इस रोग में आँख की पुतली पर एक तरह का पानी सा उतरने लगता है जो धीरे धीरे जमता जाता है। रोगी को ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी पुतली पर परदा सा पड़ गया है। लगभग तीन वर्ष बाद यह पानी जमकर पत्थर जैसा कठोर हो जाता है जिससे रोगी को दिखाई देना पूर्णतः बंद हो जाता है। इस अवस्था में मोतियाबिंद का एक मात्र इलाज़ ऑपरेशन ही रह जाता है अतः रोगी की प्रथमावस्था में ही इलाज़ प्रारम्भ कर देना चाहिए।
सिनेरेरिया मेरिटिमा सक्कस – यह आँखों में डालने वाली एक पेटेंट दवा है जो अनेक लॅबोरेट्रियों ने इसी नाम से या इससे मिलते जुलते नाम से बनाई है। मोतियाबिंद रोग का प्रारम्भ होते ही इस दवा की दो दो बूँद दोनों आँखों में प्रतिदिन तीन बार के हिसाब से कई महीनो तक लगातार डालनी चाहिए। इससे मोतियाबिंद बढ़ना रुक जायेगा और जो बन चुका है वो भी काटने लगेगा। मोतियाबिंद ठीक हो जाने के बाद भी इसे दो महीने तक और डालना चाहिये। जैसे की हमने बताया कि यह दवा अनेक कम्पनियों ने बनाई है लेकिन किसी अच्छी कंपनी की बनी हुई लेनी चाहिए। धयान रखने की बात यह है कि अगर मोतियाबिन्द पुराना पड़कर पूर्णतः पक चुका हो तो इस दवा से कोई लाभ नहीं होगा।
पढ़े मोतियाबिंद का होम्योपैथिक दवा
कल्केरिया फ्लोर 12x – इस दवा को लेने से मोतियाबिंद में लाभ होता है। यह दवा मोतियाबिंद को कड़ा पड़ने से रोकती है। साथ ही. उपरोक्त दवा आँखों में डालते रहना भी चाहिये ।
जिंकम सल्फ CM – कुछ चिकत्सकों का कहना है कि साधारण मोतियाबिन्द में इसकी केवल एक मात्रा ही देना लाभप्रद है। लेकिन अगर मोतियाबिंद में कॉर्निया अपारदर्शी हो जाये तो दवा की एक एक मात्रा दो दो माह के अंतर से देना लाभप्रद है। इस प्रकार दोनों से कॉर्निया पुनः पारदर्शक हो जाता है । जिससे मोतियाबिंद ठीक हो जाता है ।
अनुभव – कल्केरिया फलोर 12x, काली मयूर 12x, नैट्रम सल्फ 12x, साइलीशिया 12x – इन चारों दवाओं को मिलाकर दिन में चार बार प्रयोग करने से आँखों का जाला, कम दिखाई देना व मोतियाबिन्द आदि में तीन चार माह में पूरा पूरा लाभ हो जाता है।