डॉक्टरी में इस रोग को बेड वेटिंग (Bed Wetting) तथा एनुरेसिस (Enuresis) इत्यादि नामों से जाना जाता है । इस रोग में बिना इच्छा के नींद में अथवा दिन में मूत्र निकल जाता है और कपड़े और बिस्तर गन्दे हो जाते हैं। यह रोग लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक हुआ करता है। पेट में कीड़े और चुन्ने होना, मूत्राशय की पथरी, लिंग की सुपारी का मांस अधिक लम्बा होना और सुपारी के नीचे गन्दगी और मिट्टी एकत्रित हो जाना, मूत्राशय में बार-बार खराश उठना, मूत्र में खटास की अधिकता, स्नायु संस्थान में खराश, ठण्डे और तर भोजन अधिक खाना, सर्दी की अधिकता, शरीर के निचले भाग के पक्षाघात से मूत्राशय कमजोर हो जाना, स्नायु कमजोरी और उनमें उत्तेजना की अधिकता होना – इन कारणों से प्रायः बच्चों को (बड़ी आयु के लोगों को भी) यह रोग हो जाया करता है ।
बिस्तर में पेशाब करने का उपचार
मूत्र की लिटमस पेपर से परीक्षा करें । स्वस्थ मूत्र कुछ अम्लीय होता है । स्वस्थ मूत्र में नीला लिट्मस डालने पर वह मामूली लाल हो जाता है यदि लिमस तुरन्त ही चमकदार लाल हो जाये तो इसका यह अर्थ है कि मूत्र में अम्ल बहुत अधिक है। ऐसी अवस्था में ऐसी दवाइयाँ दें जिनके प्रयोग से मूत्र में मामूली अम्ल रह जाये ।
इस रोग में मानसिक, मैस्मरेजम और हिपनोटिजम से बच्चे के मस्तिष्क पर प्रभाव डालना चाहिए कि वह नींद में पेशाब न करे । रोगी बच्चे को डराना, धमकाना अथवा मारना कदापि अच्छा नहीं है । सोते समय दूध और पानी न पिलायें । सोने से 2-3 घण्टे पूर्व ही उनका सेवन करना चाहिए तथा सोने से पूर्व बच्चे को मूत्र करा लें तथा रात को भी 1-2 बार उठकर मूत्र त्याग करा लेना चाहिए ।
होम्योपैथी में टिंक्चर बेलाडोना 2 से 5 बूंद (आयु के अनुसार) जल में मिलाकर दिन में तीन बार भोजनोपरान्त सेवन करायें ।
अंग्रेजी दवा में एफेड्रिन हाइड्रोक्लोराइड (निर्माता बरोज बेलकम) 15 मि.ग्रा. मिल्क ऑफ शुगर (दूध की चीनी) में मिलाकर दिन में दो बार दें । 30 मि.ग्रा. की टिकिया आती है।
विटामिन ‘ई’ का सेवन भी लाभकारी है । आयु के अनुसार सेवन करायें ।
ट्रिप्टानाल टिकिया (मर्क शार्प डोहम) का प्रयोग भी लाभप्रद है ।
डेप्सोनिल (एस. जी. कंपनी) 250 मि.ग्रा. वाली चौथाई से एक टिकिया रात को सोते समय कुल 8 सप्ताह तक खिलायें । अतीव गुणकारी औषधि है ।
क्वीएटल (एलेम्बिक) प्रारम्भ में आधी से एक टिकिया दिन में 2-3 बार दें। तदुपरान्त चौथाई से आधी टिकिया दिन में 1-2 बार सेवन करायें ।
सारमोण्टिल (मेएण्ड बेकर) 50 मि.ग्रा. रात को सोने से दो घण्टा पहले खिलायें। इसकी 10 और 25 मि.ग्रा. की टिकिया आती है।
इक्वानिल (वाईथ) 200 मि.ग्रा. की आधी टिकिया खाना खाने के बाद रात को सोने से आधा घण्टा पूर्व प्रयोग करायें ।
अन्य औषधियाँ – ट्रिक्लोरिल सीरप (ग्लिण्डिया), नियामिड टैबलेट (फाईजर), मिथिल इफेड्रीन टैबलेट (बी. पी.), मिण्टेजोल सस्पेंशन (मेरिण्ड एस्काजिन) टैबलेट/इन्जेक्शन (एस. के. एफ.), गार्डेनाल टैबलेट (मेएण्ड बेकर), कोम्बेन्ट्रिन संस्पेंशन (फाईजर), इमप्राटैब टैबलेट (जगसनपाल), लूमिनाल टैबलेट (बायर), नाइट्रावेट टैबलेट (ए. एफ. डी.) इत्यादि का प्रयोग आयुनुसार अत्यन्त ही लाभकारी सिद्ध होता है ।
छोटे बच्चों को डबलरोटी के टुकड़े में ‘क्रियोजोट‘ की एक बूंद डालकर देने से लाभ होता है ।
बच्चे को पीठ के बल सुलाने के बदले पेट के बल सुलाने से रोग दूर हो जाता है । लकड़ी का मोटा टुकड़ा धागे के साथ कमर में ऐसा बाँधे कि टुकड़ा कमर के मध्य में बँधा रहे । (इससे रोगी कमर के बल सो ही नहीं सकता है)।
जब वयस्क रोगी को मूत्र का कोई विशेष रोग न हो और उसका मूत्र निकल जाता हो तो क्लोरल हाइड्रेट 900 से 1200 मि.ग्रा. रात को सोते समय खिला देने से मूत्र निकलने की समस्या में आराम हो जाता है । रोग घटने पर दवा की मात्रा भी घटाते जायें ।
वयस्क और बूढे रोगी को अण्डे के छिलके की भस्म खिलाना परम लाभकारी है। तिल, रेबड़ी और गजक खिलाना भी रोगनाशक है ।
वच एक, भाँग, काले तिल दो भाग लेकर दोनों को पीसकर सुरक्षित रख लें । मात्रा 4 रत्ती (200 मि.ग्रा.) दिन में दो बार सेवन कराना अतीव गुणकारी है ।