ऐलनस रूब्रा का लाभ और उपयोग
यह औषधि मुख्यतः चर्म रोगों, ग्रन्थि निवर्धन तथा पाचक रस के अपूर्ण स्राव के फलस्वरूप होने वाले अजीर्ण के लिये प्रसिद्ध है। यह पोषण को उद्दीप्त करती है और इस तरह गंडमाला सम्बन्धी उपद्रवों और बिवार्धित ग्रन्थियों पर प्रभावी क्रिया करती है। मुख और कण्ठ की व्रणग्रस्त झिल्लियों पर भी इसकी प्रभावी क्रिया होती है। पीबदार फुंसियों से उंगलियों पर पपड़ी जम जाती है जिससे बदबू आती है। पाचक रस के अपूर्ण स्राव के कारण होने वाला अजीर्ण।
चिकित्सा क्षेत्र में इस दवा का अधिक प्रचलन रहने पर भी साधारणतः नीचे लिखी दो-तीन बीमारियों में इसका व्यवहार करने से विशेष लाभ होगा। इसकी खास क्रिया पाचन-यन्त्र और ग्रन्थियों पर होती है। दाद, पीब-शुदा अथवा विसर्प या एक्ज़िमा ( अकौता ) जैसे चर्म रोगों में भी इससे फायदा होता है।
ग्रंथियों का फूलना – जहाँ गाँठ खूब बड़ी हो जाये, दर्द रहे और बेलाडोना, हिपर, मर्क्यूरियस इत्यादि दवाओं से लाभ न हो वहां – इससे अधिक फायदा होना सम्भव है ; किन्तु अन्य जगहों की गाँठों की अपेक्षा नीचे के जबड़े की ग्रंथि की सूजन में इससे ज्यादा लाभ होता है।
बदहजमी – जिन्हें मांस, मछली, दाल इत्यादि प्रोटीड जाति के खाद्य पदार्थ हजम नहीं होते, पाचक रस ठीक-ठीक तरीके से नहीं निकलता और पाचन रस न निकलने के कारण मंदाग्नि हो जाती है, उनकी बीमारी में यह दवा बहुत फायदा होता है।
घाव – मुँह और गले की श्लेष्मिक झिल्ली के घाव में लाभ – दायक है।
क्रम – Q, 6 शक्ति। इसका बाहरी प्रयोग भी होता है।