यह बीमारी अधिकतर गर्दन में रीढ़ की हड्डियों में परिवर्तन की वजह से होती है, जिसकी वजह से दो रीढ़ की हड्डियों के बीच में जगह की कमी हो जाती है।
सरवाइकल के लक्षण
इस बीमारी में सबसे पहले गर्दन में भारीपन, फिर उसके घुमाने में परेशानी महसूस होती है। रोगी को अगल-बगल में देखना होता है, तो वह सिर को गर्दन एवं शरीर के साथ घुमाता है। यह इस रोग का पहला लक्षण है। इसके बाद मरीज ‘सर्वाइकल’ नर्व के ऊपर दबाव की वजह से हलका-हलका दर्द सिर के पहले भाग में महसूस करता है। फिर दर्द हाथ की तरफ बढ़ता है। कभी-कभी दर्द के साथ झनझनाहट भी महसूस होती है। सिर के पिछले भाग में दर्द एवं चक्कर जैसे लक्षण भी होते हैं।
सरवाइकल के कारण
इस रोग के होने के कारण हैं – हड्डी में आन्तरिक खराबी होने की प्रक्रिया से जोड़ों के ऊपर उम्र का प्रभाव, जोड़ों के ऊपर चोट का असर, अत्यधिक मोटापा, गलत ढंग से उठने, बैठने, लेटने के कारण उत्पन्न तनाव, अत्यधिक परिश्रम, थकावट, नीद न आना और नशीली वस्तुओं का प्रयोग, रीढ़ की हड्डी में बदलाव की स्थिति, बहुत ऊंचा तकिया, फोम के गद्दे पर सोने से रीढ़ की हड्डी में परिवर्तन होना, गलत ढंग से बैठकर काफी देर तक टी.वी.देखना, देर तक स्कूटर या कार का चलाना, अत्यधिक मानसिक तनाव आदि।
गर्दन दर्द का उपचार
यदि समुचित उपचार न किया जाए, तो यह रोग आगे चलकर भयंकर रूप ले सकता है। मोटापा कम करना, ठीक ढंग से उठना-बैठना एवं सोना, शारीरिक एवं मानसिक तनाव को कम करना, डायथर्मी या इन्फ्रारेड किरणों से सिंकाई, चिकित्सा संबंधी गर्दन की कसरत करना, तख्त या फोम रहित बेड पर सोना, साथ में छोटे एवं पतले तकिये का प्रयोग इसमें अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुआ है।
सरवाईकल का उपचार के लिए काम आने वाली कुछ होमियोपैथिक दवाएं और उनके खास लक्षण : ‘आर्निका मोन्ट’ चोट लगने से एवं उसके दुष्प्रभाव से उत्पन्न स्थिति में।
‘बेलाडोना’ – सूजन ज्यादा होने पर पहली अवस्था में दी जा सकती है।
‘ब्रायोनिया’ – जरा-सा भी काम करने से रोग का अत्यधिक बढ़ जाना एवं पूर्ण विश्राम की स्थिति में आराम।
‘कैल्केरिया फ्लोर’ – हड्डी में हुए परिवर्तन के लिए अत्यधिक उपयोगी औषधि।
‘कॉस्टिकम’ – दाहिने तरफ ज्यादा परेशानी, जोड़ों से उनके हिलने पर आवाज का होना।
‘रसटॉक्स’ – बाईं तरफ लक्षण का ज्यादा होना एवं थोड़ा चलने या काम करने से आरामा।
यदि गर्दन आगे झुकाने पर परेशानी बढ़े तो ‘काक्युलस’ 30 शक्ति में लें।