प्रात: काल पानी पीने के लाभ
नई तथा पुरानी अनेक घातक बीमारियां दूर करने का एकमात्र उपाय प्रात: काल पानी पीना है। प्रभातकाल में सूर्योदय से पूर्व उठकर, बिना मुंह धोए, बिना मंजन-ब्रश किए, प्रतिदिन करीब सवा लीटर (चार बड़े गिलास) रात का रखा हुआ पानी पी लें तांबे के बर्तन में रखा पानी और अधिक उपयोगी होता है। पानी पीने के बाद मुंह धो सकते हैं, ब्रश कर सकते हैं किंतु एक घंटे बाद तक कुछ भी न खाएं-पीएं खाने के साथ भी पानी कम ही पीएं या बिल्कुल न पीएं। खाने के साथ अधिक मात्रा में पीया गया जल आमाशयिक रसों की भोजन पर होने वाली क्रियाओं को असंतुलित कर देता है। इस कारण भोजन का ठीक से पाचन नहीं हो पाता और शरीर में रोग पनपने लगते हैं अपच, कब्ज व भूख न लगना जैसी बीमारियां लग जाती हैं। भोजन या नाश्ता करने के दो घंटे बाद ही पानी पीना हितकर रहता है। बीमार या बहुत ही नाजुक प्रवृति के लोग एक साथ चार गिलास पानी न पी सकें तो पहले वे एक-दो गिलास से आरंभ करके धीरे-धीरे बढ़ाकर चार गिलास पर आ जाएं, फिर नियमित रूप से चार गिलास पानी पीते रहें। जो लोग प्रात: काल शौच के समय अथवा कुछ भी खाने-पीने के बाद पान मसाला, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, गांजा, शराब आदि विषैली वस्तुओं का सेवन करते हैं, उनके मलावरोध (कब्जू) को दूर करने के लिए प्रात: काल का जल-सेवन अत्यंत उपयोगी है। ऐसे विषैले पदार्थों की तलब (इच्छा) लगने पर नीबू रस व नमक मिलाकर सेके गए अजवाइन और सौंफ को लेने से उपर्युक्त दोष दूर होते हैं। ऐसे दोषों से मुक्ति पाने में व मुखबास दूर करने में हरड़ भी उपयोगी रहती है। प्रात:काल सूर्योदय के बाद नीम व तुलसी के पांच-पांच पत्ते प्रतिदिन चबाकर ऊपर से थोड़ा पानी पीने पर कैंसर जैसे खतरनाक रोगों से बचा जा सकता है। नियमित रूप से प्रात:काल जल सेवन करने से निम्नलिखित नई-पुरानी तथा अन्य बीमारियों में लाभ मिलता है।
त्वचा पर झुर्रियां, सिरदर्द, लकवा (पैरालिसिस), मोटापा, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मूर्च्छा आना, निम्न रक्तचाप, कफ, खांसी, दमा, तपेदिक (टी.बी.), मधुमेह (डायबिटीज), पथरी व अन्य गुर्दा रोग, धातु स्राव, स्त्रियों की मासिक व प्रदर संबंधी समस्त बीमारियां, गर्भाशय कैंसर, अन्य स्थानों का कैंसर, ऐसिडिटी, कब्ज, अपच, भूख न लगना, शारीरिक व मानसिक विकास में कमी, बवासीर, शरीर पर सूजन, विभिन्न प्रकार के बुखार, कील-मुंहासे, फुंसी-फोड़े, वात-पित्त-कफजन्य अधिकांश रोग, जोड़ों का दर्द व गठिया आदि अनेक रोगों में प्रात: काल, नियमित रूप से जल पीने पर लाभ मिलता है। पेट व गुर्दो की संपूर्ण सफाई हो जाती है और शरीर का सारा मल व विषैले पदार्थ मल-मूत्र व पसीने द्वारा बाहर निकल जाते हैं। शरीर में स्फूर्ति भर जाती है और शरीर कांतिमय बनता है। प्रात: काल गुनगुने पानी में एक नीबू का रस व शहद (एक चम्मच) मिलाकर लेने से मोटापा दूर होता है और चेहरे पर निखार आ जाता है।
सूर्य नमस्कार
पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सीधे खड़े हो जाएं दोनों हाथों को जोड़कर सूर्य को प्रणाम करें फिर उसी मुद्रा में स्थित हो जाएं और दोनों हाथों तथा सिर से पैर तक प्रत्येक अंग को कड़ा कर लें।
दोनों हाथों को अच्छी तरह कड़ा रखते हुए ऊपर की ओर इतना ले जाएं कि पैर से हाथों तक का भाग सीधा हो जाए। कमर और छाती से ऊपर का भाग थोड़ा-सा पीछे की ओर झुका रहे।
फिर दोनों हाथों को धीरे-धीरे नीचे की ओर लाएं और दोनों पैरों को बगल में जमीन पर जमाकर सिर को घुटनों से लगाएं। ध्यान रखें कि ऐसा करते समय घुटने और कमर से पांव तक का कोई भी भाग जरा-सा भी मुड़ने न पाए। अपने बाएं पैर को झटके से पीछे ले जाएं और छाती को तानकर इसी अवस्था में स्थित रहें।
दोनों हाथों को ऊपर उठाएं और पीछे की ओर ले जाएं।
बाएं पैर को झटके के साथ आगे पहले स्थान पर लाएं और दाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। सीने को तान कर सामने की ओर देखते हुए इसी मुद्रा में स्थित रहें।
अपने दोनों हाथों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएं और छाती को तानकर निगाहें सामने रखते हुए पीछे की ओर ले जाएं।
दोनों पैरों को पीछे रखकर कमर को जहां तक हो सके ऊपर उठाएं और सारे शरीर को खींचते हुए स्थिर रहें।
दोनों पैरों और दोनों हाथों के बल पर सारे शरीर को झुकाकर इतना नीचे ले जाएं कि दोनों पैरों और सरे शरीर का भाग शरीर के ऊपर ही रह जाए।
फिर सीने को ऊपर खींचते हुए दोनों हाथों तथा पैरों के बल सारे शरीर को ऊपर उठाकर सीना और गले को पूरी तरह पीछे मोड़ते हुए स्थिर रहें।
झटके से दोनों पैरों को दोनों हाथों के बीच ले जाएं। कमर को ऊपर उठाकर पैर से कमर तक के भाग को बिल्कुल सीधा करके सिर को दोनों घुटनों से लगा कर स्थिर रहें।
दोनों हाथों को कड़ा करके ऊपर उठाते हुए वृत्ताकार घुमाते हुए सीधे खड़े हो जाएं और फिर दोनों हाथों को जोड़कर पहले की भांति पहली स्थिति में खड़े होकर नमस्कार करें।
लाभ : सीना चौड़ा होता है, भुजाएं पुष्ट हो जाती हैं, कमर पतली हो जाती है, जांधे, पिंडलियां और पैर सुडौल हो जाते हैं। चर्म रोग, कब्ज, अतिनिद्रा और आलस्य दूर हो जाते हैं, रीढ़ की हड्डी और कमर लचीली हो जाती है, कद में वृद्धि होती है, चर्बी कम हो जाती है, और ब्रह्मचर्य पालन में सहायता मिलती है।