ऐमिल नाइट्रोसम दिल के नाना प्रकार के रोगों में उपयोगी है विशेष करके जब वैज़ो मोटर (Vaso Motor – वह शक्ति जो नसों में खून को विधिवत चलाती है) नर्वस (Nerves – नसें) शिथिल (Paralyzed) हो जाती हैं और चेहरा तमतमाता और सुर्ख हो जाता है। चेहरे और सिर पर खून का दौरा अत्यधिक होता है। जरा भी उत्तेजना (Emotion) से चेहरे पर सुर्खी आ जाती है। सिर के अन्दर गर्मी, तपकन और भारीपन मालूम होता है। सिर और कान के अन्दर इस प्रकार धक्का और तपकन मालूम होती है कि मानो वे फट जायेंगे, साथ ही साथ हलक और दिल में खिंचाव मालूम होता है। कनपटियों में तपकन इस कदर तेज़ होती है कि बाहर से दिखायी पड़ती है । रोगी इस तरह से आँखे फैलाकर देखता है कि मानों वे निकली पड़ती हैं।
सूंघ या सेवन करके यह जैसे भी ली जाये, इसकी क्रिया बहुत ही जल्द होती है, यहाँ तक की प्रायः आध मिनट में ही हो जाती है ; लेकिन जितनी जल्दी क्रिया होती है उतनी जल्दी नष्ट भी हो जाती है। इसलिए होमियोपैथी में इसका प्रयोग करना हो तो बहुत जल्दी-जल्दी प्रयोग करना उचित है। ऐमिल नाइट्रेट को बहुत सावधानी से रखा जाता है और यह कपूर की तरह उड़ भी जाता है।
हलक में इस कदर तकलीफ होती है कि मानों दम घुट जाएगा। कुर्ते का कालर कसा हुआ मालूम पड़ता है और उसे ढीला कर देने की इच्छा होती है। इस प्रकार का कसाव हलक में सीने तक मालूम होता है और साँस लेने में तकलीफ़ होती है। दिल के स्थान पर अत्यन्त दर्द और तकलीफ़ होती है, दिल मानों किसी चीज़ से जकड़ा हुआ है। ऐन्जिना पेक्टोरिस (Angina Pectoris – यह दिल का एक कष्टदायक रोग है जिसमें अत्यन्त प्रचण्ड दर्द सीने से आरम्भ होकर विशेष करके बांये कन्धे और बांह तक प्रसारित होता है) रोग में, यदि इसके लक्षण मिलें, तो यह लाभदायक है।
प्रसव के बाद ही फ़ौरन ऐंठन आरम्भ होने पर तथा अत्यधिक रक्तस्राव होने पर इसके प्रयोग से लाभ होगा। ऐसी दशा में उसका मूल अर्क सुंघाया जाता है।
यह रोगी खुली और ताज़ी हवा बहुत पसन्द करता है, जाड़े के मौसम में भी कपड़े, रजाई, दरवाजे और खिड़कियां खोल देना चाहता है।
बार-बार अंगड़ाईयां लेना चाहता है, पलंग या किसी आदमी को पकड़कर अंगड़ाईयां लेना चाहता है, उसकी यह इच्छा किसी तरह से पूरी नहीं होती। बार-बार जमहाई लेता है।
लू (Sun stroke) – लगने से तकलीफ़, स्नायविक सिर दर्द (Neuralgic headache), रजोधर्म की खराबी (Menstrual irregularities) विशेष करके रजोधर्म निवृत्ति (Climacteric ailments) के समय की तकलीफें, हिस्टीरिया की तकलीफें, मिर्गी और ब्राइट्स रोग (Bright’s disease-एक प्रकार गुर्दे की बीमारी) इससे दूर होगा, यदि इसके उपर्युक्त लक्षण मिलें।
मिर्गी रोग – इस रोग में जब रोगी को बेहोशी के साथ अकड़न होता है, उस समय इसकी Q की 5-7 बून्द रुमाल में डालकर या नाक के सामने शीशी रखकर सुंघाने से आक्षेप घट जाता है। असली मिरगी आने के थोड़ा पहले – ऑरा ( शरीर में एक तरह की सुरसुरी ) मालूम होती है, अतएव रोगी ठीक उसी समय पर अगर बार-बार ऐमिल नाइट्रेट सूंघे तो संभवतः उस समय वह रोग के आक्रमण से बच सकता है। ह्रदय-शूल का दर्द और सर्दी-गर्मी या जुकाम आदि में भी – इसी तरह ऐमिल नाइट्रेट सुंघाने से लाभ होता है।
हिचकी – जबरदस्त हिचकी, किसी भी तरह न दबे तो – इसे सूंघना चाहिए। सेवन के लिए 6, 200 शक्ति।
स्त्री रोग – जहाँ ऐसा दिखाई दे की रजोधर्म बहुत देर से होता है, ऋतुस्राव आरम्भ होकर एक आध दिन ही ठहरे या महीना होना बिलकुल बंद हो जाये या अनियमित हो, मासिक धर्म बंद होने की उम्र में ऋतु होना बंद होने से सिर दर्द हो, माथे में टीस या टपक हो, शरीर का ऊपरी हिस्सा और आँख-मुंह लाल सुर्ख हो उठे, हर वक़्त आग की तरह गर्मी अनुभव हो, चेहरे और कंधे पर पसीना इत्यादि कितने ही बुरे लक्षण प्रकट हो – वहां सबसे पहले इसकी परीक्षा करनी चाहिए। प्रसव के बाद अकड़न, खींचने और उसके साथ बहुत ज्यादा रक्तस्राव होने पर – इसे सूंघने से लाभ होता है।
जलन – आग में जल जाने की तरह शरीर में जलन होना, एक मिनट भी शरीर पर कपड़ा नहीं रख सकना, जाड़े के दिनों में भी शरीर का कपड़ा फेंककर दरवाजे खिड़कियाँ खोल रखने की इच्छा होना, ऐसी हालत में जहाँ – सल्फर, सिकेल, नेट्रम सल्फ, कैप्सिकम, कैन्थर आदि दवाएं सेवन करने पर भी जलन न दूर हो, वहां – इसका उपयोग करना चाहिए।
सदृश – ग्लोनोयन, लैकेसिस।
प्रतिविष – कैक्टस, स्ट्रिकनिन, आर्गोटिन।
क्रम – भीतरी सेवन के लिए 3 शक्ति, और सूंघने के लिए मूल औषधि की 4-5 बून्द रुमाल में डालकर सूंघना चाहिए।