परिचय : 1. इसे बाकुची (संस्कृत), बावची (हिन्दी), हावुच (बंगाली), बावची (मराठी), बावची (गुजराती), कर्पोकरिशी (तमिल), भावंचि (तेलुगु) तथा सौंरेलिया कौरिलीफोलिया (लैटिन) कहते हैं।
2. बाकुची या बावची के पौधे 4 फुट ऊँचे होते हैं। इसका तना सरल तथा शाखाएँ मजबूत होती हैं। बाकुची के पत्ते 1-3 इंच लम्बे कुछ गोलाकार और किनारे पर दन्तुर होते हैं। फूल पीलापन या नीलापनयुक्त, 10-30 की संख्या में, लम्बे डण्ठल पर लगे रहते हैं। बाकुची के फल काले रंग के गुच्छों में होते हैं।बाकुची के बीज काले रंग के छोटे, कोमल, सफेद, भीनी गन्धवाले होते हैं।
3. यह प्राय: समस्त भारत में कंकरीली भूमि में, विशेषत: असम और उत्तर प्रदेश में पायी जाती है।
रासायनिक संघटन : इसमें एक पीलापनयुक्त उड़नशील तेल 10-15 प्रतिशत, स्थिर तेल विशेष प्रकार का राल की तरह का पदार्थ, क्षार, एल्ब्यूमिन, शर्करा, मैंगनीज तथा वर्मोनिन नामक क्षार-तत्व पाये जाते हैं।
बाकुची के गुण : यह स्वाद में चटपटी, कड़वी, पचने पर कटु तथा हल्की, रूक्ष है। इसका मुख्य प्रभाव त्वचा-ज्ञानेन्द्रिय पर कुष्ठध्न रूप में पड़ता है। यह केश्य (बालों को लाभकर), उदरकृमि-नाशक, कफहर, उत्तेजक, यकृतउत्तेजक तथा कटु-पौष्टिक है।
बाकुची के प्रयोग
1. डिसेण्टरी : प्रवाहिका (डिसेण्टरी) में बाकुची के पत्तों को शाक घी में खूब भूनकर दही और अनार का रस डालकर लेने से लाभ होता है।
2. श्वेत-कुष्ठ : शुद्ध बाकुची बीज का चूर्ण 1 भाग और तिल 2 भाग मिलाकर एक वर्ष खाने से श्वेत-कुष्ठ दूर हो जाता है। 3 माशा बाकुची चूर्ण आँवला और खदिर क्वाथ के साथ देने से श्वेत-कुष्ठ में अत्यन्त लाभ होता है।
3. फोड़ा : फोड़े से रक्त निकल रहा हो तो बाकुची के पत्ते पीसकर बाँध देने से भी लाभ होता है।