[ हमारे यहाँ इस दवा का सिर्फ दमा की बीमारी में ही प्रयोग होता है ; और बहुधा इससे फायदे भी काफी होता है। जीवित तिलचट्टों से ब्लैटा ओरियेण्टैलिस का मूल अर्क बनता है ] – सुना है कि स्वर्गीय ईश्वरचंद्र विद्यासागर महाशय तिलचट्टों से मूल अर्क तैयार कर दमा के रोगियों को बगैर मूल्य के बाँटा करते थे और उससे बहुतेरे रोगी भी अच्छे हो जाते थे। 6-7 तिलचट्टे तीन पाव पानी में सिझाकर आधा पाव पानी रह जाने पर उसे उतार कर कपड़े में छानकर, सवेरे एक छटांक और तीसरे पहर एक छटांक पिलाने से श्वासकष्ट बहुत जल्द घट जाती है। घृणा न पैदा हो इसलिए रोगी से छिपाकर चाय के साथ सिझाकर उसमे दूध-चीनी मिलाकर पिलाने से भी उतना ही फायदा होता है। सीझ जाने पर उसमे तिलचट्टे की कोई गंध नहीं रहती।
इस औषधि का प्रयोग मूल रूप से दमा की बीमारी में ही होता है। जीवित तिलचट्टों से ब्लैटा ओरियेण्टैलिस का मूल अर्क तैयार किया जाता है। एक छंटाक सुबह और एक छंटाक तीसरे पहर पिलाने से श्वासकष्ट बहुत जल्द घट जाता है। सीझ जाने पर तिलचट्टो की कोई गन्ध नही आती है।
ब्लैटा Q और 2 x शक्ति, टिंचर या विचूर्ण जो भी हो, जब तक दमा का खिंचाव और जोर ज्यादा रहे, तब तक इसका प्रयोग करना चाहिए और जोर घट जाने पर उच्च शक्ति का प्रयोग करना चाहिए, नही तो सर्दी न निकलकर बहुत कष्टदायक खांसी हो सकती है।
मात्रा – 2 से 200 शक्ति। रोग के दौरान निम्न शक्तियां। आक्षेप के बाद बची खांसी के लिए उच्च शक्तियां दें। सुधार होने पर औषधि देना बन्द कर दें।