हिन्दी नाम – बिल्व पत्र या बेल का पत्ता। यह ज्वर, खाँसी, हर प्रकार के यांत्रिक रोग, संयुक्त शोथ, उदरी, थोड़ा पेशाब, आँख-मुंह, हाथ-पैर और पेट फूलना, ज्वर, अरुचि व बहुत दिनों से प्लीहा, पेट की बीमारी, आंव गिरना इत्यादि भोगते रहने पर ऐग्ले-फोलिया से लाभ होता है। बेरी-बेरी रोग की सूजन में भी इससे लाभ होता है। इसका मदर-टिंचर अधिक मात्रा में सेवन करने से कामरिपु का दमन और शक्तिकृत औषध ( 6, 30 ) के अल्प परिमाण में सेवन करने से कामरिपु की उत्तेजना होती है। इसकी नाड़ी मोटी व पूर्ण रहती है।
ऐग्ले मारमेलस – यह बेल के गूदे या कच्चे मुलायम बेल से तैयार होता है। अतिसार या रक्तशुदा आँव रोग में ऐग्ले मारमेलस Q की 5-10 बून्द तक की मात्रा में सेवन करने से शीघ्र ही मल गाढ़ा हो जाता है और आँव का दोष भी घट जाता है।
ऐग्ले-फोलिया दवा के लक्षण में याददास्त कमजोर हो जाता है, रोगी मात्राएं लिखने में गलतियां करता है। ऐसे में ऐग्ले-फोलिया और ऐग्ले मारमेलस दोनों औषधि लाभ करता है।
पेशाब कम मात्रा में होता है, पीठ और कमर के तरह हल्का दर्द रहता है, दोपहर के समय दर्द का बढ़ जाना जैसे लक्षण में ऐग्ले-फोलिया और ऐग्ले मारमेलस दोनों औषधि लाभ करता है।
खुजली और दाद रोग में दोनों औषधि उत्तम कार्य करता है।
नपुंसकता रोग में ऐग्ले-फोलिया और ऐग्ले मारमेलस दोनों औषधि लाभदायक सिद्ध होता है।
मात्रा – शोथ के साथ उदरामय आदि पेट के दोष रहने पर निम्नक्रम 2x या Q, कब्ज रहने पर उच्च शक्ति 30 प्रयोग करें।