Ammonium causticum का एक प्रधान लक्षण है – नाक से जलन शुदा और खाल गला देने वाला पतला स्राव बहना। वक्षस्थल के बीच की हड्डी के पीछे जलन और दर्द रहना। इसमें श्लेष्मिक झिल्ली में उपदाह होता है, जिससे झिल्लियां फूल जाती हैं और घाव हो जाता है।
श्वासनली मुख में आक्षेप ( spasm of the glottis ) – यह बीमारी बच्चों को ही ज्यादातर होती है और उन्हीं को बीमारी खतरनाक हो जाती है। एकाएक इस बीमारी का दौरा हो जाता है और कुछ सेकेण्ड से लेकर 1-2 मिनट तक रहता है। बच्चा कुछ देर के लिए अच्छा रहता है और फिर बीमारी का दौरा होता है – इस तरह बार-बार दौरा हुआ करता है। बीमारी का दौरा होने के समय गले में एक तरह की सांय-सांय आवाज हुआ करती है, श्वासनली रुक-सी जाती है या थोड़ी देर के लिए श्वास बिलकुल ही बंद हो जाता है और बच्चा घबड़ाने लगता है। इस रोग में – ब्रोमियम, स्पंजिया, कूप्रम, मस्कस, इपिकाक, सैम्बुअस और लैकेसिस की तरह “ऐमोन कॉस्टिकम” भी एक प्रधान दवा है ; इसमें खूब जोर से साँस खींचने पर छाती के भीतर अन्नवाही नली में दर्द मालूम होता है।
वमन – तेज उल्टी – नाक मुँह से निकलती है।
मल – बार-बार वेग, मल में केवल रक्त, बहुत काँखने के साथ रक्तमय मल।
ऐमोन कॉस्टिकम – स्वर-भंग ( aphonia ), गलकोष या स्वर-यन्त्र का प्रदाह और उसके साथ बहुत कमजोरी, गले में जलन, बहुत ज्यादा ऐंठन का दर्द, उपजिह्वा में बलगम लिपटा रहना इत्यादि पीड़ाओं में – यह दवा अच्छा काम करती है।
मूर्छा, हृत्पिंड का सुस्त पड़ जाना ( syncope ), छाती में खून के थक्के जम जाने से खून अटक जाना ( thrombosis ), रक्तस्राव, कन्धे की पेशी का वात, ब्रोंकाइटिस में बहुत ज्यादा जुकाम झड़ना, साँप काटना इत्यादि पीड़ाओं में भी यह लाभदायक है।
वाह्यांग – रोगी को भारी थकान होती है और पेशियों में दुर्बलता आ जाती है। कन्धों का आमवात, त्वचा रुखी और गर्म रहती है।
मात्रा – पहली से तीसरी शक्ति तक।
क्रम – 3 शक्ति।