इस मेडिसिन का हिन्दी नाम रोहेड़ा है। प्लीहा, यकृत, विशेषकर प्लीहा पर ही इसकी मुख्य क्रिया होती है। इसलिए इसका नाम प्लीहा शत्रु है। चरक ग्रन्थ में रोहेड़ा की छाल बहेड़ा की छाल के साथ पीसकर एक सप्ताह तक गोमूत्र में भिगा रख छानकर सेवन करने से हर प्रकार के प्लीहा-यकृत व इनके उपसर्ग स्वरूप उत्पन्न शोथ इत्यादि रोग ठीक हो जाते हैं।
इस औषधि की परीक्षा के समय – प्लीहा, यकृत, उदर, आंत व अन्य पाचन-यंत्र भी क्रमशः आक्रांत हुए थे, इसकी थोड़ी सी औषधि के व्यवहार से स्वाभाविक कब्ज रोग उपस्थित होता है, यकृत की पित्त-निःसारण क्रिया में सहज में ही बाधा पड़ती है। इनके अलावा – मुख का स्वाद बिगड़ा, मुख सड़ा-सड़ा सा होना, तीता स्वाद, यकृत के दोष के लक्षण और कब्ज, सवेरे उठने से आलस लगना, सारे शरीर में थोड़ा बहुत दर्द। दोपहर में – आँख, मुंह, हाथ-पैर में जलन के साथ ज्वर मालूम होना, ठण्ड से आराम, ये सब पित्त के प्रकोप के लक्षण हैं व उक्त सभी लक्षण इस औषधि के अन्तर्गत हैं। साधारणतः प्लीहा व यकृत के दोष-जनित नाना प्रकार के पुराने ज्वर, शोथ, कामला, कब्ज, अजीर्ण, अम्ल, भूख न लगना, छाती जलना, अर्श, घी की बनी चीज़ें, घी-दूध का हजम न होना प्रभृति कई-एक रोगों में और प्लीहा व यकृत के स्थान पर कोचने-धँसने की तरह दर्द इत्यादि में इसकी परीक्षा करें।
क्रम – Q, 6ठी शक्ति।