किसी भी स्राव में बहुत अधिक सड़ी बदबू आना, बराबर प्रलेपक ज्वर (hectic fever) का बना रहना और उसके साथ हो तो इसका प्रयोग करना लाभदायक होगा। इसका प्रयोग तीन तरह से होता है – (1) भीतरी सेवन (2) बाहरी सेवन (3) स्टीम ऑटोमाइजर नामक यंत्र द्वारा धुँआ करके रोगी को सांस से ग्रहण कराना।
निमोनिया, थाइसिस – जब फेफड़े से बहुत बदबूदार पीले या हरे रंग की गाढ़ी पीब या मक्खन की तरह का बलगम निकला करता है, प्रलेपक ज्वर रहता है और रात में पसीना आता है, तब इससे लाभ होना सम्भव है। इसका रोगी खांसता है और ढेर सारा बलगम निकलता है कभी-कभी खांसने पर बलगम के साथ खायी हुई चीज भी कै के साथ बाहर निकल जाती है। इसका श्लेष्मा सरल और घड़-घड़ शब्द करने वाला होता है।
पुराना सर्दी जुकाम – श्लेष्मा में ज्यादा बदबू, नाक से सड़ी हुई बदबू निकलना, पास बैठने से घृणा मालूम होती है, नाक से बहुत अधिक मात्रा में गाढ़ा श्लेष्मा निकलना। नाक के छेद में घाव और क्षत हो जाता है।
घाव – किसी भी प्रकार के चर्मरोग (एक्ज़िमा) के साथ घाव, उस घाव से लगातार गाढ़ा बदबूदार स्राव और पीब निकलता है। सूखी और तर खुजली, स्तन की घुण्डी में घाव, शय्याक्षत तथा और सभी तरह के सड़े घावों में इसका मूल – अर्क 15 बूंद – 1 औंस बेसिलिन या अण्डे के पीले अंश के साथ मिलाकर बाहरी प्रयोग करने से घाव की बदबू जल्दी ही नष्ट हो जाती है और घाव भी भर जाता है, खाज-खुजली में मूल अर्क का प्रयोग करने से लाभ होगा।
पेशाब – पेशाब बहुत कम मात्रा में होता है और उसकी तली में श्लेष्मा रहता हैं ।
आमाशय – पुरानी पेचिश की अवस्था में मल के साथ बदबूदार पीब और आंव ज्यादा परिमाण में आती है।
मात्रा – 2x, 3 शक्ति (प्रलेपक ज्वर में 6x शक्ति)।