2) ; सीपिया (2) ; स्पाई जेलिया (2) ; स्ट्रेमोनियम (2) ; जिंकम (2)।
ये सभी मानसिक लक्षण थे अब चिकित्सा के कुछ क्रियात्मक उदाहरण देखते हैं :-
मानसिक लक्षणो के अतिरिक्त कुछ व्यापक लक्षण हैं जिनकी औषधियां भी हम उनके मूल्यांकन सहित बता रहे हैं :
(a) बसंत में रोग का बढ़ना – आरम ; बैराइटा म्यूर ; बेलाडोना(2) ; कैलकेरिया कार्ब (2) ; चेलिडोनियम ; कोलचिकम (2) ; डलकामारा ; हिपर ; नक्स वोमिका (2) ; रस टॉस्क (2) ।
(b) तूफान आने पर रोग बढ़ना – ऐगैरिकस (२) ; आरम ; कॉस्टिकम ; हाईपेरिकम ; कैलिबाइक्रोम (2) ; नेट्रम कार्ब (2) ; नाइट्रिक एसिड ; फॉस्फोरस (2) ; सोरिनम (3) ; रोडोडेंड्रन (3) ; रस टॉस्क (2) ; सीपिया (2) ; साइलीशिया।
(c) चर्बी के पदार्थ अनुकूल न पड़ना – आर्सनिक (2) ; बेलाडोना ; कैल्केरिया ; कार्बो एनीमेकिस (2) ; (2) ; चायना (3) ; चिनिनम आर्स ; कोलचिकम (2); साइक्लेमेन (2) ; बेलाडोना ; हिपर (2) ; पेट्रोलियम (3) ; फॉस्फोरस ; रियूम ; रस टॉस्क ; सीपिया (2)।
(d) खट्टे पदार्थ अनुकूल न पड़ना – बेलाडोना(2) ; कौक्यूलस (2) ; फेरम (2) ; इग्नेशिया ; नक्स वोमिका ; फॉस्फोरस एसिड ; सबाडिला (3) ।
(e) मीठे की चाह – अमोनिया कार्ब(2) ; अर्जेंटम मेटैलिकम ; आर्सनिक ; बैराइटा कार्ब ; कैलकेरिया कार्ब(2) ; चायना (3) ; कैलि आर्स ; कैलि कार्ब (2) ; नेट्रम कार्ब (2) ; सीपिया (2) ।
(f) नमक की चाह – कैलकेरिया कार्ब (2) ; कैलकेरिया फॉस (2) ; कॉस्टिकम (2) ; नाइट्रिक एसिड (2) ; फॉस्फोरस (3) ; प्लम्बम (2) ।
ध्यान रखियेगा रोगिणी के शीत – प्रकृति की होने के कारण पहले हमने नेट्रम म्यूर ,पल्साटिला आदि उष्ण औषधियों का निरसन करके उन्ही औषधियों को लिया जो शीत – प्रधान हैं । इस प्रकार हमारा चुनाव का क्षेत्र सीमित हो गया। ‘भय’, ‘चिंता’ , ‘सन्देहशीलता’ , ‘क्रोध’ ‘ऋतु’ ‘इच्छा’ ‘अनिच्छा’ आदि पर भी हमने उन्ही औषधियों को लिया जो शीत-प्रधान हैं । इस प्रकार हमारे विचार क्षेत्र के लिए आर्सनिक ,कैलकेरिया कार्ब, कॉस्टिकम ,नेट्रम कार्ब ,नक्स वोमिका , फॉस्फोरस , रस टॉस्क, सीपिया – ये औषधियां ही रह गई ।
हमने जिन लक्षणो पर विचार किया है उनकी संख्या 14 है। अब देखना यह है कि किस औषधि में उक्त लक्षणों में से सबसे ज्यादा लक्षण पाए जाते है।
- आर्सनिक में उक्त 14 लक्षणो में से इसमें 8 लक्षण मिले
- कैलकेरिया में उक्त 14 लक्षणों में से इसमें 7 लक्षण मिले
- कॉस्टिकम में उक्त 14 में से इसमें 7 लक्षण मिले
- नैट्रम कार्ब में उक्त 14 लक्षणो में से 2 लक्षण मिले
- नक्स वोमिका में उक्त 14 लक्षणो में से इसमें 3 लक्षण मिले
- फॉस्फोरस में उक्त लक्षणो में से इसमें 9 लक्षण मिले
- रस टाक्स में उक्त लक्षणो में से इसमें 6 लक्षण मिले
- सीपिया में उक्त लक्षणो में से इसमें 4 लक्षण मिले
इस प्रकार हमने देखा कि आर्सनिक तथा फॉस्फोरस ये दो औषधियां इस रोगिणी की रिपर्टराइजेशन से निकलती हैं ।यह निष्कर्ष सिर्फ मानसिक तथा व्यापक (mental and general ) लक्षणो के सहारे निकाला गया है। यद्यपि फॉस्फोरस के लक्षणो में एक मूल्य अधिक है , तो भी इस बात को ध्यान में रखकर कि फॉस्फोरस का रोगी शीत प्रधान होते हुए भी पेट की तकलीफों में बर्फ के समान ठंडा पानी पीना चाहता है जो लक्षण इस रोगिणी में नही है , ऐसे में मैंने निश्चय किया कि उसे आर्सनिक 30 की तीन मात्राएं हर छह घंटे में दी जाएं परिणाम यह हुआ कि रोगिणी के पेट का दर्द जाता रहा और कुछ ही हफ्तों में वह ठीक होकर घर चली गयी।
यह उदाहरण इस बात पर प्रकाश डालता है कि व्यापक – लक्षणो – अर्थात मानसिक ,गर्मी ठंड आदि ऋतु संबंधी, भोजन के प्रति इच्छा अनिच्छा – को ध्यान में रखकर औषधि दी जाय , तो वह गुणकारी होती है।