इस ज्वर का कारण Brucella कीटाणु है जो बकरियों में पाया जाता है । स्वस्थ मनुष्य को बकरी या गाय का कच्चा दूध पीने से यह रोग हो जाया करता है । गाय को यह रोग हो जाने पर उसका गर्भ गिर जाता है । स्त्री को यह रोग होने पर उससे सम्भोग करने पर पुरुष को यह रोग हो जाता है। यह ज्वर एकाएक शुरू हो जाता है। (चिकित्सक और बुद्धिजीवी रोगी इसको इन्फ्लुएंजा फीवर समझ लेते हैं) इससे ग्रसित रोगी बहुत कमजोर हो जाता है। कंपन व सर्दी लगकर ज्वर हो जाता है। चिड़चिड़ापन, पेट में दर्द, भूख न लगना, कब्ज, सिरदर्द, अजीर्ण, जीभ मैली (परन्तु जीभ के किनारे गुलाबी) इत्यादि लक्षण होते है। इस ज्वर में पसीना अधिक आता है। शरीर पर गर्मी के दानों की भांति छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं । ज्वर का दर्जा शाम को अधिक तथा प्रात:समय कम होता है । रोगी के जोड़ों में दर्द होता है । तिल्ली बढ़ जाती है, कमर में दर्द, शारीरिक कमजोरी, थकावट, ज्वर उतरने पर रोगी का पसीने से भीग जाना, माँसपेशियों, पुट्ठों में दर्द, रीढ़ की हड्डी में शोथ (spondylitis) हो जाती है। इस ज्वर का प्रभाव कई मास तक शरीर में रहता है। ज्वर कभी चढ़ता है कभी उतरता है और फिर चढ़ जाता है। रात को पसीना आकर ज्वर उतर जाता है।
ब्रूसीलोसिस का एलोपैथिक चिकित्सा
नोट – रोगी को बिस्तर पर लिटाये रखें। चलने-फिरने से ज्वर लम्बे समय तक नहीं उतरता है।
रोग पर काबू पाने के लिए आधी ग्राम का इन्जेक्शन स्ट्रेप्टोमायसिन वाटर फार इन्जेक्शन में भली प्रकार घोलकर प्रत्येक 12 घण्टे के अन्तराल से बाद नितम्ब में लगायें।
टेट्रासायक्लिन के प्रथम दिन दो कैप्सूल तदुपरान्त 1-1 कैप्सूल प्रत्येक 5-6 घण्टे के अन्तराल से 3 सप्ताह तक खिलायें ।
इन्जेक्शन स्ट्रेप्टोमायसीन के साथ सल्फा ग्रुप की टिकिया आयु तथा रोगानुसार भोजनोपरान्त खिलायें । खाली आमाशय में सेवन न करायें ।
रानाक्सिल (रैनबैक्सी कम्पनी) – वयस्कों को 250 से 500 मि.ग्रा. के कैप्सूल तथा बच्चों को इसी नाम से उपलब्ध सीरप आयु तथा रोगानुसार प्रतिदिन कई मात्राओं में विभाजित कर सेवन करायें ।
सुबामायसिन (डेज कम्पनी) – वयस्कों के लिए 250 मि.ग्रा के कैप्सूल बच्चों के लिए डिस्पर्सेबुल टैबलेट तथा तीव्र दशा के लिए 500 मि.ग्रा के टैबलेट्स आवश्यकतानुसार 12.5 से 25 मि.ग्रा. प्रतिकिलो शारीरिक भार के अनुसार प्रतिदिन कई मात्राओं में बाँटकर दें ।