यह बृहदांत्र का प्रदाह है जिसे जीर्णकालिक आमातिसार भी कहते हैं। यह अक्सर बैक्टीरियाजनित संक्रमण (एंटमोएबा हिस्टोलिटिका) के कारण होता है जो आतों की दीवार को नष्ट करके अल्सर उत्पन्न कर देते हैं जिसे हम व्रणीय बृहदांत्रशोथ (अल्सरेटिव कोलाइटिस या अमोयबिक कोलाइटिस) कहते हैं। रोगी अक्सर उदर के निचले भाग में दर्द महसूस करता है। खाने के तुरंत बाद उसे मल-त्याग की उत्तोदना महसूस होती है क्योंकि रक्तसंकुलित आंतों पर भोजन और गैस के दबाव से बार-बार पीड़ा और मल विसर्जन की उत्तीदना होती है तथा मल के साथ रक्त मिश्रित म्युकस निकलता है। दूसरा सामान्य कारण जियार्डियासिस है जो ‘जियार्डिया लैंबलिया’ नामक सूक्ष्म जीवाणु के कारण होता है। बच्चों में यह रोग संपूर्ण विश्व में, विशेषकर एशिया में, एक आम रोग है। इसके सामान्य लक्षण हैं- मिचली, भूख न लगना, उदर में पीड़ा, चिपचिपे मल के साथ अनपचा भोजन।
(Mucous- Ulcerative Colitis)
उदर में बार-बार पीड़ा के साथ कब्ज या अतिसार और काफी म्युकस। पूर्व की अपेक्षा पश्चिमी देशों में अधिक तनाव और दबाव के कारण यह ज्यादा आम रोग है। मैं दृढ़तापूर्वक यह कहना चाहता हूँ कि किसी भी पकार के बृहदांत्रशोथ में यह आवश्यक नहीं है कि मल के परीक्षण में ‘ई. हिस्टोलिटिका या जियार्डिया सिस्ट पॉजिटिव’ निकले।
एलोपैथी : फ्लैजिल, मेट्रोजिल, टिनबा, वेलियम, अलजोलाम, लारपोज और स्टेरॉइड (सर्वांगीण और स्थानिक)।
एलोपैथी का प्रभाव : इन एलोपैथिक औषधियों के अनेक अतिरिक्त प्रभाव हैं। निराशाजनक तथ्य यह है कि ये औषधियां निरोग नहीं करती। जब औषधियां बंद कर दी जाती हैं तो थोड़े ही समय में रोग के लक्षण पुनः वापस आ जाते हैं। अतिरिक्त प्रभाव हैं : धात्विक स्वाद, मुख में व्रण, भूख न लगना, आंतों की दीवार में प्रदाह, जठरशोथ, रक्त में परिवर्तन ॥ लगातार इस्तेमाल करने पर स्टेरॉयड्स के बड़े भयानक कुपरिणाम होते हैं ( अत्यधिक बालों का उगना, मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मासिक म्राव संबंधी अव्यवस्थाएं)।
व्रणीय बृहदांत्रशोथ (अल्सरेटिव कोलाइटिस) के निम्नलिखित केसेज़ से होम्योपैथी के द्वारा रोग निदान का चमत्कारिक प्रभाव स्पष्ट होता है।
केस 1
यू.के. के एक डॉक्टर की पत्नी ‘अल्सरेटिव कोलाइटिस’ की शिकायत के साथ मेरे पास आई। यह रोग उसे माइग्रेन’ के लिए ‘टेग्रीटॉल’ के लंबे समय तक इस्तेमाल करने के कारण हुआ था। उसने स्टेरॉयड एनीमा’ लिया और कोलाइटिस के लिए वह समय-समय पर स्टेरॉयड लेती रहीं। खून का बहाव रोकने वाली औषधियां जैसे ‘डाइसीनीन’ भी गुदा से रक्तस्राव रोकने के लिए दिया गया।
होम्योपैथी : मैंने उन्हें अ, ब और स का निम्नलिखित मिश्रण चाक्रिक क्रम से दिया :
(अ) ब्लूमिया Q + फिकस रेलिजिओसा Q + हेमामेलिस Q
(ब) पल्स 30 + मर्क कॉर 30
(स) चायना 30 + कोलोसिंथ 30 + मैग. फास 30 + क्यूप्रम मेट 30 ।
स्थाई लाभ देने के लिए मैंने उसे एक सप्ताह के अंतराल पर थूजा 200 की कुछ खुराकें दी।
केस 2
34 वर्षीय एक जर्मन महिला जो एक राजनयिक की पत्नी थी, मेरे पास आई। ‘अमोएबिक कोलाइटिस’ के लिए प्रसिद्ध जठररोग विशेषज्ञों से उसने हर प्रकार की चिकित्सा ली थी किंतु स्थाई लाभ नहीं मिला। मैंने उसे कुटजारिष्ट’ दो सप्ताह तक दिया जिससे रोग का आक्रमण फिर नहीं हुआ। उपचार दिए जाने के दो वर्षों बाद तक वह भारत में रही।
उसका बच्चा भी ‘अमोएबियासिस’ से पीड़ित था किंतु उसने ‘कुटजारिष्ट’ नहीं लिया क्योंकि इस आयुर्वेदिक औषध का स्वाद अप्रिय है।
होम्योपैथी : मैंने बच्चे को इमेटीन 30 और इपीकाक 200 पर्यायक्रम से एक सप्ताह तक दिया। उसके बाद मैंने इमेटीन 200 सप्ताह में एक बार और सल्फर 200 एक खुराक प्रति सप्ताह पर्यायक्रम से दिया।
केस 3
मेरी एक ब्रिटिश सहकर्मिणी ‘संज्ञाहरण विशेषज्ञा’ ‘अल्सरेटिव कोलाइटिस’ के कारण अक्सर छुट्टी पर रहा करती थीं।
एलोपैथी : उसने मुझे बताया कि वह सबकुछ इस्तेमाल करके देख लिया है (स्टेरॉयड्स, ट्रैक्वीलाइजर्स, फ्लैजिल) किंतु यह रोग बार-बार हो जाता है। व्रणीय बृहदांत्रशोथ के लिए होम्योपैथिक उपचार लेने के मेरे सलाह पर वह हंसी। किंतु एक महीने बाद जब वह रोग से काफी पीड़ित थी, तो उसने कहा कि वह होम्योपैथी का परीक्षण करना चाहेगी।
होम्योपैथी : मैंने उसे ऐवेना Q + अल्सटोनिया (1 : 1), मर्क कॉर 200 और इपीकाक 200 पर्यायक्रम से दिया। वह एक महीने तक रोग लक्षणों से मुक्त थी, किंतु उसे रोग फिर हो गया। तब मैंने उसे सल्फर 200 दिया। वह कुछ समय के लिए ठीक थी किंतु छः सप्ताह बाद रोग का आक्रमण फिर हो गया। मैंने उससे पूछा कि “क्या वह अपनी बिल्ली को बहुत प्यार करती है?” “हां, सचमुच, हम दोनों एक ही थाली में खाना खाते हैं।” उसने उत्तर दिया। मैंने उसे दो टूक जबाब दिया कि उसे अपनी बिल्ली की जांच किसी पशुचिकित्सक से करानी चाहिए। यह पाया गया कि बिल्ली जबरदस्त ‘अमोएबियासिस’ से पीड़ित थी।
केस 4
इस केस से होम्योपैथी में भी शारीरिक जांच के महत्त्व का पता चलता है। एक 45 वर्षीय महिला, जो आंतरिक सज्जा विशेषज्ञ थीं, ने मुझसे टेलीफोन पर निवेदन किया कि क्या मैं उनकी ‘कोलाइटिस’ के लिए औषध दे सकता हूं? उन्होंने यह भी कहा कि वह मेरी फीस डाक से भेज देंगी। चूंकि वह बहुत व्यस्त हैं इसलिए क्लिनिक पर नहीं आ सकती हैं। मैंने उनसे कहा कि एलोपैथी में ‘अल्सरेटिव कोलाइटिस’ का कोई उपचार नहीं है। उसने कहा कि यह उसे पता है क्योंकि अपनी विदेश यात्राओं के दौरान वह तीन विश्व प्रसिद्ध जठर रोग विशेषज्ञों से चिकित्सा ले चुकी थीं, परंतु कोई लाभ नहीं मिला था। उसने यह भी कहा कि “क्या होम्योपैथिक औषध देने के लिए भी मुझे उसकी जांच करनी होगी?” वह पिछले छः महीनों से एक होम्योपैथ से इलाज ले रही थीं किंतु उसने कभी उसकी जांच नहीं की और केवल लक्षणों के बारे में प्रश्न पूछ कर ही वह दवा देते रहे थे। मैंने उत्तर दिया, “मैं केवल इतना ही कहूंगा कि ईश्वर उन रोगियों की सहायता करें जो ऐसे होम्योपैथ चिकित्सकों से इलाज लेते हैं जो रोगी की जांच कभी नहीं करते। मेरी स्मृति में यद्यपि वे केसेज़ ‘कोलाइटिस’ के नहीं हैं। एक 40 वर्षीय महिला की चिकित्सा बहरेपन और कान में विभिन्न प्रकार के शोर के लिए पिछले छः महीने से चल रही थी। मैंने पूछा कि “क्या डॉक्टर ने कानों की जांच की है?” उसने उत्तर दिया, “हां, उन्होंने एक टार्च से कानों को देखकर कहा था कि उनमें रक्ताधिक्य (कंजेशन) है।” मेरी समझ में यह नहीं आता कि एक होम्योपैथ बिना ‘औउरोस्कोप’ की सहायता के कानों के अंदर किस प्रकार देख सकता है। इस प्रकार तो एक होम्योपैथ और प्लेटफार्म पर बैठे ‘क्वैक’ में कोई फर्क नहीं रह जाता। मैंने रोगिणी के कान से कठोर वैक्स’ निकाल दिया और वह एक ही बैठक में रोग मुक्त हो गई।
होम्योपैथी की उत्पत्ति के दिनों में पर्याप्त नैदानिक (डायगनोस्टिक) सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं। नैदानिक सुविधाओं के विकसित हो जाने के कारण अब इसका इस्तेमाल रोगी के पूर्ण लाभ के लिए किया जाना चाहिए ताकि रोग के लक्षणों के प्रकाश में सही रोग निदान तक पहुँचा जा सके।