मोटापा घटाने के लिए नाश्ते में चना और चाय लें।
कुष्ठ रोग – अंकुरित चना 3 वर्ष तक खाते रहने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
शक्तिवर्धक – (1) 250 ग्राम चने एक किलो पानी में रात को भिगो दें। चाँदनी रात हो तो इन्हें चाँदनी में रखें। प्रात: उनको इतना उबालें कि चौथाई पानी रह जाए। इस पानी को पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। (2) 50 ग्राम ताजा हरे चने (हरे छोले छिले हुए) नित्य खाने से शक्ति बढ़ती है। चना स्वादिष्ट बनाने के लिए घी की अपेक्षा तेल से छौंकना अधिक लाभदायक है। चने ठण्डे, ज्वरनाशक और वीर्यशोधक होते हैं।
विटामिन ‘सी’ – प्रातः अंकुरित चने का नाश्ता प्रत्येक परिवार को करना चाहिए। अच्छे चने 24 घण्टे पानी में भिगोए रखें, फिर इनको भीगे हुए कपड़े में 20 घण्टे बँधा रखें। इससे हर चने में अंकुर निकल आते हैं। इन अंकुरित चनों पर नीबू निचोड़ें, पिसी हुई अदरक, कालीमिर्च, हरीमिर्च, हरा धनिया, काला नमक, सेंधा नमक स्वाद के लिए डाल सकते हैं। इस नाश्ते में विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में मिलता है। यह नाश्ता फेफड़ों को बलदायक, वजन, रक्त बढ़ाता है तथा रक्त साफ करता है। पाचन क्रिया ठीक रखता है। चना पुष्टिकारक, स्वास्थ्यवर्धक, हृदय रोग-शोधक तथा निवारक है, शरीर में स्फूर्ति लाता है।
प्रोटीन – बच्चों को महँगे बादामों के बजाय काले चने खिलाइए, वे अधिक स्वस्थ रहेंगे। जहाँ एक अण्डे की कीमत के बादामों में एक ग्राम प्रोटीन और तीस कैलोरी ऊष्मा की प्राप्ति होती है, वहाँ इस मूल्य के काले चने में 41 ग्राम प्रोटीन और 864 कैलोरी ऊष्मा प्राप्त होती है।
कब्ज़ – एक या दो मुट्ठी चने धोकर रात को भिगो दें। प्रात: जीरा और सोंठ पीसकर चनों पर डालकर खायें। घण्टे भर बाद चने भिगोए गए पानी को भी पी लें। इससे कब्ज़ दूर हो जाएगी।
फरास – चार बड़े चम्मच बेसन एक बड़े गिलास पानी में घोलकर बालों पर मलें, फिर आधा घंटे बाद सिर धो लें। इससे फरास या रूसी दूर हो जायेगी। बेसन प्राकृतिक शैम्पू है। बेसन से सिर धोने से बाल काले और घने होते हैं। सिर की खुजली, फुन्सियाँ मिट जाती हैं। यह हर तीसरे दिन लगायें।
सिरदर्द – 100 ग्राम नुक्ती, दाने या मोतीचूर के लड्डुओं पर आधा चम्मच घी और 10 कालीमिर्च पिसी हुई डालकर खाने से कमजोरी से होने वाला सिरदर्द ठीक हो जाता है।
श्वास नली के रोग – रात को सोते समय एक मुट्ठी भुने या सिके हुए चने खाकर ऊपर से एक गिलास गर्म दूध पीने से श्वास नली में जमा हुआ कफ निकल जाता है।
जलोदर – 25 ग्राम चनों को 250 ग्राम पानी में औटाकर आधा पानी रहने पर पीने से जलोदर में लाभ होता है। यह 3 सप्ताह लगातार पियें।
पीलिया – एक मुट्ठी चने की दाल दो गिलास पानी में भिगो दें। फिर दाल को निकालकर समान मात्रा में गुड़ मिलाकर इसी प्रकार तैयार कर तीन दिन तक खायें। प्यास लगने पर दाल का वही पानी पियें।
भूख कम करना – एक कप काले चने तीन गिलास पानी में उबालें। फिर छानकर यह पानी पीने से जिन्हें भूख अधिक लगती हो, उनकी भूख कम हो जाती है।
पेट दर्द – बच्चे के पेट में दर्द हो तो बेसन पानी में गूँधकर गर्म करके पेट पर मलें।
जलोदर होने पर चने की दाल खाने से जलोदर का पानी सूख जाता है।
जलन, पेचिश – दो मुट्ठी चने का छिलका दो गिलास पानी में मिट्टी के कोरे बर्तन में रात को भिगो दें। यह पानी छानकर प्रात: पी जायें। जलन और गर्मी के कारण दस्तों में रक्त आता हो तो ठीक हो जाता है।
खूनी बवासीर – सिके हुए गर्मा-गर्म चने खाने से इनमें लाभ होता है।
जुकाम – गर्म-गर्म चने रूमाल में रखकर सूंघने से जुकाम ठीक हो जाता है।
मोटापा – चने की दाल रात को भिगो दें। प्रात: उसमें शहद मिलाकर नित्य खायें। मोटापा कम होगा।
धातु पुष्टि – भीगी हुई चने की दाल में शक्कर मिलाकर रात को सोते समय खायें। इसे खाकर पानी न पियें। इससे धातु पुष्ट होती है।
वीर्य का पतलापन – एक मुट्ठी सिके हुए या भीगे हुए चने और 5 बादाम की गुली खाकर ऊपर से दूध पीने से वीर्य गाढ़ा होता है।
वीर्य पुष्टिकर – चने के आटे का हलवा नियमित शाम को खायें। रात को एक मुट्ठी काले चने एक गिलास पानी में भिगोयें। प्रात: पानी छानकर शहद मिलाकर पियें। भीगे हुए चनों को अंकुरित करके खायें। इससे वीर्य-पुष्टि होकर दुर्बलता दूर होगी।
उच्च रक्तचाप व निम्न रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, हृदयशक्तिवर्धक – 50 ग्राम काले चने, 10 किशमिश या मुनक्का और दों बादाम रात को भिगो दें। सुबह खाली पेट इन्हें चबा-चबाकर खायें और यह पानी पियें। इससे असामान्य रक्तचाप सामान्य हो जाता है तथा कोलेस्ट्रॉल भी सामान्य होकर हृदय शक्तिशाली हो जायेगा। यह लम्बे समय तक खाते रहें। मधुमेहग्रस्त व्यक्ति किशमिश चार ही लें।
दर्द – कमर, हाथ, पैर जहाँ कहीं दर्द हो, दर्द वाली जगह पर बेसन डालकर नित्य मालिश करें। एक बार मालिश किए बेसन को पुन: मालिश के काम में ले सकते हैं। इस तरह मालिश करने से दर्द ठीक हो जाता है।
सौंदर्यवर्धक – (1) बेसन से चेहरा धोने से झाँइयाँ मिटती हैं, चेहरा सुन्दर निकलता है। धूप से त्वचा झुलसने (सनबर्न), तेज धूप, गर्मी, लू से त्वचा की रक्षा करने के लिए बेसन को दूध या दही में मिलाकर गाढ़ा लेप बना लें। इसे सुबह-शाम आधा घण्टे त्वचा, चेहरे पर लगा रहने दें, रूप निखर उठेगा। (2) चने की भीगी दाल को पीसकर उसमें हल्दी तथा कुछ बूंदें किसी तेल की डालकर उबटन बनाकर लगायें। बहुत हितकर होगा। (3) आठ चम्मच बेसन, 5 चम्मच दही, 5 चम्मच दूध, 3 चम्मच हल्दी – इन सबको मिलाकर गूंध लें। यदि यह गूंधा हुआ सख्त अधिक रहे तो थोड़ा-सा दूध और मिला लें। इसे चेहरे, हाथ, गले पर मलें। यदि सारा शरीर सुन्दर बनाना हो तो सारे शरीर पर मलें। फिर स्नान कर लें। इस मिश्रण से त्वचा को पौष्टिक तत्व मिल जाते हैं। दूध, दही में निहित प्रोटीन त्वचा में सरलता से मिल जाता है। हल्दी के एन्टिबायोटिक तत्व त्वचा पर होने वाले बाहरी संक्रमण से उसकी रक्षा करते हैं। इससे त्वचा की कोई समस्या नहीं रहती है। इस उबटन का प्रयोग करते रहने से न केवल शरीर ही सुन्दर होता है, बल्कि देखने में आयु वास्तविकता से कम लगती है, जैसे-साठ साल के व्यक्ति का पैंतालीस वर्ष के व्यक्ति जैसा लगना।
दाद, खुजली – चने के आटे की रोटी बिना नमक की 64 दिन तक खाने से दाद, खुजली, रक्तविकार दूर हो जाते हैं। इसके साथ घी ले सकते हैं।
चर्मरोग – खाज, खुजली, फोड़े, फुंसी आदि पर बेसन को पानी में घोलकर लेप करें। सूख जाने पर रगड़कर बेसन साफ करें।
त्वचा का कालापन – (1) 12 चम्मच बेसन, 3 चम्मच दही या दूध, थोड़ा-सा पानी सब मिलाकर पेस्ट-सा बनाकर पहले चेहरे पर मलें और फिर सारे शरीर पर मलें। दस मिनट बाद स्नान करें। साबुन नहीं लगायें। इस प्रकार का उबटन करते रहने से त्वचा का कालापन दूर हो जायेगा। (2) रात को आधा कप चने की दाल गर्म दूध में भिगो दें। प्रात: दाल पीसकर एक चम्मच हल्दी, एक चम्मच दूध की मलाई तथा दस बूंद गुलाबजल मिलाकर उबटन की तरह शरीर पर मलें। साँवली त्वचा निखर उठेगी।
तैलीय त्वचा – यदि चिकनी त्वचा है तो, गुलाबजल में बेसन मिलाकर चेहरे व शरीर पर लगायें। त्वचा पर से तेल हट जाएगा।
चेचक – भीगे हुए चने पर कुछ देर रोगी अपनी हथेलियाँ रखें। फिर इस चने को फेंक दें। भीगा हुआ चना चेचक के कीटाणुओं को सोख लेता है।
उल्टी (Vomiting) – रात को एक मुट्ठी चने एक गिलास पानी में भिगो दें। प्रात: इनका जल निथार कर पियें। गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलायें।
सफेद दाग (Leucoderma) – मुठ्ठी भर काले चने और दस ग्राम त्रिफला चूर्ण (हरड़, बहेड़ा, अॉंवला) 125 ग्राम पानी में 12 घण्टे भिगो दें। फिर गीले कपड़े में बाँधे। 24 घण्टे बाद अंकुर निकलने पर इन चनों को बहुत चबा-चबाकर लगातार कुछ महीने खाने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं। चने के आटे की बिना नमक की रोटी घी से चोपड़ कर सुबहशाम खायें।
माता के दूध को बढ़ाना – (1) हरे कच्चे चने को छोले कहते हैं। छोले खाने से दूध बढ़ता है। (2) यदि माता अपने बच्चे को दूध पिलाने में दूध की कमी प्रतीत करती हो तो 62 ग्राम काबुली चने रात को दूध में भिगो दें। सवेरे दूध को छानकर अलग कर लें। इन चनों को चबा-चबाकर खायें, ऊपर से इसी दूध को गर्म करके पियें। स्तनों में दूध बढ़ जायेगा।
श्वेत प्रदर (Leucorrhoea) – सिके हुए चने पीसकर उनमें खाँड मिलाकर खायें। ऊपर से दूध में देशी घी मिलाकर पियें। इससे श्वेत प्रदर गिरना बन्द हो जाता है।
बहुमूत्रता (Polyuria) – बार-बार पेशाब आने पर एक छटांक भुने, सिके हुए चने खाकर, ऊपर से थोड़ा-सा गुड़ खायें। दस दिन लगातार खाने से बहुमूत्रता ठीक हो जायेगी। वृद्धों को अधिक दिन यह सेवन करना चाहिए।
गर्भपात (Abortion) – यदि गर्भपात का भय हो तो काले चनों का काढ़ा पिलायें।
मधुमेह (Diabetes) – (1) रात को आधा छटांक काले चने दूध में भिगो दें और सवेरे खायें। चने और जौ समान भाग मिलाकर इसके आटे की रोटी सुबह-शाम खायें। (2) केवल चने (बेसन) की रोटी ही दस दिन तक खाते रहने से पेशाब में शक्कर जाना बन्द हो जाता है।
पित्ती (Urticaria) –100 ग्राम चने (बेसन) से बने मोतिया लड्डुओं पर दस कालीमिर्च पिसी हुई डालकर खायें। पित्ती मिट जायेगी।
पागलपन – (1) पित्त (गर्मी) के कारण पागलपन हो तो शाम को एक छटाँक चने की दाल पानी में भिगो दें। प्रात: पीसकर खाँड और पानी मिलाकर एक गिलास भरकर पीने से लाभ होता है। (2) चने की दाल भिगोकर उसका पानी पिलाने से भी उन्माद और वमन ठीक हो जाता है।
पथरी (Stone) – गुर्दे (Kidney) या मूत्राशय (Bladder) में पथरी हो तो रात को एक मुट्ठी चने की दाल भिगो दें, प्रात: काल इस दाल में शहद मिलाकर खायें।
हृदय रोग के रोगियों के लिए काला चना लाभदायक है।
काबुली चने के फायदे
कैंसर – काबुली चने के बेसन में माइक्रो एलिमेंट सेलेनियम और अमीनो अम्लों की बहुलता होती है। सेलेनियम उपापचय क्रियाओं में किण्वन के दौरान उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है और कोशिकाओं को हानिकारक मुक़्त ऑक्सीजन मूलकों से बचाता है। जबकि अमीनो अम्ल वह इकाई है जिससे प्रोटीन का निर्माण होता है। काबुली चने के बेसन में दोनों पदार्थों की मौजूदगी से शरीर में कैंसर की कोशिकाएँ नहीं बन पातीं।