इस रोग में गुदा के भीतर पहले छोटी फुंसी निकलती है। धीरे-धीरे फुंसी बड़ी होकर घाव में बदल जाती है। यदि शुरू में ही उसका इलाज़ नहीं किया जाता है तो वह नासूर का रूप धारण कर लेती है। इसी को भगन्दर कहते हैं। यह एक कष्टसाध्य रोग है। रोगी के प्राण हर समय उसी में पड़े रहते हैं।
इलाज़ – (1) त्रिफला सौ ग्राम, खैरसार पचास ग्राम, खदिरादि पचास ग्राम – इन सबको जौकुट करके बीस कप पानी में औटने को रख दें। पानी जब दो कप रह जाये तो उसे उतार लें। इसमें बायविडंग और भैंस का घी क्रमशः पाँच ग्राम और बीस ग्राम मिलाएँ। इस काढ़े में से दो चम्मच सुबह को नाश्ते के बाद पी लें। भगन्दर का रोग दूर हो जायेगा।
(2) पचास ग्राम त्रिफला, पांच ग्राम गुग्गुल, पाँच ग्राम दालचीनी, दो लाल इलायची, दस ग्राम चित्रकमुल, दस ग्राम अजवायन, दस ग्राम सोंठ, पाँच ग्राम नागरमोथा, दस ग्राम कायफल – सबको जौकुट करके पाँच किलो पानी में औटाएँ। जब पानी एक किलो रह जाये तो इसे ठण्डा करके छान लें। इसमें थोड़ी मिश्री या शहद मिला लें। इस काढ़े को नित्य प्रातः सायं दो चम्मच की मात्रा में लें। भगन्दर के रोग के साथ-साथ पेट के अन्य रोग भी भाग जायेंगे।
(3) त्रिफला के रस में वैसलीन मिलाकर उँगली से गुदा के भीतर दूर तक लगाएं। नासूर सूखने लगेगा।
(4) त्रिफला का चूर्ण दस ग्राम, बायविडंग दस ग्राम, खैरसार पाँच ग्राम, पीपल बीस ग्राम – सबको कूट पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ चाटें। इस दवा से पेट के कीड़े, प्रमेह, क्षय रोग तथा भगन्दर नष्ट हो जाता है।