लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
पेट, डिम्ब-कोश, डिसेन्ट्री आदि का दर्द जिसमें दोहरा होने तथा कड़ी वस्तु से दबाने से आराम मिले | जोर से दबाने से आराम |
घृणामिश्रित-क्रोध से दर्द आदि रोग उत्पन्न होना | गर्मी से रोगी को आराम |
शियाटिका का दर्द जिसमें दबाने से आराम मिले (बाईं तरफ) | पाखाने के बाद रोगी को आराम |
चेहरे का दर्द (कोलोसिन्थिस, बेलाडोना मैग फॉस की तुलना) | पेट से हवा निकलने पर रोगी को आराम |
चक्कर आना जिसमें बाई तरफ गिरने का डर हो | लक्षणों में वृद्धि |
बिना दर्द की तरफ लेटने पर | |
बाईं तरफ रोग का प्रकोप |
(1) पेट, डिम्ब-कोश, डिसेन्ट्री आदि का दर्द जिसमे दोहरा होने तथा कड़ी वस्तु से दबाने से आराम मिले – यह पेट के दर्द की सर्वोत्तम औषधि है। पेट में इतना दर्द होता है कि रोगी दोहरा हो जाता है। दोहरा होने से पेट पर जो दबाव पड़ता है, उससे उसे आराम मिलता है। पेट-दर्द में दोहरा हो जाना कोलोसिन्थिस औषधि का चरित्रगत-लक्षण है। वह दोहरा हो जाता है, यह किसी कड़ी वस्तु से पेट को दबाता है। कुर्सी, टेबल या जो-कोई भी कड़ी चीज पास हो, उससे पेट को दबाने लगता है। आंतों में रुकी हुई पेट की हवा फंसी (Incarcerated flatus) होती है जिससे दर्द होता है। हवा से गुड़-गुड़ शब्द होता है। नाभि-प्रदेश से दर्द उठकर ऊपर सारे पेट में फैल जाता है। पाखाना आ जाने से फौरन आराम आ जाता है, परन्तु कुछ देर बाद फिर दर्द शुरू हो जाता है, जो अगली बार पाखाना आने तक बना रहता है। यह क्रम लगातार चलता है। जिन पर इस औषधि की परीक्षा हुई है उनका कहना है कि आंतों में दर्द ऐसा होता है मानो पत्थरों के बीच आंतों को मसला जा रहा हो, मानो आंतें फूट जायेंगी। रोगी सीधा होकर नहीं खड़ा हो सकता, हाथ से पेट को दबाकर खड़ा होता है। ऐसे दर्द में कोलोसिन्थिस से तत्काल, चमत्कार पूर्ण लाभ होता है। यह दर्द मुख्यतौर पर ‘स्नायविक’ (Neuralgic) होता है। इसके साथ रोगी को उल्टी तथा दस्त भी आ जाता है। यह कय तथा दस्त पेट या आतों की किसी खराबी का परिणाम न होकर दर्द का ही परिणाम होता है।
डिम्ब-कोश का दर्द जब पेट दबाने से आराम मिले – कभी-कभी स्त्रियों के ‘डिम्ब-कोश’ (Ovary) में भी ऐसा दर्द होता है जिसमें दोहरा होने से रोगी को आराम मिलता है। डिम्ब-कोश के ऐसे दर्द में कोलोसिन्थिस को स्मरण करना चाहिये। यह समझना मूल है कि यह औषधि सिर्फ़ पेट-दर्द में ही काम आती है। जिस किसी रोग में रोगी को दोहरा होने से, या पेट को किसी कड़ी वस्तु से दबाने से आराम मिले उसी रोग में यह औषधि उपयुक्त है।
डिसेन्ट्री में जब पेट को दबाने से आराम मिले – डिसेन्ट्री में जब एकोनाइट, मर्क, नक्स से लाभ न हो, और दर्द या ऐंठन बड़ी आंतों से ऊपर जाकर छोटी आंतों में पहुंच जाय, और पेट दबाने से रोगी को चैन पड़े, तब इस औषधि से लाभ होता है। डिसेन्ट्री में इन लक्षणों के होने पर कोलोसिन्थिस को नहीं भूलना चाहिये। पेट-दर्द में यही एकमात्र दवा नहीं है। इस कष्ट में अन्य भी अनेक औषधियां हैं जिनके लक्षण हम नीचे दे रहे हैं:
पेट-दर्द की मुख्य-मुख्य होम्योपैथिक औषधियां
( Pet Dard Ka Dawa )
एलू – इसका दर्द भी आंतों में रुकी हुई, फंसी हुई हवा के कारण होता है, पखाना होने के बाद कोलोसिन्थिस की तरह दर्द चला जाता है, परन्तु रोगी पसीने से तर-ब-तर और अत्यन्त शक्तिहीन हो जाता है।
बेलाडोना – इसके पेट-दर्द में भी पेट को जोर से दबाने से आराम मिलता है, परन्तु इस दर्द की विशेषता यह है कि यह एकदम आता है और एकदम ही चला भी जाता है।
कार्बोलिक ऐसिड – इसका दर्द बेलाडोना की तरह एकदम आता है, कुछ देर रह कर एकदम चला जाता है। दूध पीते बच्चों और बूढ़ों में इस औषधि के विशेष लक्षण पाये जाते हैं।
कैमोमिला – हम अभी देखेंगे कि क्रोध आदि मानसिक कारणों से कोलोसिन्थिस का पेट-दर्द, या डिम्ब-कोश का दर्द हो जाता है, कैमोमिला में भी क्रोध से दर्द ही जाता है। कैमोमिला में पेट-दर्द में दोहरा हो जाना नहीं पाया जाता। अगर बच्चे का पेट फूलने से दर्द हो, बच्चा पेट-दर्द से हाथ-पैर पटकता हो, दांत निकल रहे हों, स्वभाव से चिड़चिड़ाहट दिखलाता हो, तो कैमोमिला देना चाहिये।
चायना – रोगी के पेट-दर्द में दोहरा हो जाने का लक्षण चायना में भी है, परन्तु इसमें पेट का अफारा, फल आदि खाने से पेट-दर्द का होना, इस कारण बदहजमी होना, या जी मिचलाना आदि पाया जाता है।
कोलचिकम – इसके पेट-दर्द में पेट में बर्फ का सा ठंडापन महसूस होता है।
क्यूप्रम – इसके पेट-दर्द में ऐंठन होती है, ऐसा अनुभव होता है कि पेट पीछे मेरु-दंड की तरफ खिंच रहा है। ठंडा पानी पीने से दर्द में आराम पड़ता है। आंत में कुछ हिस्से के अगली आंत में फंस जाने पर इससे विशेष लाभ होता है।
डायोस्कोरिया – यह औषधि कोलोसिन्थिस से उल्टी है। कोलोसिन्थिस में पेट के बल झुकने से पेट-दर्द में आराम आता है, इसमें पीठ की तरफ झुकने से, टेढ़े होने या सीधे खड़े होने पर आराम आता है।
मैगनेशिया फॉस – इसमें कोलोसिन्थिस के-से ही लक्षण हैं। पेट में बड़ा सख्त दर्द होता है, रोगी चिल्लाने लगता है, दोहरा होने से दर्द में आराम मिलता है, हाथ से दबाने से भी रोगी को ठीक लगता है। मुख्य तौर पर गर्म बोतल द्वारा पेट पर सेक से पेट-दर्द ठीक होता है, जो कोलोसिन्थिस में नहीं है। अगर कोलोसिन्थिस और कैमोमिला से पेट-दर्द ठीक न हो, तो मैगनेशिया फॉस इस दर्द को ठीक कर देता है।
स्टैनम – इसमें भी दर्द में पेट को दबाने से आराम मिलता है। बच्चे को मां अपने कन्धे पर उसका पेट दबाकर थामे रहे, तो वह ठीक अनुभव करता है। जरा सी भी हरकत से रोगी चिल्लाने लगता है, दायीं तरफ लेटने से रोग में वृद्धि होती है।
(2) घृणामिश्रत-क्रोध से दर्द आदि रोग उत्पन्न होना – प्राय: घरों में स्त्री-पुरुष के पारस्परिक-वैमनस्य से झगड़े उठ खड़े होते हैं। एक-दूसरे के चरित्र पर सन्देह होने लगता है, इन झगड़ों में क्रोध तो होता ही है, घृणा भी होती है। इनके परिणामस्वरूप पेट, सिर, कमर, डिम्ब-कोश आदि में स्नायु-शूल हो जाता है। स्त्री-पुरुष में ही नहीं, घर-गृहस्थी के काम में नौकर-चाकरों से लड़ाई हो जाती है। नौकर ने बेशकीमती गलीचे पर स्याही उडेल दी, इस पर गृहिणी ने जो नौकर की डांटना शुरू किया कि बेचारी को सिर का या कमर का दर्द होने लगा। इस प्रकार के घृणामिश्रित-क्रोध से, या सिर्फ क्रोध से, मन उद्विग्न हो जाय, तो उसका परिणाम एक नहीं, अनेक रूप धारण कर सकता है। पेट का दर्द, क्रोध से ऋतुस्राव रुक जाय तब दर्द, मुख-मंडल, नेत्रों तथा आंतों में स्नायु-शूल-इस प्रकार के अनेक दर्द क्रोध से हो जाते हैं जिनमें कोलोसिन्थिस अचूक काम करता है।
(3) शियाटिका का दर्द जिसमे दबाने से आराम मिले (बाईं तरफ) – शियाटिका के लिये चिकित्सक लोग आम तौर पर कोलोसिन्थिस दिया करते हैं, परन्तु यह होम्योपैथी नहीं है। यह औषधि शियाटिका को तभी आराम करती है जब जोर से दबाने से दर्द को आराम हो, क्योंकि दबाने से आराम आना इस औषधि का चरित्रगत-लक्षण है। इसके अतिरिक्त गर्म सेक से आराम, पड़े रहने से रोग का बढ़ जाना, हरकत से घटना-ये लक्षण भी आवश्यक हैं। कोलोसिन्थिस का दर्द बड़ी नसों में होता है। कोलोसिन्थिस का शरीर के बायें भाग पर विशेष प्रभाव है। यद्यपि दायें पैर के शियाटिका में भी यह असर करता है।
बाँह का दर्द जिसमें दबाने से आराम मिले – यह औषधि केवल जांघ के शियाटिका के दर्द में ही उपयोग नहीं है, बाँह के दर्द में भी अगर दबाने से और सेक से आराम हो, तो यह उसे ठीक कर देती है। इसका चरित्रगत-लक्षण – दबाने से आराम, गर्म सेक से आराम – इन लक्षणों के आधार पर जर्मन डाक्टर स्टाफर ने एक स्त्री के बाईं कोहनी के दर्द को, जो कोहनी से अंगुलियों तक फैल जाता था, इस औषधि की उच्च-मात्रा से ठीक कर दिया। कोलोसिन्थिस के दर्द प्राय: बिस्तर पर लेटने पर, संभवत: उसकी गर्मी के कारण, ठीक हो जाते हैं।
शियाटिका के दर्द को दूर करने की मुख्य-मुख्य औषधियां
( Sciatica Ka Dawa )
(i) कोलोसिन्थिस – प्राय: बाईं टांग का दर्द जांघ से नीचे पैर तक फैलता है, दबाने और सेकने से या बिस्तर की गर्मी से आराम मिलता है।
(ii) कैलि कार्ब – घुटने तक दाईं जांघ में दर्द, आराम से दर्द बढ़ना, दर्द वाली टांग की तरफ लेटने से भी दर्द बढ़ता है।
(iii) वेलेरियन – डॉ० नैश ने एक गर्भवती स्त्री का तीव्र शियाटिका का रोग इससे इन लक्षणों पर ठीक कर दिया कि रोगिणी जब तक लेटी रहती थी या पैर को स्टूल पर रख कर बैठती थी तब दर्द नहीं होता था, खड़े होने या फर्श पर पैर रखने से दर्द शुरू हो जाता था।
(iv) ब्रायोनिया – दर्द का हरकत से बढ़ना और दर्द वाली टांग की तरफ लेटने से दर्द घटना इसका मुख्य लक्षण है।
(v) मैग फॉस – गर्म सेक से आराम इसमें विशेष रूप से पाया जाता है।
(vi) फाइटोलैक्का – शियाटिका का दर्द जांघ के बाहर की तरफ से नीचे तक फलता है।
(vii) नेफेलियम – शियाटिका (गृध्रसी) की यह उत्तम औषधि है। तेज-दर्द के साथ रोगवाली जगह का सुन्न हो जाना या एक बार दर्द और दूसरी बार सुन्न हो जाना इसका विशेष लक्षण है।
(viii) आर्सेनिक – शियाटिका का दर्द मध्य-रात्रि को बढ़ता है।
(ix) रूटा – पीठ से उठकर कुल्हे से होता हुआ जांघों में चला जाता है।
(4) चेहरे का दर्द – (कोलोसिन्थिस, बेलाडोना, मैग फीस की तुलना) – चेहरे के दर्द में तीन औषधियों को ध्यान में रखना उचित है। वे हैं – कोलोसिन्थिस, बेलाडोना और मैग फॉस। बेलाडोना दाईं तरफ की दवा है कोलोसिन्थिस बाईं तरफ की दवा है; बेलाडोना का दर्द ठंड से होता है, कोलोसिन्थिस का दर्द क्रोध से होता है; बेलाडोना का दर्द तीव्र होता है, चेहरा लाल हो जाता है, सिर गर्म, किसी को छूने नहीं देता, कोलोसिन्थिस का दर्द लहरों में आता है, सेंक से, दबाने से चैन पड़ता है, आराम करने से दर्द बढ़ जाता है और प्राय: मानसिक-उत्तेजना या चिड़चिड़ेपन से प्रारंभ होता है। मैग फॉस का दर्द थोड़ी देर तक होता है, बिजली की तरह नस के मार्ग पर चलता है, गर्म सेक और दबाव से इसमें भी आराम मिलता है।
(5) चक्कर आना जिसमें बाईं तरफ गिरने का डर हो – यह औषधि, जैसा पहले लिखा जा चुका है, शरीर के बायें भाग पर विशेष प्रभाव रखती है। वह चक्कर जिसमें रोगी यह अनुभव करे कि वह बायीं तरफ गिर रहा है, इस औषधि के अन्तर्गत है। एक व्यक्ति जो चक्कर की बीमारी से कई वर्ष पीड़ित रहा था, हर तरह से स्वस्थ था परन्तु बाईं तरफ मुड़कर नहीं देख सकता था क्योंकि बाईं तरफ सिर फेरते ही उसे चक्कर आ जाता था, इस औषधि से ठीक हो गया।
(6) शक्ति तथा प्रकृति – 3, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-प्रकृति क लिये है।)