प्रायः लोगों को यह गलतफहमी रहती है कि मांसाहार लेने से शरीर में बल बढ़ता है। लिहाजा मांसाहार लेना बलबुद्धि के लिए बहुत उपयोगी है।
एक मजेदार और गौर करने लायक बात यह है कि जिन पशुओं का मांस खाया जाता है वे पशु खुद मांसाहारी नहीं होते और जो पशु मांसाहारी होते हैं, उनका मांस खाया नहीं जाता। हाथी जैसा बलशाली, घोड़े जैसा फुर्तीला और बैल जैसा परिश्रमी प्राणी, मांस नहीं, घास-पात खाता है फिर भी ये पशु कितने बलशाली और सुडौल शरीर वाले होते हैं, जरा सोचिए। मांसाहार से शरीर में जो विकार और रोग उत्पन्न होते हैं, उन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है – शारीरिक एवं मानसिक।
शारीरिक स्वास्थ्य के मामले में मांसाहार का प्रमुख प्रभाव पड़ता है पाचन-संस्थान पर। इसका परिणाम होता है, अपच, गैस, कब्ज एवं जलन (अम्ल पित्त), क्योंकि खाया गया मांस शाकाहार की तुलना में लगभग दुगुने समय में पचता है। जैसे अनाज दो-ढाई घण्टे में पच जाता है जबकि मछली, मुर्गा, सूअर आदि का गोश्त पचने में लगभग साढ़े चार-पांच घंटे लग जाते हैं। पचने में इतनी देर लगने से कब्ज, गैस ट्रबल, हाइपर एसिडीटी, हाई ब्लडप्रेशर, हार्ट ट्रबल (दिल संबंधी परेशानियां), अनिद्रा, सन्धिवात आदि व्याधियां उत्पन्न होती हैं। लिवर पर भार पड़ने से लिवर कमजोर होता जाता है। ये व्याधियां आज संसार भर में ज्यादा हैं, क्योंकि संसार भर में मांसाहारियों की ही ज्यादा संख्या है। मांसाहार शरीर में चबीं और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ाता है जिससे मोटापा बढ़ता है और कई व्याधियां घेर लेती हैं।
सोवियत वैज्ञानिक द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, शराबी दम्पती न केवल अपने स्वास्थ्य के साथ ही खिलवाड़ करते हैं, बल्कि अपने यहां पैदा हुए शिशु से उसकी तन्दुरुस्ती छीनकर उसे एक असामान्य शिशु का जीवन ढोने की सौगात भी देते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह के सुरूर में जीवन पाने वाले शिशुओं का आई.क्यू. 30 होता है, जबकि सामान्य दम्पती के शिशु का आई.एक्यू. 100 होता है। यदि गर्भधारण करते समय मां ने शराब पी हुई है तो नवजात शिशु की हालत तो और भी दयनीय होती है। ऐसी मां का शिशु जीवन भर खुमारी ढोता है। वैज्ञानिकों का मत है कि शराबी मां अपने नवजात शिशु को दिल के मरीज और मन्द बुद्धि व्यक्ति का जीवन ढोने के लिए विवश करती है। सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में आयोजित एक गोष्ठी में प्रमुख डॉक्टरों का मत था कि शाकाहारी भोजन ही मानव जीवन को अधिक समय तक स्वस्थ और जीवित रख सकता है और लोगों में रोग से लड़ने की शक्ति का विकास करता है। एक अध्ययन के आधार पर विश्लेषण करते हए डॉक्टरों ने बताया कि अमेरिका में लगभग 50 लाख लोग शाकाहारी भोजन को ग्रहण कर चुके हैं और वहां की पूरी जनता विकासशील देशों की जनता की तरह इस ओर आकर्षित हो रही है। इसलिए भारत जैसे गर्म मुल्क के लोगों को चाहिए कि वे शाकाहारी भोजन लेने की आदत डालें। साथ ही यह भी सत्य है कि शाकाहारी भोजन लेने वाले व्यक्तियों में आत्मविश्वास ज्यादा होता है। अनेक अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि यदि शाकाहारी भोजन लिया जाने लगे, तो कैंसर जैसी भयंकर बीमारी का प्रभाव कम हो जाएगा।
तामसिक गुण का होम्योपैथिक उपचार
तामसी एवं लड़ाकू और कामी प्रवृति को रोकने में होमियोपैथिक औषधियां अत्यत कारगर है।
• क्रूरता होने पर स्त्रियों में ‘प्लेटिना‘ एवं ‘हायोसाइमस‘ और पुरुषों में ‘हायोसाइमस‘, ‘कालीब्रोम‘ एवं ‘एनाकार्डियम‘ औषधियां पहले 200 तत्पश्चात् 1000 शक्ति में कुछ खुराक लेने पर ही लाभ मिलता है।
• यदि रोगी को मांस खाने की तीव्र इच्छा रहती हो, तो ‘फेरममेट‘ एवं ‘मैगकार्ब‘ औषधियां पहले कुछ खुराक 200 शक्ति में एवं तत्पश्चात् हर सप्ताह दो-तीन खुराक 1000 (एक हजार) शक्ति में, इच्छा समाप्त होने तक लेते रहना चाहिए। मांस (भुना हुआ) खाने की तीव्र इच्छा होने पर ‘कैल्केरिया फॉस‘ औषधि 30 शक्ति में खाने पर कुछ दिन बाद फायदा होता है।
• स्त्रियों में अत्यधिक कामुकता होने पर ‘प्लेटिना‘ एवं ‘ग्रेटिओला‘ औषधियों का सेवन करना चाहिए। ‘ग्रेटिओला‘ औषधि मूल अर्क में इस्तेमाल करनी चाहिए, 10-15 बूंद औपधि एक चौथाई कप पानी में दिन में तीन बार एवं ‘प्लेटिना‘ पहले 200 में एवं तत्पश्चात् 1000 शक्ति में लेनी चाहिए।
• पुरुषों में अत्यधिक कामुकता होने पर उच्च शक्ति में ‘स्टेफिसेग्रिया‘ एवं ‘टेरेंट्यूला‘ औषधियां लेनी चाहिए। 200 अथवा 1000 शक्ति में सप्ताह में एक खुराक लें।
• ‘आर्सेनिक‘, ‘एकोनाइट‘, ‘कैमोमिला‘, ‘इग्नेशिया‘, ‘लेकेसिस‘ आदि औषधियां 30 से 200 शक्ति में अत्यंत झगड़ालू एवं क्रोधी व्यक्तियों के लिए उचित रहती हैं।