(1) बवासीर में मल-द्वार में तिनके टुसे-हुए-सा अनुभव करना – कोलिनसोनिया औषधि मुख्य तौर पर बवासीर के लिये प्रयुक्त होती है। रोगी को ऐसा अनुभव होता है जैसे गुदा-प्रदेश में छोटे-छोटे तिनके या लकड़ियां ठूंसी हुई हैं। एस्क्यूलस में भी बवासीर का यह लक्षण है, परन्तु इन दोनों में निम्न भेद है:
एसक्यूलस की बवासीर | कोलिनसोनिया की बवासीर |
ऐसा लगना जैसे गुदा-प्रदेश में तिनके ठुसे हुए हैं। | ऐसा लगना जैसे गुदा-प्रदेश में तिनके ठुसे हुए हैं। |
गुदा-प्रदेश में भारीपन रहता है | गुदा-प्रदेश में भारीपन नहीं रहता |
बवासीर में रुधिर नहीं बहता है यद्यपि भारीपन रहता है (बादी बवासीर) | बवासीर में रुधिर बहता है (खूनी बवासीर) |
मस्सों में दर्द, स्पर्शासहिष्णुता और पीठ में दर्द होता हो | एसक्यूलस के मस्से तथा पीठ के लक्षण इसमें नहीं होते |
शायद ही कभी कब्ज होती हो | सख्त कब्ज होती है। |
(2) सप्ताह, दो-सप्ताह में एक बार पाखाना (कब्ज) – कोलिनसोनिया में सख्त कब्ज होती है। डॉ० नैश ने एक रोगी का उल्लेख किया है जिसे ऐलापैथिक दस्तावर दवाइयों से भी दो सप्ताह में एक बार दस्त आता था। कोलिनसोनिया से एक महीने में वह बिल्कुल ठीक हो गया। शायद इस कब्ज के कारण ही रोगी को खूनी बवासीर की शिकायत हो जाती है, खुश्क-मल से मस्से छिल जाते हैं और खून बहने लगता है। कोलिनसोनिया के बाद बवासीर का जो रोग शेष रहे उसे एसक्यूलस ठीक कर देता है।
(3) बवासीर और कब्ज के कारण पेट-दर्द – डॉ० नैश ने लिखा है कि एक रोगी जिसे बवासीर थी, और सख्त कब्ज़ था, उसके पेट में कठिन दर्द को कोलिनसोनिया ने ठीक कर दिया।
(4) बवासीर और कब्ज़ में जरायु का बाहर निकल पड़ना – जिन स्त्रियों का जरायु बिल्कुल बाहर निकल पड़ता है, अगर उन्हें बवासीर और कब्ज भी हो, तो उनके रोगों को कोलिनसोनिया ठीक कर देता है, उनको बवासीर, कब्ज और जरायु का बाहर निकल पड़ना सब ठीक हो जाते हैं।
(5) गर्भाशय और गुदा-प्रदेश का बाहर निकल पड़ना – जिन स्त्रियों का गर्भाशय और गुदा-प्रदेश दोनों बाहर निकल पड़ते हैं, उनके लिये तो यह अत्यन्त उपयोगी है। यह सब कुछ प्राय: कब्ज में पाखाने के लिये जोर लगाने के कारण हुआ करता है।
(6) बवासीर के रुधिर के बन्द हो जाने पर हृदय में कठिन पीड़ा – इसका एक लक्षण यह है कि अगर उस व्यक्ति का जिसका बवासीर या अन्य किसी स्थान का रुधिर नियमित रूप से निकला करता है और वह बन्द हो जाय, तो उसे हृदय में पीड़ा होनी शुरू हो जाती है, अगर रुधिर जारी हो जाय तो हृदय की पीड़ा बन्द हो जाती है। ऐसी हालत में यह औषधि लाभ करती है।
(7) शक्ति – 3, 6, 30, 200