[ यूरोप के एक प्रकार के वृक्ष की जड़ की छाल से बनी हुई दवा] – बर्बेरिस का चरित्रगत दर्द – पहले एक या दोनों ओर की किडनी ( मसाने ) से आरम्भ होकर, मूत्रनली ( युरेटर ) में से होते हुए मूत्रस्थली ( ब्लैडर ) में, और वहाँ से पेशाब की राह ( यूरेथ्रा ) में चला आता है ; और इसी समय मूत्रनली और यूरेथ्रा में बहुत जलन होती है। मूत्र-पथरी के दर्द में इस तरह के लक्षण अकसर रहते हैं। मसाने ( किडनी ) और यकृत पर इसकी प्रधान क्रिया होती है। कमर में दर्द, पथरी, भगन्दर ( fistula in ano ), भगन्दर में नश्तर लगवाने के बाद खाँसी और छाती की बीमारी; पेशाब की बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों के वात और गठिया-वात, गुर्दे का शूल ( nephritic colic ), गुर्दे का प्रदाह ( नेफ्राइटिस ), वीर्य-रज्जु और अण्डकोष का स्नायुशूल, योनि-प्रदाह (vaginitis) और पित्तज-अतिसार इत्यादि कुछ बीमारियों में भी – बर्बेरिस लाभदायक है।
मूत्र और पित्त पथरी – पित्त-पथरी और मूत्र-पथरी ( biliary calculi, renal calculi) दोनों तरह की बीमारयों में पथरी निकलने के समय जब कुछ घँसने जैसा दर्द होता है, रोगी में हिलने तक की शक्ति नहीं रहती, दर्द मसाने से आरम्भ होकर पैर की ओर उतर आता है और रोगी बार-बार पेशाब करने की इच्छा प्रकट करता है, उस समय – बर्बेरिस मंत्र-शक्ति की तरह काम करती है।
बर्बेरिस का प्रयोग करते समय – पेरिटोनाइटिस ( आन्त्रावरक परदे का प्रदाह) हो, चाहे जरायु का प्रदाह ( metritis ) या मसाने की ही बीमारी क्यों न हो-नीचे लिखे लक्षण स्मरण रखें: ये ही इसके प्रधान चरित्रगत लक्षण है:-
- गुर्दे से मसाने तक कटने-फटने जैसा दर्द।
- दबाने पर दर्द का बढ़ना, यकृत से पित्त निकलने की क्रिया का घट जाना।
- दर्द बाएं गुर्दे से आरम्भ होकर मूत्र निकलने की नली (युरेटर) से होता हुआ मूत्राशय में और वहाँ से फिर मूत्र की राह में चला आता है।
- कमर में जबरदस्त दर्द ; और कमर तथा गुर्दे में ऐसा मालूम होना जैसे कुछ बुदबुदा रहा हो। पेशाब के समय जाँघ और कमर में दर्द।
- कमर कड़ी और जकड़ी-सी, चूतड़ और कमर में जोर का दर्द।
- पित्त-पथरी शूल का दर्द – इसके साथ ही कामला, कीच या राख के रंग का दस्त आना।
- पेशाब हरी आभा-युक्त या खूनकी तरह लाल, तली में गाढा श्लेष्मा।
- पेशाब लगने पर वेग नहीं रोका जा सकता, हिलने-डोलने पर ही पेशाब सम्बन्धी तकलीफ बढ़ जाती है।
वात – वात में बेन्जोइक ऐसिड, कैल्केरिया, लाइकोपोडियम आदि दवाओं के साथ इसके प्रभेद का निर्णय करके इसका प्रयोग करना चाहिये। बर्बेरिस में – रोग वाली जगह पर खदबद करने और कटने-फटने जैसा दर्द रहता है।
कमर का वात ( lumbago ) – डॉ० ऐलेन का कहना है और मैंने भी देखा है – पहले कमर में दर्द हो और वह दर्द समूचे शरीर में फैल जाये, कमर से उरु तक उतरे और उसके साथ पेशाब का रंग लाल हो और उसमें श्लेष्मा की तली जमे, तो बर्बेरिस एक महौषध है। डॉ० ऐलेन का यह भी कहना है कि हाथ की उँगलियों के नख के नीचे की गाँठों में दर्द, तकलीफ और सूजन हो तो उसमें – बर्बेरिस से विशेष फायदा होता है।
यकृत की बीमारी – दाहिनी ओर के पंजरे के निचले भाग में धक्का लगने जैसा दर्द, यकृत की जगह से दर्द पैदा होकर पंजरे में धक्का देना और उस दर्द का कभी-कभी पेट में चला जाना ( पित्त-पथरी में यह लक्षण स्पष्ट रहता है ), इस लक्षण के साथ ही अगर बर्बेरिस के पेशाब के लक्षण रहें तो-बर्बेरिस ही यकृत की अमोघ दवा है।
मसाने की बीमारी – इस रोग के साथ कमर में जोर का दर्द, जो क्या सोने और क्या बैठने, सभी समय बढ़ता है; दर्द सवेरे बहुत अधिक होता है और वह कभी-कमी जाँघ तक चला जाता है। मसाने की जगह पर ऐसी बुदबुदाहट मालूम होती है जैसे वहाँ पानी इकठ्ठा हो रहा हो, मूत्रनली में या मूत्राशय से मूत्रनली तक कटने-फटने जैसा दर्द, पेशाब होने के पहले, होते समय और बाद में जलन – ये लक्षण चाहे किसी भी बीमारी में रहे, उसमें-बर्बेरिस उपयोगी दवा है। पैरिरा का दर्द – जाँघ तक और बर्बेरिस का दर्द – जंधा-सन्धि तक उतरता है।
अण्डकोष की बीमारी – अण्डकोष और शुक्ररज्जु के स्नायुशूल में बहुघा बर्बेरिस की 2-4 मात्रा देने से दर्द बहुत जल्द अच्छा हो जाता है।
बर्बेरिस में – पेशाब चमकदार पीला ( bright yellow ) या खून की तरह लाल ( blood-red ) होता है ; पेशाब की तली में बहुत श्लेष्मा जमा रहता है, पेशाब कभी-कमी गँदला और परिमाण में अधिक होता है।
बाधक वेदना – ऋतुस्राव बहुत थोड़ा होता है, दर्द तलपेट में चक्कर काटता हुआ जांघ में उतर आता है। ऋतु की गड़बड़ी या श्वेत-प्रदर की वजह से कमर में दर्द और उसके साथ पेशाब गँदला और उसमें श्लेष्मा रहता है।
सदृश – पथरी-रोग में – कैन्थर, लाइको, सार्सा और मेन्था। योनि-प्रदाह, योनि-शूल और उसके साथ ही बाधक-पीड़ा में – इसका चरित्रगत लक्षण रहे तो-बर्बेरिस देना चाहिये। सोराइसिस में – बर्बेरिस एक्युफोलियम।
बर्बेरिस होम्योपैथिक दवा का कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है, लक्षण मिलने पर इसका प्रयोग निःसंकोच किया जा सकता है।
क्रियानाशक – कैम्फर, बेल।
क्रिया का स्थितिकाल – 20 से 60 दिन।
क्रम – Q, 30 शक्ति।