परिचय : 1. इसे आरग्वध (संस्कृत), अमलतास (हिन्दी), सोंदाल (बंगाली), बाहवा (मराठी), गरमालो (गुजराती), कोंड़े (तमिल), आरग्वघमु (तेलुगु), खियार शंबर (अरबी) तथा केसिया फिस्टुला (लैटिन) कहते हैं।
2. अमलतास का पेड़ मध्यम आकार का 25-30 फुट ऊँचा होता है। तना सुदृढ़, मजबूत और छाल हरी-कत्थई रंग की और शाखाएँ सीधी होती हैं। इसके पत्ते लगभग 1 फुट लम्बे होते हैं, जो 12 से 18 इच्च तक की लम्बी सींको पर 8 से 16 जोड़े पत्रकों में लगे होते हैं। ये छोटे पत्ते (पत्रक) जामुन जैसे चौड़े और चिकने होते हैं। फूल पीले रंग के पत्तों के समान ही लम्बे और सुगंधित डंठल पर लगते हैं। इसकी फली 1-3 फुट लम्बी और 1 इच्च गोल, कच्ची अवस्था में हरी, पकने पर काली (ललाई लिये कत्थई रंग की) और बेलन के आकार की होती हैं। अमलतास के बीज चपटे, चिकने, काले, गोल फली और पैंसे के समान खण्डों में सिरस के आकार के, पीलापन लिये कत्थई रंग के होते हैं।अमलतास के फूल लगभग दो इंच व्यास के चमकीले, पीले रंग के होते हैं। अमलतास के फूल गंध रहित पर देखने में आकर्षित होते हैं।
3. यह प्राय: सब प्रान्तों में पाया जाता है।
रूप : मार्च से अप्रैल तक अमलतास के पेड़ की सभी पत्तियाँ झड़ जाती हैं। इसके बाद नए फूल और नई पत्तियाँ निकलते हैं। इसके बाद अमलतास की फली आती है जो तक़रीबन दो फुट लंबी और गोल लटकी होती है। अमलतास की फली के अंदर का भाग जो की अमलतास का गूदा होता है बहुत सारे कोष्ठों में बंटा होता है। अमलतास बेलन के आकार का सख्त होता है।
रासायनिक संघटन : इसके फल के गूदे में शर्करा 60 प्रतिशत, पिच्छिल द्रव्य, ग्लूटीन, पेकटीन, रंजक द्रव्य, कैलशियम, आक्जलेट, क्षार, निर्यास तथा जल होते हैं।
अमलतास के गुण : यह स्वाद में मीठा, कडुआ, पचने पर मीठा तथा शीतल, भारी, मृदु और चिकना होता है। इसका मुख्य प्रभाव त्वचा-ज्ञानेन्द्रिय पर कुष्ठध्न तथा आन्त्र पर मृदु-विरेचक रूप में पड़ता है। यह शोथहर, पीड़ा-शामक, रक्तशोधक, कफ-नि:सारक, मूत्रजनक, दाहशामक तथा ज्वरहर है।
अमलतास के उपयोग
2. दाद : अमलतास के पत्तों के रस का लेप करने पर दाद, खाज में लाभ होता हैं।
3. टॉन्सिल : यदि गले में ग्रन्थि (टॉन्सिल) अधिक बढ़ जाय तथा पानी न निगला जाता हो, तो इसकी छाल के कुछ गर्म-गर्म काढ़े से गरारे करने पर तुरन्त आराम होता है।
4. बुखार : अगर बुखार तेज़ हो तो अमलतास के बीज और आँवले के फल को कूट-पीस कर और उसमे कुटकी के दाने मिलाकर पानी में उबाल कर रख लें। तक़रीबन 5 ग्राम काढ़े में हल्का शहद मिलाकर रोगी को चटाया जाए, तो बुखार चला जाता है।
5. बिच्छू का जहर : पानी में अमलतास के बीजों को घिसकर बिच्छू के काटे गए स्थान पर लगाने से दर्द तुरंत चला जाता है।
6. बच्चों का पेट दर्द : पानी में अमलतास के बीजों को घिसकर उसके लेप को नाभि पर लगाने से गैस और पेट दर्द से तुरंत आराम मिलता है।
7. कब्ज : कब्ज दूर करने के लिए अमलतास बहुत उपयोगी है। अमलतास की फली का एक टुकड़ा कूट-पीस कर एक गिलास पानी में रख दें। इसमें गुलाब के 2-3 फूल और एक चम्मच खाने वाली सौंफ मिला दें। इन सभी को पानी में इतना उबालें कि आधा पानी सुख जाये। इस पानी को छान कर रात में हल्का गर्म पियें। ये सभी प्रकार के कब्ज में रामबाण इलाज है।
8. चेहरे के दाग धब्बे : अमलतास के पत्तों का लेप बनाकर चेहरे पर मलने से चेहरे के सारे दाग धब्बे चले जाते हैं और चेहरा भी glow करता है।
9. जलने पर : कोई भी अंग जल जाये तो उसपर अमलतास के पत्तों का लेप लगाने से जलन तुरंत चली जाती है।
10. शरीर का अंग सुन्न पड़ जाना : अगर शरीर का कोई भी अंग सुन्न पड़ जाये तो उसपर अमलतास का पत्ता बांधने से वो अंग ठीक हो जाता है।
11. लकवे के लिए : रोजाना 10 से 20 मिली लीटर अमलतास के पत्तों का रस पिलाने से लकवे में आश्चर्जनक लाभ मिलता है।
12. गठिया रोग : अमलतास के पत्तों को सरसों के तेल के साथ गरम करके मालिश करने से गठिया रोग में बहुत लाभ मिलता है।
13. मधुमेह का रोग : अमलतास के गुदे को गर्म करके उसकी गोलियां बना लें। 2-2 गोली रोजाना सुबह-शाम पानी के साथ लेने से मधुमेह में बहुत आराम मिलता है।
14. दमा रोग : अमलतास की गिरी का काढ़ा बनाकर रोजाना पीने से मल त्याग के द्वारा दमा ठीक हो जाता है।
15. उल्टी कराना : कभी-कभी उल्टी कराना जरुरी हो जाता है इसके लिए 5 अमलतास के बीज का चूर्ण रोगी को खिला दें, रोगी उल्टी कर देगा।
16. कान का बहना : कान से मवाद आता हो तो अमलतास के पत्तों का काढ़ा कान में डालने या काढ़े से धोने से कान का बहना ठीक हो जाता है।
17. नाक में फुंसी : अमलतास के पत्ते पीस कर उसके लेप को नाक की फुन्सियों पर लगाने से फायदा होता है।
अमलतास से नुकसांन : अमलतास के अधिक प्रयोग से पेट में दर्द हो सकती है, इसलिए अधिक प्रयोग ना करें।