Foot Corn ka Homeopathic Ilaj
कड़े जूते के दबाव अथवा धातु-दोष के कारण पाँव की अंगुली में अथवा त्वचा के किसी अन्त स्थान पर कठोर गट्टे बन जाते हैं, जिन्हें ‘कॉर्न‘ (Corns) कहा जाता है ।
इस लेख में हम फुट कॉर्न अर्थात गोखरू की होम्योपैथिक दवा की चर्चा करेंगे और पेशेंट के पूरे लक्षण को समझने का प्रयास करेंगे।
14 साल की एक लड़की अपने पिता के साथ फुट कॉर्न अर्थात गोखरू के इलाज के लिए मुझसे संपर्क किया। उसके पिता ने दाहिने पैर में कॉर्न के शिकायत का वर्णन किया, जो दबाने से बढ़ जाता था।
साथ ही लड़की को छींक आने, नाक से पानी आने और सांस फूलने की शिकायत थी, धूल के संपर्क में आने से और ठंडे जूस से उसे एलर्जी थी।
हालाँकि, उसकी सबसे बड़ी समस्या फुट कॉर्न थी जो बेहद दर्द करता था, जिससे उसकी दिन-प्रतिदिन की गतिविधि में बाधा उत्पन्न होती थी।
शारीरिक लक्षण पूछने पर पता लगा कि :- भूख – अच्छी है, दिन में 3 बार अच्छे से खाती है। घृणा – मछली से, इच्छा – अंडा, चिकन, मसालेदार भोजन
प्यास – कम, प्रति दिन 1 लीटर, पसीना – चेहरे, गर्दन और हथेलियों पर अधिक आते हैं। गर्म भोजन करना पसंद है।
अब मानसिक लक्षण देखते हैं :- वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। बचपन से बहुत जिद्दी है। साइकिल चलाना, कराटे, स्केचिंग और अन्य खेलों में रुचि रखती है।
हालाँकि, उसे स्टेज पर जाने से डर लगता है और इसीलिए उसने कभी भी उन खेलों में भाग नहीं लिया।
पढ़ाई में ठीक है और खराब नंबर आने पर निराश हो जाती है। उसके माता-पिता उसके प्रति बहुत सख्त हैं और वह वास्तव में वह उनसे डरती है और डर के मारे वह अपने माता-पिता को संतुष्ट करने के लिए वास्तव में कठिन अध्ययन करती है।
उसके जीवन के फैसले उसके माता-पिता ही लेते हैं। उसे अपने दोस्तों के साथ पार्टियों में जाने की इजाजत नहीं है। वह दोस्तों की कंपनी पसंद करती है लेकिन आसानी से घुलती-मिलती नहीं है।
वह बहुत आसानी से क्रोधित हो जाती है, खासकर तब जब उसके दोस्त उस पर हंस रहे होते हैं।
वह वास्तव में शर्मिंदा होने से डरती है। उसने एक साल से ट्यूशन जाना शुरू किया और अपनी पढ़ाई को लेकर तनाव में रहती है और परीक्षा को लेकर चिंतित भी रहती है।
कॉर्न्स के इस मामले में शारीरिक लक्षणों के साथ मानसिक लक्षण भी लेना जरुरी है उसी हिसाब से टोटलिटी बनेगी।
लक्षणों के नोट करने पर हमें जो प्राप्त हुआ वो थे :-
माता-पिता का डोमिनेटिंग नेचर, खुद में रिज़र्व रहना, आसानी से घुल मिल नहीं पाना, आत्मविश्वास की कमी, स्टेज फियर
दाहिने तलुए पर कॉर्न, दबाने से दर्द बढ़ना, सांस फूलना, छींक आना और पानी जैसा डिस्चार्ज होना, रोगी ग्रीष्म प्रकृति की थी, गर्मी बर्दास्त नहीं होता था।
यहाँ लाइकोपोडियम सभी मानसिक और शारीरिक लक्षण को कवर करता है। ऐसे में मैंने लाइकोपोडियम 200 की 2 बून्द हफ्ते में एक बार लेने की सलाह दी।
लाइकोपोडियम में dominating माता-पिता और दाएं तरफा होने वाली बीमारियों को चिह्नित किया जाता है। लाइकोपोडियम लेने से 4 से 6 महीने में कॉर्न की समस्या पूरी तरह से ठीक हो गई।
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कॉर्न का होम्योपैथिक दवा
कॉर्न में चिकित्सा में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
एण्टिम-कूड 6 – यह कॉर्न को दूर करने की श्रेष्ठ औषध है। जब तक गट्टे दूर न हो जाएँ, तब तक इसकी नित्य एक मात्रा सोकर उठते समय तथा एक मात्रा सोते समय लेनी चाहिए। इसका मुख्य प्रभाव पाँव के तलवों के कॉर्न पर होता है । मोटे, कठोर, अत्यन्त दुखने वाले, शोथ तथा खुरण्डयुक्त गट्टों की बीमारी में इस औषध को दो-तीन मास तक सेवन कराना चाहिए। गट्टों के कारण पाँव की एड़ियाँ में ऐसा दर्द हो कि चला भी न जा सके – इन लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है ।
रैननक्युलस 3, 30 – दुखने वाले कॉर्न तथा कठोर एवं मोटी त्वचा के लिए यह औषध लाभकारी है। हथेली तथा पाँव के तलवों में यदि छालों जैसे घाव फूट पड़ें तो यह औषध उन्हें भी ठीक कर देती है । गट्टों की स्पर्श-असहिष्णुता में विशेष हितकर है।
रेडियम-ब्रोम 12, 30 – यह औषध कॉर्न के अतिरिक्त, कड़े मुँहासे तथा मस्से आदि को दूर करने में अत्युत्तम है ।
थूजा Q, 30 – पाँव के तलवों के गट्टों की यह मुख्य औषध है। इसके मूल-अर्क की कुछ बूंदों को खाने के लिए देना चाहिए तथा कुछ को गट्टों पर लगाना चाहिए। शक्ति-कृत औषध भी सेवन की जाती हैं ।
इग्नेशिया 200 – दर्द करने वाले कॉर्न के लिए लाभकारी है।
फैरम पिकरिक 2x, 3x – नये तथा तकलीफ देने वाले गट्टे तथा गट्टे पीले पड़ गयें हों तथा हाथों पर मस्से उभरे हों तो इसका प्रयोग लाभ करता है ।
नाइट्रिक एसिड – पाँवों के शोथयुक्त ऐसे गट्टे, जो जख्म बन गयें हों अथवा जिन्हें धोते समय रक्तस्राव होता हो, कच्चे मांस जैसी शक्ल के तथा टेढ़े-मेढ़े किनारे वाले गट्टों में यह औषध लाभ करती है। इन लक्षणों वाले मस्सों के लिए भी हितकर है। जलन, पीव तथा जख्म भरे गट्टों में इसका सेवन बहुत लाभप्रद रहता है।
सैलिसिलिक-एसिड 3x – इस औषध को खाते रहने के साथ ही नित्य रात को सोते समय कॉर्न पर लगाते रहने में बहुत लाभ होता है। इस औषध को कॉर्न पर तीन-चार दिन तक लगाते रहना चाहिए ।
विशेष – धातुगत दोष में बार-बार कॉर्न पड़ने पर लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का सेवन करना चाहिए :- सल्फर 30, साइलीशिया 6, फास्फोरस 3, सिपिया 6, लाइकोपोडियम 12, कैल्केरिया-कार्ब 3 तथा एण्टिम-क्रूड 6।
(1) ‘हाइड्रैस्टिस’ मूल-अर्क एक ड्राम को एक औंस जैतून के तेल में मिलाकर रात को सोते समय कॉर्न पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
(2) ‘कैलेण्डुला सक्कस’ को रुई में लगाकर गट्टों पर लगाये रखने से शीघ्र लाभ होता है।
(3) ‘विरेट्रेम-विरि’ मदर-टिंक्चर को भी गट्टे में लगाना हितकर है।
(4) ‘आर्निका’ मूल-अर्क 10 बूंद को एक औंस ग्लीसरीन तथा एक औंस पानी में मिलाकर धावन तैयार करें । रात को सोते समय इस धावन द्वारा कॉर्न को तर रखने से शीघ्र लाभ होता है ।