ऐन्थ्रैक्स (Anthrax) एक प्रकार की उड़नी बीमारी (Infectious disease) है जिसे तिल्ली का बुखार (Splenic fever) कहते हैं, यह रोग विशेष करके अक्सर भेड़ और मवेशियों को हुआ करता है। जिस चौपाए को यह बीमारी हुई हो, उसकी तिल्ली से यह औषधि बनाई जाती है।
जब आर्सेनिक अथवा अन्य किसी सुनिर्वाचित औषधि से कार्बंकल (Carbuncle) या दूषित घाव (Malignant ulcer) की असहनीय जलन दूर नहीं होती, तब ऐसी अवस्था में ऐंथ्रासीनम बड़ा लाभदायक पाया गया है।
आर्सेनिक की जलन ठण्ड से बढ़ती है, सेंकने से कम होती है और इसकी सारी तकलीफें आधी रात के बाद बढ़ती हैं। ऐंथ्रासीनम की जलन में रोगी आक्रान्त स्थान पर पानी डालने से आराम पाता है। बेचैनी तो दोनों औषधियों में यथेष्ट रहती है।
पचनशील घाव (Gangrenous ulcers), बिसहरी अर्थात दूषित प्रकृति की अंगुली की सूजन (Felon) इरिसिपिलस (Erysipelas), कार्बंकल, जिसमें से अत्यन्त बदबूदार मवाद आता हो और असहनीय जलन हो और ठण्डे पानी के प्रयोग से रोगी को आराम मिलता हो, तो ऐन्थ्रैक्स का अवश्य प्रयोग करो, इससे आशातीत फल मिलेगा।
काले या नीले रंग के बहुत ही दूषित फफोलों में जिसमें चौबीस या अड़तालीस घन्टे के अन्दर मृत्यु होने की आशंका हो, इसके लक्षण मिलने पर इसका प्रयोग करने से लाभ होगा। मुर्दा चीरते समय असावधानी से छुरी लग जाने के कारण घाव के यदि गैंग्रिन (Gangrene) में परिणत होने की सम्भावना हो अथवा पीब या किसी दूषित पदार्थ के खून में मिलने के कारण प्रदाह, जलन और अत्यन्त कमजोरी हो जाये, तो यह लाभदायक होगा। मुर्दा चीरने के कमरे के अन्दर की सड़ी हुई दूषित बदबू से यदि बुखार आ जाय (Septic fever), साथ ही बेहोशी, मूर्छा, गिरती हुई नब्ज और अत्यन्त कमजोरी के लक्षण रहें, तो इससे लाभ होगा।
मवेशी, भेड़ और घोड़ों के बहुव्यापक (Epidemic) तिल्ली रोग में यह अक्सर लाभदायक पाया गया है।
डाक्टर हेरिंग कहते हैं कि कार्बंकल को शस्त्र-चिकित्सा का रोग कहना मूर्खता का परिचय देना है। उसे काटने ही से हमेशा हानि पहुँचती है और मृत्यु होती है। आभ्यन्तरिक औषधि के प्रयोग से (Internal medicine) कार्बंकल में बहुत जल्द आराम होता है, प्रकृत होमियोपैथिक चिकित्सा से एक भी रोगी की मृत्यु नहीं होती।
मात्रा (Dose) – तीसरी शक्ति।