लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) बच्चे के सूखे के रोग में नीचे से सूखना (Marasmus) – बच्चे के सूखे के रोग में एब्रोटेनम (abrotanum) औषधि की बहुत अधिक उपयोगिता है। इस औषधि के सूखे में सब से पहले नीचे के अंगों में दुबलापन आना शुरू होता है, सूखापन नीचे से ऊपर की तरफ चढ़ता है। चेहरा सब से बाद को सूखने लगता है।
सूखे के रोग में मुख्य-मुख्य औषधियां
एब्रोटेनम – सबसे पहले टांगे सूखनी शुरू होती हैं, ऊपर का धड़ बाद में।
सार्सापैरिला तथा लाइको – सबसे पहले ऊपर का भाग दुबला होना शुरू होता है, खासकर गर्दन दुबली हो जाती है, निचला भाग ठीक बना रहता है। इसके अतिरिक्त लाइको के सूखे में इस औषधि के अन्य लक्षण – जैसे 4 से 8 के बीच लक्षणों में वृद्धि आदि-रोगी में रह सकते हैं।
नैट्रम म्यूर – इसमें लाइको की ही तरह पहले ऊपर का भाग दुबला होना शुरू होता है, निचला भाग ठीक बना रहता है, ख़ासकर गर्दन दुबली हो जाती है। इसके अतिरिक्त नैट्रम म्यूर के अन्य लक्षण – जैसे नक्शा बनी-सी चित्रित जिह्वा, नमक खाने की उत्कट इच्छा, खाने के बाद थकावट, खाने के बाद सोना आदि-हो सकते हैं।
आयोडियम – इसमें सारा शरीर सूखता जाता है, मुँह पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। पुष्टिकारक भोजन खाने पर भी बच्चा सूखता जाता है। दिन भर खाने को मांगता हैं। खाने के बाद तकलीफों को भूल जाता है इसका रोगी पेट भर जाने के बाद नैट्रम म्यूर की तरह थकावट नहीं, आराम अनुभव करता है।
सिफ़िलीनम – इसमें भी सारा शरीर क्षीण हो जाता है, बाल झड़ने लगते हैं, सूर्यास्त से सूर्योदय तक रात्रि के समय रोगी के लक्षण बढ़ जाते हैं।
अर्जेन्टम नाइट्रिकम – इसका भी सारा शरीर सूख जाता है, मुँह पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। सूखे-रोग में मिठाई खाने की इच्छा प्रबल होती है। मीठे के लिये विशेष रुचि इस औषधि का प्रधान लक्षण है।
कैलकेरिया कार्ब – इस औषधि के सूखे-रोग में सिर और पेट बहुत बड़े होते हैं, गर्दन और पैर बहुत पतले होते हैं। सोने पर सिर पर पसीना बहुत आता है। अंडे खाने की इच्छा प्रबल होती है। शरीर थुलथुला होता है। पसीने से खट्टी बू आती हैं। बच्चे को जहाँ बैठा दिया जाय वहीं पड़ा रहता है, चलना-फिरना जल्दी नहीं सीख पाता। जिन लोगों के यहां अंडा नहीं खाया जाता वहां बच्चा चाक, मिट्टी खाया करता है।
इथूज़ा – इस औषधि के सूखे में बच्चा दूध पीते ही उलट देता है। सूखे के लक्षणों में दूध को पेट में न रख सकने के लक्षण में इथूज़ा औषधि उपयोगी है।
एण्डिटम क्रूड – इस औषधि में भी बच्चा दूध या भोजन की उल्टी कर देता है, परन्तु उसके साथ पतले दस्त भी आते हैं, जीभ पर सफेद लेप रहता है, और बच्चा चिड़चिड़ा होता है।
बैराइटा कार्ब – सूखे की अन्य शारीरिक-अवस्थाओं के साथ अगर बच्चे का मानसिक-विकास भी बौनापन लिये हो, शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार से बच्चा बौना हो, अविकसित हो, और गले तथा अन्य स्थानों में गिल्टियां हों, तो यह औषधि अच्छा काम करती है।
सिना – अगर सूखे के साथ बच्चे की गुदा में खुजली होती हो, बिस्तर में पेशाब कर देता हो, पेट में कृमि हों, बार-बार नाक को ऊँगली से खुजलाता हो, अत्यंत चिड़चिड़ा स्वभाव हो, झूले में लगातार झुलवाना चाहता हो, तो सूके में इस औषधि की स्मरण करना चाहिये।
पैट्रोलियम – सूखे में अगर बच्चे को ऐसे छसत आते हों तो कि वह रात में तो ठीक रहता हो और दिन में दस्तों से परेशान रहता हो, तो इस विलक्षण-लक्षण में पैट्रोलियम काम देता है। इसके अतिरिक्त रोगी के सांस और मल से प्याज की गन्ध आती है, ठंडी हवा से कतराता है और उसमें एग्जीमा की प्रवृत्ति होती है।
फॉसफोरस – इसके सूखे में ऐसे दस्त आते हैं जैसे नल से पानी एकदम झरे।
साइलीशिया – बड़ा सिर और सारा शरीर सूखा हुआ, सोने पर माथे पर पसीना और शरीर सूखा।
सलफर – सूखे में इस औषधि की अन्य औषधियों की अपेक्षा अधिक आवश्यकता पड़ती है। सलफर का रोगी अत्यन्त गन्दा, मलिन होता है। जगह-जगह फोड़े-फुसियां, ग्रन्थियां बढ़ी हुई, सख्त कब्ज या लगतार कै-दस्त, शरीर से बदबू आना-ये ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। सब अंग सूखते जाते हैं, पेट फूलता जाता है, पेट में जलन होती है, गुड-गुड होती है, गर्दन, पीठ, छाती की मासपेशियां और सब अंग सूखते जाते हैं, पेट की मांसपेशियां भी सूखती है परन्तु पेट फूल जाता है।
(2) एक बीमारी के दबने से दूसरी बीमारी का खड़े हो जाना (Metastasis) – प्राय: देखा जाता है कि जब एक बीमारी हटती है तब दूसरी बीमारी उठ खड़ी होती है। ऐसी स्थिति में एब्रोटेनम लाभ करता हैं। उदाहरणार्थ
(i) रोगी को यदि पतले दस्त आते रहें तो दर्द कम हो जाता है और अगर कब्ज हो जाय तो दर्द बढ़ जाता है।
(ii) कर्णमूल (Mumps) की सूजन दब जाने से पुरुषों में पाते तथा स्त्रियों में स्तन की सूजन हो जाती है।
(iii) मालिश द्वारा गठिये के दब जाने से दिल की तकलीफ हो सकती है।
(iv) गठिया या दस्त ठीक होने पर बवासीर के लक्षण उभर आते हैं।
(v) दस्त एकदम बन्द कर देने भर गठिया हो जाता है।
(3) एब्रोटेनम और पल्सेटिला में भेद – एक रोग के हटने पर दूसरे रोग के प्रकट हो जाने में एब्रोटेनम और पल्सेटिला दोनों काम आते हैं, परन्तु इन दोनों में भेद यह है कि जहाँ एब्रोटेनम में एक रोग के दबने से दूसरा जो रोग पैदा होता है उसका पहले रोग से कोई सम्बन्ध नहीं होता, वहाँ पल्सेटिला में जो रोग दबा है वही दूसरी स्थान में चला जाता है। उदाहरणार्थ, एब्रोटेनम में दस्त दबकर गठिया हो सकता है, बवासीर हो सकती है; कर्णमूल की सूजन दब कर पोते बढ़ सकते हैं। इस प्रकार जो रोग पैदा हो जाता है उसे एलोपैथ एक नया रोग कहते हैं, परन्तु होम्योपैथी में इसे नया रोग न कह कर पुराने रोग का ही रूपान्तर मानते हैं। पल्सेटिला में गठिये का दर्द जब अपना स्थान बदलता है, तब एक जोड़ से दूसरे जोड़ में चला जाता है, अगर सूजन है तो एक गिल्टी से दूसरी गिल्टी में चली जाती है, अगर दर्द है तो एक अंग से दूसरे अंग में चला जाता है पल्सेटिला में रोग वही रहता है, केवल स्थान बदलता है: एब्रोटेनम में रोग अपना रूप ही बदल देता है, एलोपैथिक परिभाषा में पहला रोग दब कर एक नया रोग बन जाता है, यद्यपि होम्योपैथी के अनुसार वह नया रोग न होकर पुराने रोग का ही रूपान्तर होता है।
(4) इस औषधि के अन्य लक्षण
(i) बच्चों की अण्ड-वृद्धि (Hydrocele) में यह औषधि लाभ करती हैं।
(ii) बच्चों की नाल से खून बहने को यह रोकती है।
(iii) बच्चों की नकसरी में यह लाभप्रद है।
(5) शक्ति, प्रकृति, तथा संबंध – 3 से 30; औषधि ‘सर्द’ – Chilly – प्रकृति के लिये है। प्लुरिसी में एकोनाइट और ब्रायोनिया के बाद अच्छा करता है।