[ फॉस्फेट ऑफ ऐमोनिया ] – वात रोग की पुरानी अवस्था में बहुत से मौकों पर यह दवा फायदा करती है। रोग का प्रथम आक्रमण होने के समय नए प्रदाह में यह बिलकुल ही फायदा नहीं करती।
वात – गठिया वात ( gout ) खासकर अंगुलियों की गाँठों का वात, गाँठ में छोटे-छोटे दानों की तरह सूजन ( nodositis ), गाँठों की विकृति। एमोन फॉस के पेशाब में गुलाबी रंग की तली ( sediment ) पड़ती है।
डॉ फैरिंगटन का कहना है – यह दवा कभी भी रोग की नई अवस्था में तथा दर्द घटाने के लिए कभी व्यवहार में नहीं लानी चाहिए ; किन्तु जब गाँठ में खड़िया के चूर की तरह एक तरह का सफ़ेद पदार्थ ( concretions of urate of soda ) जमने लगे, रोग धातुगत हो जाए, रोग वाली जगह टेढ़ी होकर विकृत अवस्था में जा पहुँचे तभी इसके उपयोग का ठीक समय समझना चाहिए।
स्कन्ध-सन्धि में दर्द – छाती के चारों ओर ऐसा दर्द मानो कसकर बंधा हुआ है, शरीर मानो एक भारी बोझा हो रहा है, चलने के समय पैर ठीक-ठिकाने नहीं पड़ते, मुंह का पक्षाघात, जरा भी ठण्डी हवा लगते ही – सर्दी लग जाना, सवेरे छींक और साथ ही आँख-नाक से लगातार पानी गिरना, खांसी में हरे रंग का बलगम निकलना इत्यादि लक्षणो और रोगों में भी इसका उपयोग होता है।
क्रम – 3x विचूर्ण।