बाल समुदाय की काली खांसी, टिटनेस, पोलियो, टी.बी., मीजल्स, खसरा आदि संक्रामक रोगों से बचाव होमियोपैथिक चिकित्सा द्वारा ही संभव है। साथ ही यदि समय से, टीकों की जगह होमियोपैथिक दवाएं बच्चों को पिलाई जाएं, तो रोग उत्पन्न होने की संभावनाएं ही समाप्त हो जाती हैं। कई बार टीकाकरण सफल नहीं हो पाता और कुछ प्रतिशत बच्चों में टीकों के असर देखने को मिलते हैं। इन्हीं सबको ध्यान में रखते हए भारत सरकार के विज्ञान एवं टेक्नोलोजी विभाग ने टीकों के स्थान पर होमियोपैथी दवाओं के उपयोग को ज्यादा हितकारी पाया है और सरकार से इस दिशा में अधिक तेजी से कार्य करने की सिफारिश की है।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता टी-लिम्फोसाइट्स एवं बी-लिम्फोसाइट्स नामक सूक्ष्म कोशिकाओं द्वारा निर्मित एण्टीबाडीज के द्वारा बरकरार रहती है।
चूंकि होमियोपैथिक दवा आणविक शक्ति और सामर्थ्य से परिपूर्ण होती है और समान लक्षणों के आधार पर सिर्फ इतनी ही मात्रा में दी जाती है कि वह व्यक्ति की रोग ग्रहणशीलता को प्रभावित करते हुए उसमें भरपूर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके। अत: इसका प्रभाव सर्वहितकारी ही रहता है।
रोग एवं होम्योपैथिक उपचार
टीकाकरण के स्थान पर, संक्रामक एवं जानलेवा बीमारियों से बचाव एवं चिकित्सा में निम्नलिखित होमियोपैथिक दवाएं अत्यंत लाभप्रद साबित हुई हैं-
डिपथीरिया : ‘डिपथेराइनम’ 200 से एक लाख शक्ति तक की सिर्फ एक खुराक एवं मर्क ‘साइनेटम’ दवा भी उपयोगी है।
काली खांसी : ‘परट्यूसिन’ अधिक शक्ति की एक अथवा दो खुराक एवं ‘काली कार्ब’, ‘मीफाइटिस’ भी लाभप्रद है।
टिटेनस : ‘आर्निका’, ‘हाइपेरिकम’, ‘लीडमपाल’ एवं ‘स्टेफिसेग्रिया’ दवाएं अत्यंत कारगर हैं।
मीजल्स : ‘मोरबीलिनम’ 1000 एवं अधिक शक्ति, ‘पल्सेटिला’, ‘साइलेशिया’, प्रभावशाली दवाएं हैं।
खसरा : ‘सल्फर’, ‘एण्टिमकूड’ एवं ‘एण्टिमटार्ट’ व ‘वेरिओलांइनम’ दवाएं अधिक शक्ति में अत्यंत कारगर हैं।
पोलियो : ‘लैथइरंस सैटाइवस’ एवं ‘बंगेरिस’ दवाएं बहुत फायदेमंद साबित होती हैं।
टाइफाइड : ‘टाइफाइडिनम’ अधिक शक्ति की कुछ खुराकें ही रोग को समूल नष्ट करती हैं एवं पूर्व में दिये जाने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता भी पैदा करती हैं।
छोटीमाता : ‘वेरिओलाइनम’ एक लाख शक्ति तक एवं ‘मेलेण्ड्राइनम’ दवाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करती हैं एवं बचाव करती हैं।
ट्यूबर कुलोसिस : ‘ट्यूबरकुलाइनम’ नामक दवा दस हजार, पचास हजार एवं एक लाख शक्ति तक दो खुराक, ‘आर्स आयोड’ एवं’ ‘बेरियटा आयोड’ कम शक्ति में दें।
इन्फ्लुएंजा : ‘इन्फ्लुऐंजाइनम’ एवं ‘आर्स एल्बम’।
इन्फेक्टिव हिपेटाइटिस (पीलिया) : ‘सल्फर’ उच्च शक्ति में एवं ‘चेलीडोनियम’ दवा का अर्क।
कालरा (उल्टी-दस्त) : ‘कैम्फर’, ‘क्यूप्रम मेटेलिकम’ एवं ‘वेरेट्रम एल्बम’ दवाएं 1000 शक्ति तक।
गानौरिया (सूजाक) : ‘मेडोराइनम’ दस हजार एवं एक लाख शक्ति तक की दवा।
स्कारलेट बुखार (लाल चकत्ते सहित बुखार) : ‘बेलाडोना’ अधिक शक्ति में एवं ‘कैमोमिला’ दवाएं कारगर हैं।
रैबीज : हाइड्रोफोबिनम (लाइसिन) एवं स्ट्रामोनियम उच्च शक्ति मे।
मसाज करना फायदेमंद है
अमेरिका के मियामी विश्वविद्यालय के द टच रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए कुछ अनुसंधानों से यह बात स्पष्ट हो गई है कि नियमित रूप से मसाज कराने से शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रक्रिया ठीक तरह से काम करती रहती है। मसाज मांसपेशियों के दर्द और तनाव को भी कम करता है। इसलिए हफ्ते में एक बार शरीर को आराम देने के लिए मसाज बहुत जरूरी है। जबकि मसाज न कराना शरीर के लिए हानिकारक साबित होता है। दिनभर की व्यस्तता और भागदौड़ के बाद शरीर को भी आराम की जरूरत होती है और पर्याप्त आराम न मिलने पर कार्य शक्ति पर बुरा असर पड़ता है व्यक्ति सक्रिय होकर काम नहीं कर पाता।