परिचय : 1. इसे एरण्ड (संस्कृत), रेंडी – अण्डी (हिन्दी), भोंड़ा (बंगाली), एरण्ड (मराठी), एरडी (गुजराती), अमनकु (तमिल), एरामुडपु (तेलुगु), खिर्वअ (अरबी) तथा रिसिनस कांम्युनिस (लैटिन) कहते हैं।
2. एरंड का पेड़ (गुल्म) छोटा, 5 से 12 फुट ऊँचा होता है। पत्ते हरापन या ललाई लिये, 1-1 फुट के घेरे में, गोलाकार, कटे हुए, अँगुलियों सहित हथेली के आकार-से, 4-12 इच्च लम्बे और पीले डंठल पर लगे होते हैं। फूल पीलापन लिये गुच्छे में मोटे डंठल पर रहते हैं। एरण्ड के फल गोल, कई एक साथ, कोमल काँटों से युक्त, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर धूसर वर्ण के होते हैं। वे पक जाने पर सूर्य की गर्मी से फट जाते हैं। प्रत्येक एरण्ड के फल में तीन-तीन बीज, ललाई लिये काले रंग के, सफेद चितकबरे होते हैं।
3. यह सारे भारत में होता है, मद्रास, बंगाल तथा बम्बई प्रदेशों में इसकी अधिक खेती की जाती है।
4. एरण्ड की दो जातियाँ हैं : श्वेत एरण्ड (पूर्व-वर्णित) तथा रक्त एरण्ड। छोटे तथा बड़े बीजों के अनुसार इसके और दो प्रकार हो जाते हैं।
श्वेत एरण्ड : बुखार, बलगम, पेट में दर्द, शरीर में किसी भी अंग में सूजन, शरीर में दर्द, सिर दर्द, कमर में दर्द, अंडकोष वृद्धि को ठीक करने के काम आती है।
रक्त एरण्ड : पेट में कीड़े, बवासीर ( Piles ), भूख ना लगना, पीलिया संबंधी रोगों को ठीक करता है।
एरंड के बीज : एरंड के बीज सफ़ेद रंग के चिकनाहट लिए होते हैं। एरंड के बीजों में गूदा होता है जो बदन में दर्द, सिर में दर्द, मुहाँसे और यकृत संबंधी हर रोगों में लाभदायक है।
एरण्ड का तेल : एरण्ड का तेल बहुत सारे रोगों के लिए लाभदायक है। पेट संबंधी बीमारियां, चेहरे के कील-मुहांसे, पेट में दर्द, कमर में दर्द और गुदा के रोगों को ठीक करता है।
एरण्ड के फूल : एरण्ड के फूल लाल बैंगनी रंग के एक लिंगी होते हैं। एरण्ड के फूल सर्दी के सभी रोगों जैसे सर्दी-जुकाम, ठण्ड से बुखार, बदन दर्द बलगम आदि के लिए लाभदायक है।
रासायनिक संघटन : इसमें स्थिर तेल 45 प्रतिशत, मांसाहार (प्रोटीन) 20 प्रतिशत, भस्म (एश) 10 प्रतिशत, स्टार्च, शर्करा, म्युसिलेज, बीजों में राइसिन नामक एक अत्यन्त विषैला तत्व होता है।
एरण्ड के गुण : यह स्वाद में मीठा, चरपरा, कसैला, पचने पर मीठा, भारी, चिकना, गर्म और तीक्ष्ण होता है। इसका मुख्य प्रभाव वातनाड़ी-संस्थान पर पड़ता है। यह शोथहर-पीड़ानाशक, विरेचक, हृदयबलदायक, श्वासकष्टहर, मूत्रविशोधक, कामोत्तेजक, गर्भाशय और शुक्र-शोधक तथा बलदायक है।
अरण्डी का तेल के फायदे
1. आमवात : आमवात की (सटेज्म) गाँठों में सूजन और दर्द होने पर 1 तोला अरण्डी तेल में 3 माशा सोंठ का चूर्ण मिलाकर देने से लाभ होता है।
2. कमर-दर्द : एरण्ड-बीजों का छिलका निकाल उसकी आधा पाव (10 तोला) गिरी एक सेर गाय के दूध में पीसकर पकायें। मावा (खोया) जैसा बन जाने पर उतार लें। यह 1-2 तोला तक सुबह-शाम सेवन करने से कमर-दर्द, गृध्रसी (साइटिका) और पक्षाघात में आराम होता है।
3. टिटनेस : धनुस्तम्भ, हिस्टीरिया, आक्षेप और जकड़न में अरण्डी-तेल से मालिश कर सेंकना चाहिए।
4. रक्त-आमातिसार : एरण्ड की जड़ को दूध के साथ पीने से रक्त-आमातिसार मिट जाता है।
5. श्लीपद : श्लीपद (फायोलेरिया) पर अरण्डी-तेल गोमूत्र में मिलाकर एक मास तक पीने से लाभ होता है।
6 . वृक्कशूल-पथरी : दर्द गुर्दा (वृक्कशूल) और उदरशूल में एरण्ड की जड़ का काढ़ा सोंठ डालकर पीने से लाभ होता है। इसमें हींग और नमक मिलाने से पथरी भी निकल जाती है।
7. मलबन्ध-बवासीर : मलबन्ध कब्ज बवासीर और आँव में अरण्डी का तेल 5 तोला पिलाने से लाभ होता है। उससे विरेचन होकर वायु का अनुलोमन हो जाता है।
8. शोथ : किसी स्थान पर शोथ (सूजन) या वेदना (दर्द) हो, वहाँ अरण्डी-तेल लगाकर उसी के पत्तों को गर्म करके बाँध देना चाहिए।
9. योनि-शूल : योनि-शूल में अरण्डी-तेल में रूई का फाहा भिगोकर योनि में रखने पर लाभ होता है। प्रसवकाल के कष्ट में भी इसका प्रयोग करना चाहिए।
10. अाँखों की जलन : कभी आँखों में सोडा, चूना, आक आदि का दूध पड़ जाय तो 1-2 बूंद अरण्डी-तेल आँखों में डालने से जलन और दर्द में शीघ्र आराम हो जाता है।
11. चर्म रोग : एरण्ड के जड़ को पानी में उबाल कर उस पानी को त्वचा पर लगाने या धोने से चर्म रोग का नाश होता है।
12. बालों के लिए वरदान : रोजाना सिर के बालों की मालिश एरण्ड के तेल से करने पर बाल काले, घने, चमकीले और जिनके बाल कम हो गए हों पुनः वापिस आ जाते हैं।
13. काँच खा लेने पर : काँच खा लेने पर एरण्ड का तेल पिला देने से नुकसान नहीं होता।