परिचय : 1. इसे ब्राह्मी (संस्कृत), बिरमी या ब्राह्मीबूटी (हिन्दी), ब्राह्मीशाक (बंगाली), ब्रह्ममण्डूकी (मराठी), विद्याब्राह्मी (गुजराती) तथा हथैस्टिस मोतिशरा (लैटिन) कहते हैं।
2. भूमि पर फैलनेवाला यह छोटा पौधा पानी के निकट बरसात में अधिक होता है। ब्राह्मी के पत्ते कुछ गुर्दे की आकृति के, कंगूरेदार, आधे से ढाई इंच चौड़े, फूल छोटे नीलापन लिये सफेद या ललाई-युक्त तथा फल छोटे-छोटे कई साल तक लगते हैं। ब्राह्मी पौधों की गाँठों से शोरियाँ निकलकर जमीन में घुस जाती हैं। ब्राह्मी की जड़ पतले धागे की तरह होती है।
3. यह भारत में पहाड़ी प्रदेशों की सूखी, मैदानी तथा जल के समीपवाली जमीन में अधिक पैदा होती है।
4. ब्राह्मी के स्थान पर उसके समान आकृतिवाली दूसरी वनस्पति ‘मण्डूकपर्णी’ का भी आजकल प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक संघटन : इसमें ब्राह्मी नामक तत्त्व (एल्केलायड) होता है। पत्तियों में जल 78 प्रतिशत और कुछ उड़नशील तेल होता है, जो सूखने पर उड़ जाता है। सूखी पत्तियों में राल, टेनिन, एल्ब्यूमिन साल्ट, निर्यास, शर्करा, वसामय सुगन्धद्रव्ययुक्त भस्म (एश) 12 प्रतिशत होती है।
ब्राह्मी के गुण : यह स्वाद में तित्त (कड़वी) तथा कषाय, पचने पर मधुर तथा गुण में हल्की और शीतल होती है।
ब्राह्मी के प्रयोग
कब्ज (Constipation) – रोजाना ब्राह्मी के उपयोग से पुराने कब्ज को भी ठीक किया जा सकता है। पेट के हर बीमारी के लिए ब्राह्मी उपयोगी है।
नींद न आना – जब नींद न आये तो रोजाना सुबह एक गिलास दुध में ब्राह्मी मिलाकर लेने से नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है।
उच्च रक्तचाप – ब्राह्मी का उपयोग शहद के साथ करने से उच्च रक्तचाप को सामान्य हो जाता है।
बालों की समस्या – बाल के हर प्रकार के समस्या के लिए ब्राह्मी बहुत उपयोगी है। रोजाना ब्राह्मी के सेवन से बाल काले, घने, जड़ से मजबूत और रुसी से भी निजाद मिल जाता है।
हृदय की समस्या – हृदय की बिमारियों में ब्राह्मी बहुत उपयोगी है। ब्राह्मी में मिलने वाला तत्त्व एल्केलायड हृदय को हमेशा स्वस्थ रखता है।
दांत दर्द – एक गिलास गुनगुने पानी में ब्राह्मी मिलकर रोजाना कुल्ला करने से दांत दर्द में राहत मिलता है।
विभिन्न रोगों पर : इसका मुख्य प्रभाव वातनाड़ी-संस्थान (नर्वस-सिस्टम) पर पड़ता है। ब्राह्मी मुख्यत: मेध्य (मस्तिष्क) को बलदायक है। बौद्धिक कार्य करनेवाले विशेषत: विद्यार्थियों के लिए यह सेवनीय है। सम्पूर्ण पौधा काम आता है। स्वरस (ताजा रस) 1 से 2 तोला, मूल चूर्ण 3 से 12 रत्ती और पंचांग 3 से 6 माशा लेना चाहिए।