एलूमिना सिलिकैटा का उपयोग और लाभ
मस्तिष्क, मेरुदण्ड एंव स्नायुजाल सम्बन्धी पुराने रोगों के लिये यह एक गूढ़ क्रिया करने वाली औषधि है। इसका प्रमुख लक्षण सिकुड़न है, शरीर के किसी भी भाग में सिकुड़न हो इसमें शमिल होती है। शिरा-विस्फार (Venous distention), रीढ़ की हड्डी की दुर्बलता, रीढ़ की हडडी में दर्द और जलन होती है, शरीर के सारे अंगों में रेंगने, सुन्नपन और दर्द, रोगी को मिर्गी जैसी ऐंठन और दर्द के दौरान ठण्डक महसूस होती है।
सिर – सिर में दर्द, खोपड़ी की सिकुड़न, मस्तिष्क रक्तसलंयन (congestion of brain), गर्मी से रोगी आराम महसूस करता है, पसीना आता तो आराम लगता है। आंखों में दर्द तथा चिनगारियां सी उड़ती दिखाई देती है। सर्दी जुकाम बार-बार हो जाता है, नाक की सूजन और व्रणग्रस्तता (ulceration)।
श्वास संस्थान – छाती में भारी दुर्बलता की अनुभूति होती है वक्ष प्रतिश्याय (catarrh of chest) दर्द, कच्चेपन की अनुभूति, छाती में सुई चुभनें की तरह दर्द होता है। खांसी (spasmodic cough) के साथ पीब जैसा चिपचिपा बलगम आता है।
बाह्यांग – सुन्नपन (numbness), भारीपन क्षेप (Jerking) कसक और पीड़ा।
चर्म – नाडियों से सटी हुई रेंगन शिराये पूर्णतया भरी हुई और फैली हुई महसूस होती है। स्पर्श करने तथा हाथ से दबाने से दर्द होता है।
रूपात्मकतायें – ठण्डी हवा में रहने से, खाना खाने के बाद तथा खड़े रहने से वृद्धि होती है। रोगी भूखा रहने तथा बिस्तर में आराम करने से आराम महसूस करता है।
शक्ति – उच्चतर शक्ति।।