(1) दाहिने स्कन्ध-फलक के निचले अंश में लगातार दर्द – जैसे सियोनोथस तिल्ली की दवा है, वैसे चेलिडोनियम जिगर की बीमारी की दवा है। इसका असर बहुत गहरा नहीं होता, परन्तु जिगर पर इसका विशेष प्रभाव है, और इसका मुख्य-लक्षण है : पीठ के पीछे दाहिने कन्धे की तरफ जो अस्थि-फलक है, उसके नीचे लगातार दर्द होते रहना। यह दर्द जिगर की बीमारी के कारण होता है। दर्द हल्का भी हो सकता है, तेज़ भी। इस लक्षण के साथ पीलिया, खांसी, अतिसार, न्यूमोनिया, रजोधर्म, थकावट आदि की कोई भी शिकायत हो सकती है, परन्तु अगर किसी भी शिकायत के साथ उक्त-लक्षण मौजूद हों, तो यह औषधि लाभ करेगी। हो सकता है कि रोगी का मुख का स्वाद कड़वा हो, जीभ बिल्कुल पीली हो, आंख की सफेदी में पीलिमा आ जाय, चेहरा, हाथ, त्वचा पीली पड़ जायें, मल सफेद या पीला हो, मूत्र पीला हो, भूख न रहे, जी मिचलाये, पित्त की उल्टी हो। ऐसी हालत में अगर दाहिने कन्धे के अस्थि-फलक के निचले हिस्से में दर्द न भी हो, तो भी जिगर की बीमारी होने के कारण चेलिडोनियम फायदा करेगा क्योंकि कारडुअस की तरह यह भी मुख्य तौर पर जिगर की बीमारी की ही दवा है। अगर रोग पुराना हो गया, तो लाइको लाभप्रद रहता है।
कभी-कभी दाहिने अस्थि फलक के निचले अंश में दर्द होने के बजाय बायें अस्थि-फलक के निचले अंश में भी वैसा ही दर्द हो जाता है। ऐसे दर्द में औग्जैलिक ऐसिड लाभ करता है। डॉ० नैश का अनुभव है कि चेलिडोनियम के स्थान में चेनोपोडियम ग्लाउसाई लाभ करता है। एक दवा चेनोपोडियम ऐनथैलमिनिकम भी है, परन्तु इन दोनों चेनोडियम में ग्लाउसाई वाला चेनोपोडियम ही बायें कन्धे की फलकासिथत के निम्न-भाग के दर्द को ठीक करता है, दूसरा ऐनथैलमिनिकम वाला चेनोपोडियम तो चेलिडोनियम की तरह दायीं तरफ के दर्द पर ही प्रभाव करता है। डॉ० नैश ने अपने अनुभव से लिखा है कि चेनोपोडियम ग्लाउ से उन्होंने बाएं कधे का इस प्रकार का कई साल पुराना दर्द ठीक किया था। इस बाईं तरफ के दर्द में सैग्विनेरिया भी लाभप्रद है। हाँ, दायीं तरफ के दर्द में चेलिडोनियम ही लाभ करता है, यह औषधि मुख्यत: शरीर के दायें हिस्से पर ही प्रभाव करती है।
(2) चेलिडोनियम और लाइकोपोडियम – ये दोनों दायीं तरफ़ की औषधियां हैं। अनेक लक्षणों में इनकी समानता पायी जाती है। चेलिडोनियम का असर उतना गहरा नहीं होता। अगर इस औषधि से जिगर का रोग ठीक न हो, तब लाइको देने की जरूरत पड़ जाती है। लाइको गहराई में जाने वाली दवा है। जिगर के रोग को दूर करके जिस काम को चेलिडोनियम अधूरा छोड़ देती है, उसे लाइको पूरा कर देती है। लाइको की तरह इस औषधि का रोगी तेज-गर्म चीज पीना या खाना चाहता है।
(3) पित्त पथरी का दर्द – पित्ताशय से पित्त की पथरी छोटी-सी प्रणालिका में जब फंस जाती है, तो रोगी को असीम पीड़ा होती है। चेलिड़ोनियम इस प्रणालिका को खोल देती है और पित्त-पथरी बिना दर्द के आगे निकल जाती है।
(4) दायीं तरफ का न्यूमोनिया – यह औषधि दायीं तरफ प्रभाव करती है। दाईं आँख, दायां फेफड़ा, दाईं टांग, दाईं जांघ, न्यूमोनिया में भी इसका दायें फेफड़े पर प्रभाव दीखता है। बच्चों के रोगों की पुस्तकों में न्यूमोनिया का जिक्र आता है, वहां यह भी लिखा होता है कि चेलिडोनियम का न्यूमोनिया की औषधियों में विशेष स्थान है। डॉ० कैन्ट का कहना है कि न्यूमोनिया में इसका श्री गणेश दायें फेफड़े से होता है, दायीं तरफ दर्द शुरू होता है, तब कुछ बायें हिस्से की तरफ दर्द शुरू होता है, तब कुछ बायें हिस्से की तरफ चला जाता है। लाइको का भी तो दायें से बायें जाने का लक्षण है। इस न्यूमोनिया का जिगर की विकृति से कुछ-न-कुछ संबंध होता है। न्यूमोनिया में भी दायें स्कन्ध-फलक के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है।
(5) आँख के रोगों के लिये – डॉ० कलपेपर लिखते हैं कि ग्रीक भाषा में ‘चेलिडोन’ का अर्थ है – ‘चिड़िया।’ वे लोग कहते थे कि यदि चिड़िया के बच्चे की आँख चली जाय, तो चेलिडोनियम से उसके मां-बाप उसकी नयी आंख बना सकते हैं। तभी ‘चेलिडोन’ से ‘चेलिडोनियम’ शब्द बना है। कलपेपर का कहना है कि इसकी मरहम से आंख का हर रोग दूर हो जाता है मोतियाबिंद तक।
(6) चेलिडोनियम रोगी की प्रकृति – रोगी ठंडा पानी नहीं पी सकता। उबलता-सा गर्म पेय हो तभी पेट में ठहरता है। ऐनाकार्डियम, पेट्रोलियम, ग्रैफ़ाइटिस की तरह खाली पेट नहीं रह सकता।