लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति
(1) भय के कारण बीमारियां
(2) घबराहट तथा बेचैनी
(3) खुश्क-शीत को कारण यकायक रोग
(4) शीत से शोथ की प्रथमावस्था में एकाएकपना और प्रबलता
(5) जलन और उत्ताप
(6) अत्यन्त प्यास
(7) शीत द्वारा दर्द-स्नायु-शूल
लक्षणों में कमी (Better)
(i) खुली हवा से रोग में कमी
लक्षणों में वृद्धि (Worse)
(i) शाम तथा आराम के समय
(ii) गर्म कमरे में रोग-वृद्धि
(iii) बिछौने से उठने पर रोग-वृद्धि
(iv) रोगाक्रान्त अंग की तरफ लेटने से
(1) भय के कारण बीमारियां – एकोनाइट का मुख्य तथा प्रबल लक्षण ‘भय’ है। किसी भी रोग में ‘भय’ अथवा ‘मृत्यु के भय’ के उपस्थित रहने पर इसका प्रयोग आवश्यक हैं। मैटीरिया मैडिका की किसी अन्य औषधि में भय का लक्षण इतना प्रधान नहीं है जितना इस औषधि में। उदाहरणार्थ –
सड़क पार करने से भय खाता है – इसका रोगी सड़क पार करते हुए डरता हैं कि कहीं मोटर की लपेट में न आ जाय। वैसे तो सब – कोई मोटर की लपेट में आते हुए डरेगा, परन्तु एकोनाइट का रोगी बहुत दूर से आती हुई मोटर से भी भय खा जाता है।
भीड़ में जाने से डरना – रोगी भीड़ में जाने से, समाज में जाने से डरता है, बाहर निकलने में भय खाता है।
मृत्यु की तारीख बतलाता है – इस रोगी का चेहरा घबराया हुआ रहता है। रोगी अपने रोग से इतना घबरा जाता हैं कि जीवन की आशा छोड़ देता है समझता है कि उसकी मृत्यु निश्चित है। कभी-कभी अपनी मृत्यु की तारीख तक की भविष्यववाणी करता है। डॉक्टर के आने पर कहता है: डाक्टर, तुम्हारा इलाज व्यर्थ है, मैं शीघ्र ही अमुक तारीख को मर जाने वाला हूँ। घड़ी को देख कर कहता है कि जब घड़ी की सूई अमुक स्थान पर आ जायगी तब मैं मर जाऊँगा।
प्रथम प्रसूति-काल में लड़की डर के मारे रोती है – जब नव-विवाहिता लड़की प्रथम बार गर्भवती होती हैं तब माँ को पकड़ कर रोती है, कहती है: इतने बड़े बच्चे को कैसे जानूंगी, मैं तो मर जाऊंगी। उसे एकोनाइट 200 की एक खुराक देने से ही उसका भय जाता रहता है और चित्त शान्त हो जाता है।
भय से किसी रोग का श्रीगणेश – जब किसी बीमार का श्रीगणेश भय से हुआ हो तब एकोनाइट लाभप्रद है।
भूत-प्रेत का डर – बच्चों को अकारण भूत-प्रेत का भय सताया करता है। अन्य कारणों से भी बच्चे, स्त्रियां तथा अनेक पुरुष अकारण भय से परेशान रहते हैं। इन अकारण-भयों को यह औषधि दूर कर देती है।
भय में एकोनाइट तथा अर्जेन्टम नाइट्रिकम की तुलना – इन दोनों औषधियों में मृत्यु-भय है। दोनों रोगी कभी-कभी अपने मृत्यु-काल की भविष्यवाणी किया करते हैं। दोनों भीड़ से डरते हैं, घर से निकलने से डरते हैं। अर्जेन्टम नाइट्रिकम की विशेषता यह है कि अगर कुछ काम उसे करना हो, तो उससे पहले ही उसका चित्त घबरा उठता है। किसी मित्र को मिलना हो, तो जब तक मिल नहीं लेता तब तक घबड़ाया रहता है: गाड़ी पकड़नी हो तो जब तक गाड़ी पर चढ़ नहीं जाता तब तक परेशान रहता है; अगर व्याख्यान देने उसे जाना है तो घबराहट के कारण उसे दस्त आ जाता है, शरीर में पसीना फूट पड़ता है। आगामी आने वाली घटना को सोच कर घबराये रहना, उस कारण दस्त आ जाना, पसीना फूट पड़ना, उस कारण नींद न आना अर्जेन्टम नाइट्रिकम का विशेष लक्षण है। ऊंचे-ऊंचे मकानों को देखकर उसे चक्कर आ जाता है। एकोनाइट ठंड से बचता है, अर्जेन्टम नाइट्रिकम ठंड को पसन्द करता है। अर्जेन्टम नाइट्रिकम ठंडी हवा, ठंडे पेय, बर्फ, आइसक्रीम पसन्द करता है। पल्सेटिला की तरह बन्द कमरे में उसका जी घुटता है, एकोनाइट में ऐसा नहीं होता। अर्जेन्टम का भय ‘पूर्व-कल्पित भय’ (Anticipatory) है, एकोनाइट का भय हर समय रहने वाला भय है।
भय में एकोनाइट तथा ओपियम की तुलना – भय से किसी रोग का उत्पन्न हो जाना एकोनाइट तथा ओपियम इन दोनों में है, परन्तु भय से उत्पन्न रोगी प्रारंभिक अवस्था में एकोनाइट लाभ करता है, परन्तु जब भय दूर न होकर हृदय में जम जाय और रोगी अनुभव करे कि जब से मैं डर गया हूँ तब से यह रोग मेरा पीछा नहीं छोड़ता, तब ओपयिम अच्छा काम करता है। इस लक्षण के साथ ओपियम के अन्य लक्षणों को भी देख लेना चाहिये।
(2) घबराहट तथा बेचैनी – भय और घबराहट, ये दोनों एक-दूसरे से क्रमशः हल्के शब्द हैं। यह जरूरी नहीं कि रोगी में मृत्यु का भय ही हो, मृत्यु का भय तो सीमा की बात है, उससे उतर कर रोगी में घबराहट (Anxiety) तथा बेचैनी (Restlessness) हो सकती है। घबराहट में मृत्यु का भय अन्तर्निहित रहता है, यह मानसिक है, और इसी कारण घबराहट से बेचैनी होती है, यह शारीरिक है। बेचैनी की तीन मुख्य औषधियां बतलाई हैं – वे हैं, एकोनाइट, आर्सेनिक तथा रस-टॉक्स। इन्हें बचैनी का त्रिक कहते हैं।
बेचैनी में एकोनाइट, आर्सनिक तथा रस टॉक्स की तुलना – एकोनाइट का रोगी मानसिक घबराहट तथा शारीरिक बेचैनी के कारण बार-बार करवटें बदलता है, परन्तु उसके शरीर में पर्याप्त शक्ति बनी रहती है। वह कभी उठता है, कभी बैठता है, कभी लेट जाता है, किसी तरह से उसे चैन नहीं मिलता एकोनाइट के रोगी की बेचैनी मन तथा शरीर दोनों में बनी रहती है यद्यपि उसकी शारीरिक-शक्ति में ह्रास नहीं होता। आर्सेनिक के रोगी का शरीर अत्यन्त कमजोर हो जाता है, शक्तिहीन हो जाता है, उसकी बेचैनी मानसिक अधिक होती है जिसे घबराहट कहा जा सकता है। आर्सेनिक का रोगी शारीरिक-दृष्टि से अत्यन्त कमजोर होने पर भी मानसिक-घबराहट तथा बेचैनी के कारण बिस्तर पर इधर-उधर करवटें बदलता रहता है इसलिये उसे कहीं चैन नहीं पड़ता। रसटॉक्स के रोगी को शारीरिक कष्ट अधिक होता हैं, शरीर की मांसपेशियों में दर्द होता है और इसी कारण वह करवटें बदलता है और इस प्रकार उसे कुछ देर के लिये आराम मिलता है। क्योंकि रस टॉक्स के लक्षणों में हिलने-जुलने से आराम होना पाया जाता है। इस प्रकरण में यह भी ध्यान रखना चाहिये कि बिस्तर सख्त मालूम होने के कारण बार-बार करवटें बदलते रहना और जिस तरफ भी लेट उस तरफ बिस्तर सख्त ही मालूम देना आर्निका में पाया जाता है।
भय, क्रोध, अपमान से होने वाले रोगों में एकोनाइट, कैमोमिला तथा स्टैफिसैग्रिया की तुलना – अगर शारीरिक अथवा मानसिक रोग का कारण ‘भय’ (Fright, Fear) हो तब एकोनाइट से लाभ होता है, अगर इसका कारण ‘क्रोध” (Rage, Anger) हो तब कैमोलिमा से लाभ होता है, अगर इसका कारण ‘अपमान’ (Insult, Grievance) हो तब स्टैफिसैग्रिया से लाभ होता है। भय, क्रोध, अपमान से मनुष्य को मानसिक रोग ही नहीं, दस्त, पीलिया आदि शारीरिक रोग भी हो जाया करते हैं।
(3) खुश्क-शीत के कारण यकायक बीमारियों का हो जाना – शीत दो प्रकार का हो सकता है, नमी वाली हवा का शीत, और खुश्क हवा का शीत। सूखी ठंडी हवा के शीत से यकायक जो रोग उत्पन्न हो जाते हैं, उन सबमें एकोनाइट विशेष लाभप्रद है। नमीदार ठंडी हवा के शीत से जो रोग उत्पन्न होते हैं उनमें डलकेमारा, रस टॉक्स और नैट्रम सल्फ लाभप्रद हैं। किस प्रकार के व्यक्तियों को खुष्क-शीत आसानी से आ घेरता है? इस विषय में अनुभव बतलाता है कि मोटे-ताजे, रक्त-प्रधान बच्चों तथा व्यक्तियों को खुश्क-शीत एकदम आ पकड़ता है, दुबले-पतले बच्चों पर इसका आक्रमण एकदम नहीं होता, धीरे-धीरे होता है। शीत का एकदम और प्रबल वेग से आक्रमण इसका विशेष लक्षण हैं।
मोटे-ताजे तथा दुबले-पतले लोगों पर जुकाम में खुश्क-शीत का आक्रमण – अगर मोटा-ताजा व्यक्ति हल्के कपड़े पहन कर बाहर जाने से खुश्क-शीत से पीड़ित होगा, तो उसे उसी रात को जुकाम हो जायगा; अगर कोई व्यक्ति गर्म कोट पहनने के कारण सर्दी में निकलने से पसीना निकलने पर सर्दी खा जायगा, तो उसे कुछ दिन बाद जुकाम होगा। पहले व्यक्ति को मोटा-ताजा होने और तन्दुरुस्त होने पर सर्दी खाकर जुकाम हो जाने के कारण एकोनाइट दिया जायगा, दूसरे व्यक्ति को ठंड लगने के कुछ दिन बाद जुकाम होने के कारण कार्बोवेज या सल्फर दिया जायगा क्योंकि एकोनाइट का आक्रमण एकदम से होता है। जुकाम में कार्बोवेज तथा सल्फर देते हुए इनके अन्य लक्षणों पर भी ध्यान देना होगा। कार्बोवेज के रोगी को अधिक कपड़े पहनने के कारण पसीना आने पर सर्दी खा जाने से जुकाम हो जाता है, एकोनाइट के रोगी को कम कपड़ा पहनने के कारण सर्दी लग जाने से जुकाम हो जाता है -पहले में धीरे-धीरे, दूसरे में जल्दी-जल्दी।
शीत से गठिये का आक्रमण – यह औषधि पुराने गठिया रोग में तो काम नहीं देती, परन्तु शीत में लम्बा सफर करने पर, ठंडी हवा के लगने से अगर जोड़ों में दर्द हो जाय, ज्वर हो और साथ बेचैनी हो तो एकोनाइट लाभप्रद है।
(4) शीत के शोथ (Inflammation) की प्रथमावस्था में एकाएकपना और प्रबलपना – क्योंकि एकोनाइट में शीत से रोग का होना एक प्रधान कारण है, इसलिये शीत-जन्य रोगों में इसका विशेष उपयोग होता है। शीत से शोथ हो जाता है, इसलिये प्राय: कहा जाता है कि शोथ की प्रथमावस्था में एकोनाइट देना चाहिये। शोथ की प्रथमावस्था में एकोनाइट देने को कहा जाता है, परन्तु यह बहुत अच्छी सलाह नहीं है। शोथ की प्रथमावस्था में एकोनाइट तभी देना चाहिये जब शीत का एकाएक तथा प्रबल वेग से आक्रमण हो। शोथ के अतिरिक्त यह भी प्राय: कहा जाता है एकोनाइट ज्वर की दवा है। यह भी भ्रमात्मक विचार है। एकोनाइट उसी ज्वर में दिया जाना चाहिये जो शीत के एकाएक आक्रमण से, प्रबल वेग से आया हो। एकोनाइट औषधि के विषय में ठीक ही कहा है कि यह तूफान की तरह आता है और तूफान की तरह ही शांत हो जाता है। ऐसे ही शोथ में, ज्वर में तथा अन्य रोगों में यह लाभप्रद है।
शीत से आँख की सूजन की प्रथमावस्था में – प्राय: सर्दी लगने से आँख एकदम सूज जाती है, लाल हो जाती है। यह आँख की सूजन इतनी अचानक होती है कि समझ नहीं पड़ता कि एकाएक यह कैसे हो गई। इस सूजन में आँख से केवल पानी निकलता है, पस नहीं। इसी को शीत से सूजन की प्रथमावस्था कहा जाता है। सूजन की प्रथमावस्था के बाद सूजन की जो अगली अवस्थाएँ हैं, जिनमें सूजन का परिपाक हो जाता है, पस पड़ जाती हैं, उनमें एकोनाइट काम नहीं देता। आँख की सूजन में एकाएकपन और प्रबलपन – ये एकोनाइट के मुख्य लक्षण हैं।
शीत से ज्वर की प्रथमावस्था में – जो ज्वर धीमी गति से आये, लगातार बना रहे उसमें यह औषधि उपयुक्त नहीं है। एकोनाइट का तो रूप ही प्रबल वेग से आंधी की तरह आना और उसी की तरह एकदम शांत हो जाना है। इसलिये टाइफॉयड जैसे ज्वरों में यह औषधि अनुपयुक्त है। ज्वर को शांत करने में एकोनाइट ने ऐसा नाम पाया है कि एलोपैथ भी ज्वर में इस औषधि को दिया करते हैं। साधारण-ज्ञान के होम्योपैथ भी इसी राह चलते हैं। परन्तु यह गलत तरीका है। मलेरिया आदि में भी इससे कोई लाभ नहीं होता क्योंकि उसमें चढ़ना-उतरना और फिर अपने समय पर चढ़ना पाया जाता है जो एकोनाइट में नहीं है। एकोनाइट उसी ज्वर में उपयुक्त है जो शीत के कारण या पसीने के शीत से दब जाने के कारण एकदम आक्रमण करता है, प्रबल वेग से आक्रमण करता है, आंधी की तरह, भूचाल की तरह आता है। अगर इस ज्वर की एकोनाइट दवा है, तो एक रात में ही ज्वर उतर जायेगा। बिना इन सब बातों को सोचे ज्वर में एकोनाइट देने से कभी-कभी नुकसान की भी संभावना रहती है। बीमार का इलाज करते हुए केवल इस बात पर ही ध्यान नहीं देना होता कि रोगी में कौन-कौन से लक्षण हैं, इस बात पर भी ध्यान देना है कि उसमें कौन-से लक्षण नहीं हैं। एकोनाइट के ज्वर में एकाएकपन, अचानकपन तथा प्रबल वेग-ये लक्षण हैं, और धीमे-धीमे ज्वर होना, और ज्वर का लगातार बने रहना-ये लक्षण नहीं है।
ज्वर में एकोनाइट तथा बैलेडोना की तुलना – ज्वर में एकोनाइट तथा बैलेडोना दोनों उपयुक्त हैं परन्तु कई चिकित्सक ज्वर में एकोनाइट और बैलेडोना दोनों को क्रमश: दे देते हैं, यह ठीक नहीं है। अगर गहराई से देखा जाय तो इन दोनों औषधियों की भिन्नता स्पष्ट हो जाती है। दोनों में त्वचा में गर्मी का लक्षण एक-समान है, परन्तु बैलेडोना में एकोनाइट की अपेक्षा बाहरी त्वचा की गर्मी अधिक होती है, और ढके हुए अंगों पर पसीना आता है, एकोनाइट में जिस तरफ रोगी लेटा हुआ होता है उधर पसीना आता है। एकोनाइट का रोगी बेचैनी से, और यह सोचकर कि मैं मर जाऊंगा बिस्तर में इधर-उधर लोटता है, बैलेडोना के ज्वर में रोगी अर्ध-निद्रित अवस्था में पड़ा रहता है और नींद में उसके अंगों का स्फुरण होता है। एकोनाइट में डिलीरियम नहीं होता, बैलेडोना में डिलीरियम हो जाता है। एकोनाइट के गर्म कमरे में रहने से रोग में वृद्धि होती है, बैलेडोना के रोगी को गर्म कमरे में रहने से आराम मिलता है। एकोनाइट का रोगी थोड़ी-थोड़ी देर में अधिक परिमाण में पानी पीता है, बैलेडोना का रोगी थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है। एकोनाइट का रोगी सारा शरीर खुला रखना पसन्द करता है, बैलेडोना का रोगी शरीर को ढांक कर रखना पसन्द करता है। अगर इन दोनों औषधियों को ज्वर में क्रमश: देने से ज्वर छूट जाता है, तो इसका कारण यह नहीं है कि ज्वर इसलिये छूटा है क्योंकि दोनों दवाएं एक दूसरे के बाद दी गई हैं, परन्तु इसका कारण यही है इन दोनों में से जो दवा उपयुक्त थी उसने रोग को शांत कर दिया, और दूसरी दवा ने रोग के शीघ्र शांत होने में कुछ बाधा ही डाली। अगर इन दोनों में से लक्षणों के अनुसार ठीक दवा दी जाती तो अब की अपेक्षा ज्वर पहले ही टूट जाता।
शीत से कान के शोथ की प्रथमावस्था में – जैसे आँख का शोथ अचानक, एकदम तथा प्रबल वेग से होता है वैसे ही सर्दी लगने से कान का शोथ भी आचानक, एकदम तथा प्रबल वेग से होता है जिसमें एकोनाइट उपयुक्त औषधि है। बालक बाहर सर्दी में गया है। उसके तन पर काफी कपड़े नहीं थे। घर आते ही कान पर हाथ रख कर चिल्लाने लगता है, या दिन को बाहर सर्दी में गया था, शाम तक कर्ण-शूल प्रारंभ हो जाता है। आचानक और वेग इस शोथ के लक्षण हैं।
शीत से एकाएक निमोनिया के प्रथम आक्रमण में – अगर रोगी को ठंड लगने से यकायक निमोनिया का आक्रमण हो जाय, उसके चेहरे पर घबराहट और बेचैनी दिखे, रोगी भला-चंगा-तगड़ा था, परन्तु एकदम निमोनिया का शिकार हो गया, रोगी कहता है – ‘मैं अब बच नहीं सकता’ – मृत्यु-भय और बेचैनी उसके चेहरे पर अंकित होती है, छाती में सूई के छेन का-सा दर्द होता है, किसी करवट लेट नहीं सकता, खांसते ही चमकीला सर्वथा लाल रंग का खून निकलता है – ऐसे यकायक तथा प्रबल वेग के निमोनिया के आक्रमण में शुरू-शुरू में एकोनाइट लाभदायक है।
शीत द्वारा पेट की एकाएक शिकायतों में – सर्दी लगने से, अत्यन्त ठंडे, बर्फीले जल में स्नान करने से एकाएक पेट में बड़ी जोर का दर्द उठ खड़ा हो सकता है। इस सर्दी के पेट में बैठ जाने से भयंकर दर्द, उल्टी, खून की उल्टी आदि उपद्रव उठ खड़े होते हैं। उस समय रोगी कटु पदार्थ खाना चाहता है। पानी के सिवा उसे सब कड़वा लगता है। इस प्रकार की पेट की असाधारण अवस्था में जिसका मुख्य कारण पेट में शीत का बैठा जाना, सहसा आक्रमण होना, वेग पूर्वक आक्रमण होना है – यह एब एकोनाइट का लक्षण है। इन लक्षणों के साथ घबराहट, बेचैनी, मृत्यु-भय भी हो सकता है।
(5) जलन – इसमें ‘जलन’ एक विशेष लक्षण है। हर प्रकार के दर्द में जलन होती है। सिर में जलन, स्नायु-शिरा के मार्ग में जलन, रीढ़ में जलन, ज्वर में जलन, कभी-कभी ऐसी जलन जैसे मिर्च लग गई हो।
(6) अत्यन्त प्यास – इसका रोगी कितना ही पानी पीता जाय उसकी प्यास नहीं बुझती। आर्सेनिक का रोगी बार-बार किन्तु थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है; ब्रायोनिया का रोगी देर-देर बाद बहुत-सा पानी पीता है; एकोनाइट का रोगी बार-बार, बहुत-सा पानी पीता है।
शीत द्वारा गले की सूजन (टॉन्सिल) में जलन और प्यास – गले की सूजन या (टॉन्सिल) बढ़ जाने पर निगलना कष्ट प्रद होता है, परन्तु इतने से हम किसी औषधि का निर्णय नहीं कर सकते। हां, अगर रोगी रक्त-प्रधान हो, तन्दुरुस्त हो, ठंडी हवा में सैर के लिये निकला हो, देर तक खुश्क, शीत-प्रधान वायु में रहा हो, वह अगर उसी दिन की आधी रात गये गले में तीव्र जलन अनुभव कर उठ बैठे, गले में थूक निगलने में दर्द अनुभव करे, तेज बुखार हो, ठंडा पानी पीये और बस न करे, घबराहट और बेचैनी महसूस करे, तब एकोनाइट उसे एकदम स्वस्थ कर देगा। सिर्फ इतना कह देना कि गला लाल है – एकोनाइट देने के लिये पर्याप्त कारण नहीं है। गले के जिस रोग की हमने चर्चा की उसमें व्यक्ति रक्त-प्रधान है, उस पर खुश्क-शीत का असर हुआ है, असर होने में देर नहीं लगी, दिन को सर्दी लगी और रात को ही उसका असर हो गया, जलन है, अत्यन्त प्यास है, आक्रमण वेग से हुआ है, तेज बुखार है, घबराहट और बेचैनी हैं-इन सब लक्षणों के इकट्ठा हो जाने पर ही एकोनाइट की उपयोगिता है।
(7) शीत द्वारा दर्द – स्नायु-शूल – सिर-दर्द तथा दांत के दर्द में भी यह एक उत्कृष्ट दवा है। इन दर्दों में भी इसके आधारभूत लक्षण सदा रहने चाहियें। शीत के स्नायु-शूल के निम्न दृष्टांत है :-
शीत द्वारा स्नायु-शूल – कोई व्यक्ति ठंडी, सूखी हवा में घुड़-सवारी के लिये या पैदल सैर करने के लिये निकलता है। उसका चेहरा ठंडी हवा के संपर्क में आता है। स्नायु सुन्न हो जाती हैं, फिर दर्द शुरू होता है, रोगी इस दर्द से कराहता है। भला-चंगा आदमी है, हृष्ट-पुष्ट है रक्त-प्रधान है, दर्द में बेचैनी और जलन है दर्द यकायक अचानक आया है, बड़े वेग से आया है, रोगी के चेहरे पर घबराहट है, चाकू की काट की तरह चेहरे में दर्द हो रहा है। इस दर्द को एकोनाइट एकदम ठीक कर देगा।
शीत द्वारा शियाटिका का दर्द – शीत लगने से स्नायु के मार्ग में जब बर्फ के समान ठंडक अनुभव हो वहां भी एकोनाइट अच्छा काम करता है। कभी-कभी स्नायु के मार्ग में जलन का अनुभव होता है। ऐसे शियाटिका में यह लाभप्रद है।
शीत द्वारा सिर-दर्द – इसका सिर-दर्द बड़े वेग से आता है। मस्तिष्क तथा खोपड़ी पर जलन होती है, कभी ज्वर होता है कभी नहीं होता, सर्दी लगने से सिर-दर्द होता है, कभी-कभी बहते जुकाम के बन्द हो जाने से दर्द शुरू हो जाता है। जुकाम के समय रक्त-प्रधान व्यक्ति सैर को बाहर ठंडी हवा में निकल जाता है और घर लौटने पर थोड़ी देर में आंखों के ऊपर के भाग में सिर-दर्द होने लगता है। इस सिर-दर्द में घबराहट बनी रहती है। क्रोध, भय से भी एकोनाइट का सिर-दर्द हो जाता है। स्त्रियों में रजो-धर्म के अचानक रुक जाने से सिर में खून का दौर बढ़ जाता है और सिर-दर्द हो जाता है। यह समझना भ्रम है कि सर्दी लगने से ही सिर-दर्द होता है। धूप में सोने से या लू लग जाने से भी सिर दर्द हो सकता हैं, परन्तु एकोनाइट के सब प्रकार के सिर-दर्द में एकाएकपना, प्रबल वेग, घबराहट, बचैनी, प्यास आदि की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिये, फिर भले ही वह सर्दी से हुआ हो या गर्मी से।
शीत द्वारा दांतों में दर्द – दांत के दर्द को शमन करने के लिये यह दवा इतनी प्रसिद्ध हो गई है कि प्रत्येक गृहस्थी में वृद्धा माताएं जानती हैं कि एकोनाइट के मदर-टिंचर की एक बूद थोड़ी-सी रूई में दांत की खोल में रख देने से दर्द शांन्त हो जाता है। अगर शक्तिकृत एकोनाइट का प्रयोग किया जाय तो वह और अच्छा काम करेगा, परन्तु यह ध्यान रखने की बात है कि दर्द सर्दी लगने से हुआ हो, एकदम आया हो, बड़े वेग से आया हो, रक्त-प्रधान व्यक्ति हो। कभी-कभी अच्छे, मजबूत दांतों की सारी पंक्ति में सर्दी के कारण दर्द हो उठता है, उसमें भी एकोनाइट की एक ही मात्रा से दर्द शांत हो जाता हैं।
एकोनाइट औषधि के अन्य लक्षण
(i) गर्मी के उत्पन्न रोगों में – एकोनाइट औषधि केवल शीत की बीमारियों के लिये ही उपयुक्त नहीं है, किन्तु जहां इसका उपयोग अत्यन्त शीत के द्वारा उत्पन्न रोगों में होता हैं, वहां अत्यन्त गर्मी से उत्पन्न रोगों में भी इसका उपयोग है। फेफड़े तथा मस्तिष्क के रोग शीत के कारण होते हैं और ‘आन्त्र-शोथ’ (Bowel inflammations) तथा पेट के रोग ग्रीष्म-ऋतु में होते हैं। जब रक्त-प्रधान स्वस्थ व्यक्ति एकदम गर्मी खा जाते हैं तब लू से सिर-दर्द, गर्मी से पेंट के दस्त आदि अनेक उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं। इनमें भी एकोनाइट लाभप्रद है। बच्चों के पेट की बीमारियां तो गर्मी की वजह से होती हैं और उनमें अचानक, प्रबल वेग आदि होने पर एकोनाइट ही प्रयुक्त होता है।
(ii) स्त्रियों तथा बच्चों के रोगों में क्योंकि वे भय के शिकार रहते हैं – पुरुषों की अपेक्षा बच्चों तथा स्त्रियों के रोगों में एकोनाइट विशेष उपयोगी है। इसका यह अभिप्राय नहीं है कि पुरुषों में यह उपयोगी नहीं है। क्योंकि बच्चे तथा स्त्रियां भय के शिकार जल्दी हो जाती हैं इसलिये उनके भय-जन्य रोगों में इसका विशेष उपयोग होता है। भय से पुरुषों को किसी अंग को शोथ नहीं होता, परन्तु स्त्रियों में प्राय: सर्दी लगने या भय के कारण जरायु (Uterus) तथा डिम्ब-ग्रन्थि (Ovary) का शोथ हो जाता है। रजोधर्म रुक जाता है। बच्चों में भी एकोनाइट उसी हालत में काम करता है जब रोग भय के कारण उत्पन्न हुआ हो। बच्चे प्राय: भयभीत रहते हैं, कभी माता-पिता, कभी अध्यापक उन्हें डराते हैं। इस प्रकार बच्चों को जो रोग हो जाते हैं – दस्त, अपचन – उनमें एकोनाइट उपयोगी है।
(iii) जिस तरफ लेटे उधर के चेहर पर पसीना आना दूसरी तरफ न आना – ज्वर में एकोनाइट का विशेष लक्षण यह है कि रोगी जिस तरफ लेटता है चेहरे के उस तरफ पसीना आने लगता है। अगर वह पासा पलट ले, तो चेहरे का पसीने वाला भाग सूक जाता है, और दूसरा भाग जिधर वह लेटता है उधर पसीना फूट निकलता है।
(iv) श्वास-कष्ट में पसीना आ जाना – कभी-कभी ठंड लगने के कारण या किसी प्रकार के भय या ‘शॉक’ (मानसिक धक्का) के कारण फेफड़ों की छोटी-छोटी श्वास-प्रणालिकाएं संकुचित हो जाती है और रोगी को दमा तो नहीं परन्तु दमे – जैसी शिकायत हो जाती है। इस प्रकार का श्वास-कष्ट किसी डर से, स्नायु-प्रधान, रक्त-प्रधान स्त्रियों को अधिक होता है। उनका श्वास जल्दी-जल्दी चलता है. घबराहट रहती है, शवास लेने में प्रयास करना पड़ता है, श्वास-प्रणालिकायें सूखी होने लगती हैं। रोगी पर यकायक तथा प्रबल वेग का आक्रमण होता है, रोगी बिस्तर से सीधा उठ बैठता है, गला पकड़ता है, कपड़े उतार फेंकता है, प्यास लगती है, भय से रोगी आतंकित हो उठता है। श्वास-कष्ट के साथ हृदय में दर्द का अनुभव होता है। इस भय तथा घबराहट से रोगी पसीने से तर-ब-तर हो जाता है यद्यपि त्वचा गर्म ही रहती है। इस प्रकार के श्वास कष्ट में एकोनाइट के सब प्रधान लक्षण पाये जाते हैं – अचानक, वेग, घबराहट, प्यास, भय। ऐसे समय एकोनाइट रोगी का परम सहायक सिद्ध होता है।
शक्ति तथा प्रकृति – स्नायु-शूल में टिंचर का एक बूंद दिया जाता है, अन्यथा 3 से 30 शक्ति। क्योंकि यह औषधि दीर्घगामी नहीं है इसलिये नवीन रोगों में इसका बार-बार प्रयोग होता है। पुराने रोगों में इसका प्रयोग नहीं होता।