बिस्तर पर पड़े रहने के कारण शरीर में किसी जगह जख्म हो जाने को ‘शय्या-क्षत‘ या ‘शय्या-व्रण‘ कहते हैं ।
बेड सोर रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
अर्जेण्टम-नाइट्रिकम 3, 30 – यदि शय्या-क्षत पर रक्त-मिश्रित खुश्क-पपड़ी (खुरण्ड) जम गई हो तो इसका प्रयोग करना चाहिए।
आर्निका 3, 30 – नितम्ब प्रदेश अथवा उससे ऊपर की तिकोनी हड्डी वाले स्थान पर जख्म हो जाने पर इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
सल्फर 30, 200 – यदि ऐसे जख्म हो जाय, जिनके टिश्यूज मृत प्राय: हों तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए।
लैकेसिस 30, 200 – यदि शय्या-क्षत के जख्मों के नीले अथवा काले दाग पड़ जाय तो इसका प्रयोग करना चाहिए । ऐसी स्थिति प्राय: ‘टायफाइड’ में होती है ।
हाइपेरिकम ऑयल – टाइफाइड आदि रोग में बिस्तर पर पड़े रहने के कारण यदि शय्या-क्षत हो जाय तो इस तैल तो लगाना लाभकर रहता है । जैतून अथवा सरसों के गरम तैल में ‘हाइपेरिकम‘ औषध के मूल-अर्क को सम भाग मिला लेने से यह तैल तैयार हो जाता है ।
कैलेण्डुला – पूर्वोक्त औषधियों का सेवन कराने के अतिरिक्त ‘कैलेण्डुला‘ मदर-टिंकचर को गरम पानी में डालकर लोशन तैयार कर लें तथा उसके द्वारा जख्म को धोयें अथवा इस औषध के मूल-अर्क में रुई को भिगोकर, उसे जख्म पर रख दें । इन दोनों ही विधियों में लाभ होता है ।