अजीर्ण का कारण – अधिक भोजन कर लेने, मानसिक उत्तेजना, चाय, काफी, बीड़ी, सिगरेट आदि का अत्यधिक प्रयोग, शारीरिक परिश्रम न करना, प्रकृति विरुद्ध रहन-सहन ही इस रोग की उत्पति के प्रमुख कारण हैं।
अजीर्ण का लक्षण – खट्टी डकारें आना, भूख का अभाव, सिर में चक्कर आना, सीने में जलन तथा पेट में दर्द व भारीपन आदि प्रतीत होना।
अजीर्ण का इलाज घरेलू आयुर्वेदिक/जड़ी-बूटियों द्वारा
– अपच, मार्निग सिकनेस के लिए ताजी नीम की पत्तियों के रस में नींबू का रस मिलाकर दिया जाता है। ताजे पानी के साथ मिलाकर दें। यह दवा बहुत तेज हैं, इसे स्टील की कटोरी में बनायें।
– घी, तेल, चिकनी चीजें न पचने पर गाजर का रस 300 ग्राम, पालक का रस 150 ग्राम मिलाकर पियें।
– फूलगोभी और गाजर का रस समान मात्रा में मिलाकर पियें। अपच दूर होगी।
– चिकनाई खाने से अपच है तो छाछ में सिंका जीरा, सेंधा नमक, कालीमिर्च मिलाकर पियें।
– सेंकी हुई हींग, जीरा और सोंठ में सेंधा नमक मिलाकर चौथाई चम्मच गर्म पानी से फांक लें।
– दो चम्मच जीरा उबाल लें, ठंडा करके आधा-आधा कप दिन में तीन बार पियें।
– जीरा, पीपल, कालीमिर्च, सोंठ, सेंधा नमक मिलाकर रख लें। भोजन के बाद एक चम्मच चूर्ण के साथ लेने से अपच नहीं होती।
– जिसे खाना हजम न होता हो, खाना खाते ही दस्त हो जाता हो, वे 60 ग्राम सूखा धनिया, 25 ग्राम नमक, 25 ग्राम काली मिर्च-तीनों को पीसकर रख लें। खाना खाने के बाद नित्य आधा चम्मच पंकी लें।
– हल्का खाना खाने के बाद भी दस्त हो जाये जो काला नमक 5 ग्राम गर्म पानी में मिलाकर पी जायें।
– अजवायन, छोटी हरड़ समान मात्रा, सेंधा नमक, हींग स्वादानुसार लेकर सबको पीस लें। भोजन के बाद एक चम्मच पाचक चूर्ण गर्म पानी से लें।
– 3 काली मिर्च, 3 लौंग, 25 नीम की पत्तियां मिलाकर पीस लें। इसमें थोड़ा पानी, शक्कर मिलाकर दिन में दो बार तीन दिन तक पियें, अपच ठीक हो जायेगी।
– कॉफी पीने से अपच दूर होती है।
– अपच और कब्ज की शिकायत में लौंग, हरड़ और सेंधा नमक का काढ़ा बहुत आराम देता है।
– अपच में प्याज के रस में नमक मिलाकर पी जायें। काफी आराम मिलेगा।
– मूली काटकर उस पर कुछ बूंदें नींबू का रस, सेंधा नमक, काली मिर्च, अजवायन का चूर्ण बुरक कर खाने से अजीर्ण तथा कब्ज दूर होता है।
– छोटी पीपल (पिप्पली) का महीन चूर्ण 10 ग्राम लेकर 1-1 ग्राम की पुड़िया बना लें। 1-1 पुड़िया प्रात:-सायं गुनगुने दूध 1 प्याला के साथ लें।
– आधा चम्मच पपीते का दूध, चीनी के साथ लेने से अजीर्ण खत्म हो जाता है।
– भोजन के बाद या पहले अदरक खाने से आफरा व अजीर्ण मिटता है।
– भोजन के प्रथम अदरक और सेंधा नमक के साथ खाने से व जम्बीरी नीबू के रस का सेवन करने से अजीर्ण रोग दूर होता है।
– भोजन करने के पश्चात् पीपल के चूर्ण को शहद के साथ लेते रहने से अजीर्ण नहीं होने पाता है। यदि वह हुआ तो शीघ्र दूर हो जाता है।
– अजवायन 4 ग्राम, काला नमक 4 ग्राम, तुलसी पत्र (सूखे) 2 ग्राम, हींग आधा ग्राम। इन सबकी एक मात्रा बनाकर दिन में तीन बार प्रयोग कराने से उदर के अधिकांश रोग नष्ट होते हैं। इससे अजीर्ण, आफरा, गैस का अत्यधिक बनना, पेट दर्द आदि रोग दूर होते हैं।
– छाछ में लवण भास्कर चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार प्रयोग करने से अजीर्ण ठीक हो जाता है व पखाना भी साफ होगा।
– तेल-घी से बनी हुई वस्तुओं के अत्यधिक सेवन करने से उत्पन्न अजीर्ण होने पर छाछ में सेधा नमक मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण शान्त होता हैं तथा पाचन शक्ति बढ़ती है।
– आँवले के चूर्ण में शहद मिलाकर चाटने से अजीर्ण रोग में लाभ होता है। यदि शहद न हो तो घी में मिला लें या घी के साथ भी अच्छा न लगे तो आँवले के चूर्ण की फंकी मारकर पानी पीने से भी अजीर्ण रोग दूर होता है।
– 1 नीबू के रस में 5-6 चम्मच बूरा या चीनी पिसी हुयी मिलाकर खाना खाने से एक घंटा पहले धीरे-धीरे चाटने से सब कुछ खाया हुआ पच जाता है।
– खाने वाला मीठा सोडा 1 चम्मच, 1 चम्मच बूरा दोनों को खाने के बाद पानी से फंकी लेने से अजीर्ण में फायदा होता है।
– खाने का सोडा एक चौथाई चम्मच (2 ग्राम) दो-तीन घूंट पानी में मिलाकर पीना चाहिये।
– अदरक के 2 चम्मच रस में थोड़ा सा शहद या गुड़ मिलाकर पीने से बदहजमी दूर होती है। सोंठ, अजवायन 10 ग्राम, काला नमक 3 ग्राम महीन पीसकर दो-दो चम्मच पानी से दें।
अजीर्ण का बायोकेमिक व होमियोपैथिक इलाज
फेरम फॉस – पाचन क्रिया की गड़बड़ी, ज्वर की प्रथमावस्था में इसका प्रयोग नितान्त लाभदायक है। अग्रिमांद्य, दूध में अरुचि, नींद न आना, खाई हुई वस्तु जैसी की तैसी वमन द्वारा निकल जाये। नींद न आना आदि लक्षणों में फेरम फॉस 12x दें।
कालीम्यूर 3x – जीभ मैली, भूरी-सी लेप, यकृत का निष्क्रिय होना, मुंह का स्वाद फीका, तली वस्तुओं के सेवन से तबियत खराब मालूम पड़े, कब्जियत आदि लक्षणों में इसका प्रयोग लाभकर रहता है।
नैट्रम म्यूर 3x – मुँह में पानी भर आना व श्वास लेने में दुर्गंध आना, तेज प्यास व भूख लगने की दशा में लाभप्रद है।
नेट्रम फॉस 3x – खटटी डकारें आना, जीभ व तालू पर सफेद मैल जमा हो जाये।
नक्स वोमिका 30 – भोजन के कुछ समय बाद पेट में वायु होना, पेट में दर्द, पेट का भारी होना एवं सीने में जलन महसूस होना।
पल्सेटिला 30 – खाने के डेढ़ दो घण्टे बाद पेट में गड़बड़ी महसूस होना, प्यास न लगना, मुँह में खटटा पानी, खटटी डकारें, पेट में जलन एवं बोझ-सा महसूस होता हो ता उपर्युक्त औषधि देने से लाभ होता है।
कार्बोवेज 30 – उस स्थिति में दें- यदि पाचन धीमी गति से होता हैं, भोजन पचने से पहले सड़ने लगता हो। पेट में हवा, हवा का दबाव छाती की ओर, छाती में वायु के कारण चुभन महसूस होती हो एवं खटटी डकारें आती हों। कभी-कभी वायु के दबाव के कारण हृदय की धड़कनें भी मंद हो जाती हैं। वायु खारिज होने पर रोगी यदि आराम महसूस करता हो।
चायना 30 – यदि पूरे पेट में वायु का अनुभव हो, डकारें आती हों किन्तु डकारों से राहत महसूस नहीं होती। खाना खाने की इच्छा नहीं होती। रोगी बार-बार ठण्डा पानी पीना चाहता है। ऐसे रोगी को यह औषधि अत्यंत लाभ पहुँचाती है।
लाइकोपोडियम 30 – यह औषधि उस रोगी को दें जिसे भूख तो महसूस होती है किन्तु थोड़ा खाते ही पेट फूल जाता हो। हर समय कब्ज रहता हो। टट्टी नहीं आती हो एवं सिरदर्द रहता हो।
अर्जेन्टम नाइट्रिकम 30 – पेट में हवा, हरे दस्त लगना, पेट में हवा के कारण दर्द, हवा से पेट फूल जाना। हवा गड़गड़ाती है किन्तु निकल नहीं पाती। दर्द किसी एक स्थान पर नहीं रुकता, पेट में चारों ओर फैलता है और फिर शाँत भी हो जाता है।
सल्फर 30 – थोड़ा-सा खाने से ही पेट भर जाता है और फूल जाता है। रोगी स्टार्च युक्त भोजन नहीं पचा पाता। दूध पीता है तो उल्टी हो जाती है। ऐसी शिकायतों के लिये यह उत्तम औषधि है।