इस औषधि की क्रिया साधारणत: मस्तिष्क और चर्म रोगों पर होती है। मस्तिष्क पर क्रिया करके मनुष्य को गहरी नींद सुला देती है और त्वचा पर क्रिया प्रकट करके शरीर में लाल रंग की छोटी-छोटी फुन्सियां और छाले जैसे दाने पैदा करती है। हृत्पिण्ड पर क्रिया करके यह हृत्पिण्ड की क्रिया को घटाती है और उसमें सुस्ती पैदा करती है।
रोगी बेहोश होकर कई घण्टों से लेकर कई दिनों तक एक ही अवस्था में पड़ा रहता है, होश में नहीं आता।
सिर – रोगी के सिर में सुबह के समय दर्द रहता है, दर्द बहुत बढ़ जाता है। समूचे माथे में दर्द, कनपटी में विशेष रूप से जरा भी हिलने से दर्द का बढ़ जाना। किसी भी तरह दर्द कम नहीं होता, सिर्फ खुली हवा में जाने से कुछ आराम मिलता है।
श्वास – रोगी को सांस लेने में बहुत कठिनाई होती है, किसी-किसी क्षण ऐसा लगता है जैसे सांस बन्द होकर वह मर जायेगा। रोगी हांफता रहता है।
आमवात – जरा सी सर्दी या ठण्डी हवा लगते ही खुजली बढ़ जाती है। दिन की अपेक्षा रात को खुजली बहुत बढ़ जाती है, जो लोग नशा करते हैं उसकी बीमारी में अन्य दवाओं की अपेक्षा ज्यादा फायदा करती है, चर्म रोग में रोगी के शरीर पर खसरा के समान लाल रंग के दाने और उसमें बहुत खुजली होती है ।
भयभीत – छोटे बच्चे सोते-सोते जोर से चिल्लाकर जाग उठते है। ऐसा लगता है जैसे वे डर के कारण ऐसा कर रहे हैं, माता पिता कोई भी कारण खोजने में असमर्थ हो जाते है। बच्चों के इस लक्षण में कलोरैलम ज्यादा फायदा करती हैं। छोटी माता (chicken pox) में कलोरैलम से फायदा हुआ करता है।
सम्बन्ध – प्रतिविष : अमोनियम, एट्रोपियम, डिजिटै, मास्कस।
मात्रा – प्रथम शक्ति का विचूर्ण या उच्च शक्तियां ।