मलेरिया के बुखार (Malaria fevers) ही में अरेनिया का अधिक उपयोग पाया गया है। जो रोगी भीगे, नम स्थान में रहने ही से बीमार हो जाते हैं, उनके लिए अरेनिया विशेष उपयोगी है। इस प्रकृति के रोगी को डाक्टर वान ग्रावोग्ल (Dr. Von Grauvogl) हाइड्रोजिनायड धातु (Hydrogenoid constitution) कहा करते थे। इसके बुखार का विशेष लक्षण यह है कि प्रत्येक दिन या एक दिन अन्तर एक ही समय पर जाड़ा लग कर बुखार चढ़ जाता है (Great regularity of paroxysm), इसमें शीत ही का आधिक्य होता है, इस कदर जाड़ा मालूम होता है कि हड्डियों के अन्दर तक मालूम होता है मानों बर्फ़ से जम गया हो, हेलोडरमा, उत्ताप (Heat) और पसीना (Sweat) नाम मात्र होते हैं या बिल्कुल ही नहीं होते, मगर इसका जाड़ा ही अत्यन्त कष्टदायक होता है। सविराम ज्वर (Intermittent fevers) किनाइन द्वारा बार-बार देने के बाद तिल्ली के बढ़ जाने पर ही वह उपयोगी है।
सिर दर्द और सिर के गोलमाल का तमाखू पीने से घट जाना इसका एक विशेष लक्षण है (इग्नेशिया का विपरीत) और खुली हवा में रहने से एक दम जाता रहता है (टैब)।
रात के समय लेटते ही समस्त दाँतों में एकाएक ही अत्यन्त दर्द का आरम्भ होना इसका और एक विशेष लक्षण है।
सम्बन्ध (Relations) – आर्निका, आर्स, आर्ज-मेन्ट, सिडून, यूकैल, यूपेटो, सिकेल-कार, टैरेन्टयू के साथ तुलना करो।
वृद्धि (Aggravation) – ठण्ड बरसात के मौसम में, नम मकानों में, ठण्डे पानी से नहाने से, नम भीगे कमरे के अन्दर सोने से, लेटने से।
ह्रास (Amelioration) – तमाखू पीने से, खुली हवा में।
मात्रा (Dose) – मूलार्क से तीसवीं शक्ति।