बनफशा का परिचय : 1. इसे वनपुष्पा (संस्कृत), बनफशा (हिन्दी), बनोशा (बंगला), बयिलेट्टू (तमिल), बनफसज (अरबी) तथा वायोला आडोरेटा (लैटिन) कहते हैं।
2. बनफशा का पौधा छोटा, लगभग 4-5 अंगुल का होता है। बनफशा के पत्ते गोल, हृदय के आकार के होते हैं। नीचे का पृष्ठ रोयेदार होता है। बनफशा के फूल गुच्छों में, नीले-बैंगनी रंग के और सुगन्धित होते हैं। बनफशा की जड़ पतली और लम्बी होती है।
3. यह कश्मीर तथा पश्चिमी हिमालय में 5 हजार फुट की ऊँचाई पर मिलता है।
4. इसकी कई जातियाँ अनेक कामों में लायी जाती हैं।
रासायनिक संघटन : इसकी जड़ तथा फूल में वायोलीन नामक वमनकारी पदार्थ रहता है। फूलों में एक उड़नशील तेल, वायोला क्वासिट्रिन नामक पीला पदार्थ, कई रंजक-द्रव्य, शर्करा तथा मेथिल सैलिसिलिक ईस्टर नामक ग्लूकोसायड होता है।
बनफशा के गुण : यह स्वाद में मीठा, कड़वा, पचने पर मीठा तथा हल्का, चिकना और शीतल है। इसका मुख्य प्रभाव श्वसन-संस्थान पर कफहर रूप में पड़ता है। यह दाहशामक, शोथहर, हलका, वामक, विरेचक (वायु-अनुलोमक), रक्त-स्तम्भक और स्वेदजनक है।
बनफशा का प्रयोग
1. पित्तशांति : शरीर में विभिन्न प्रकार की गर्मी, रक्त में तीक्ष्णता तथा तृष्णा शान्त करने के लिए इसका काढ़ा लाभदायक है।
2. खाँसी में बनफशा फायदेमंद : खाँसी, जुकाम तथा श्वास, पार्श्वशूल एवं ज्वर में इसका गर्म काढ़ा देना चाहिए। इससे बहुत लाभ होता है और पेट की शुद्धि भी होती है।