(1) सांपों के प्रमुख चार विष – होम्योपैथी में डॉ० हेरिंग ने लैकेसिस, क्रोटेलस तथा नेजा नामक सांपों के विष का तथा डॉ० मूर ने इलैप्स कोरोल्लिनस नामक सांप के विष का स्वस्थ व्यक्तियों पर परीक्षण करके उनके लक्षणों का संग्रह किया, जो अनेक रोगों को नष्ट करने में काम आ रहे हैं। हम अन्य विषों का उनके प्रकरण में वर्णन करेंगे, यहां प्रकरणसंगत क्रोटेलस का वर्णन किया जा रहा है। इससे पहले कि हम इस विष का वर्णन करें यह कह देना उचित है कि हनीमैन का कहना था कि कोई भी विष होम्योपैथिक तीसरी शक्ति के बाद विष नहीं रहता, उसका विनाशकारी तत्त्व समाप्त हो जाता है, जीवनप्रद अंश बचा रहता है। तीसरी शक्ति का अर्थ है – 1 बून्द विष का 100 बून्द अल्कोहल में आलोड़न, फिर उसमें से 1 बून्द का 100 बून्द अल्कोहल में आलोड़न, और फिर उसमें से 1 बून्द का 100 बून्द अल्कोहल में आलोड़न – केवल मिलाना नहीं, मिलाकर उसे जोर-जोर से झटके देना। इसके बाद उस विष की जो भी शक्ति बनेगी उसमें विष का विनाशकारी अंश नहीं रहता, स्वास्थ्यप्रद-प्रभाव ही रह जाता है।
(2) सब अंगों से रक्तस्राव तथा रोग की तीव्र गति – इसका सबसे प्रमुख लक्षण है – ‘सब अंगों में रक्तस्राव’। इसका रोगी ‘रक्तस्रावी-धातु’ का होता है। कान, आंख, नाक, फेफड़े, आतें, जरायु – जहां-जहां भी श्लैष्मिक-झिल्ली है सब जगह से रक्तस्राव होता है, या हो सकता है। शरीर के सब मुख-मार्गों से रक्त का बहना। हम पहले भी कह चुके हैं कि औषधि का निर्वाचन करते हुए इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि रोग की गति और औषधि की गति में समानता होना आवश्यक है। कई रोग आँधी की चाल से आते हैं, कई धीमी गति से आते हैं। एकोनाइट का रोग यकायक आता है, इसलिये ठंड लगते ही रात में खांसी से परेशान हो जाना इसका लक्षण है; ब्रायोनिया का रोग धीमी गति से आता है, इसलिये टाइफॉयड में इसकी लक्षणों के मिल जाने पर उपयोगिता है। क्रोटेलस में रोग की गति असाधारण तौर पर तीव्र होती है, दुर्गन्धित फोड़ों में इसकी महान उपयोगिता है। इन फोड़ों का खून विषैला होता है। टाइफॉयड, स्कारलेट फीवर, डिफ्थीरिया आदि में जब काला, सड़ा हुआ, दुर्गन्धयुक्त रुधिर बहने लगता है, तब क्रोटेलस देने का समय होता है।
(3) विषैले जख्म, गैग्रीन, कार्बंकल – विषैले जख्म, गैंग्रीन तथा कार्बंकल में, विषैले दानों में जब खून नीला पड़ जाता है, जब ऐसा फोड़ा हो जाता है जो फोड़े के केन्द्र में, गुंधे हुए आटे जैसा पिलपिला होता है, उसके चारों तरफ कई इंच तक ऐसा शोथ होता है जिसे अंगुली से दबाने से उसमें गड्ढे सा निशान पड़ जाते हैं, जिसमें से ऐसा गाढ़ा काला खून बहता है जो जमता ही नहीं – ऐसे विषैले फोड़ों में यह लाभ करता है। वे कार्बंकल जो गर्दन या पीठ पर होते हैं, शुरू-शुरू में वे एक छोटे पस के दाने के रूप में प्रारंभ होते हैं, चारों तरफ की त्वचा को दबाने से उनमें अंगुली की दाब से गड्ढे के निशान पड़ जाते हैं – ऐसे विषैल फोड़ों के लिये क्रोटेलस, आर्सेनिक, एन्थ्रेसिन, लैकेसिस, सिकेल, गन पाउडर, आदि में से लक्षणानुसार किसी औषधि का निर्वाचन करना होगा। डॉ० कैनन उपचार का अनुभव है कि अगर गन पाउडर दिया जाये, तो उससे दो दिन पहले हिपर सल्फ़ 200 की एक मात्रा देकर गन पाउडर 3x की कुछ दिन तक लगातार दिन में 3 मात्राएं देनी चाहियें।
(4) पेट का अल्सर – पेट में दर्द और उसके साथ रोगी को ऐसा अनुभव होता है मानो उसके पेट में या आंतों में बर्फ का टुकड़ा पड़ा है। पेट कुछ रख नहीं सकता, खून की उल्टियां होने लगती हैं। पेट के ऐसे अल्सर इस दवा से ठीक हुए हैं।
(5) त्वचा का पीलापन – इस औषधि में त्वचा का पीलापन एकदम आ जाता है, आश्चर्यजनक वेग से। आँखें पीली हो जाती हैं, शरीर पीला पड़ जाता है। डॉ० नैश का कहना है कि इस औषधि में त्वचा का पीला पड़ जाना बहुत संभवत: रुधिर से अधिक स्राव के कारण अथवा रुधिर की सड़ांद से होता है, जिगर की खराबी से शायद नहीं होता।
(6) नींद के बाद तकलीफ़ों का बढ़ जाना – सांप के विषों से जितनी दवाएं बनी हैं, सब में यह लक्षण समान है कि रोगी के कष्ट सोकर उठने के बाद बढ़े हुए रहते हैं। सोता भी वह तकलीफ को लेकर है, जागता भी तकलीफ में है। अगर सोते समय उसे दर्द है, तो जागने पर दर्द घटने के स्थान में बढ़ा हुआ ही होता हैं। जितना लम्बा सोता है उतनी ही तकलीफ बढ़ी हुई होती है। इसीलिये रोगी सोने से डरता है। लैकेसिस में भी ये लक्षण मौजूद हैं। लैकेसिस की ‘परीक्षा’ (Proving) 30 शक्ति की मात्रा लेकर हुई थी, इसलिये उसके लक्षणों के विषय में बहुत ज्यादा अनुभव हो चुका है, अन्य विषों की परीक्षा निम्न-शक्ति की मात्रा लेकर हुई है, इसीलिये उनके अनुभव अभी इतने विशद नहीं हुए जितने होने चाहिये। क्रोटेलस में भी नींद के बाद कष्ट बढ़ जाता है।
(7) रोगी बातूनी होता है – इस रोगी की लैकेसिस के रोगी से तुलना की जाय, तो बातूनीपन तो दोनों में पाया जाता है, परन्तु लैकेसिस में ‘उत्कट उत्तेजना’ (Wild Excitement) है, क्रोटेलस में ‘मदहोशपना’ (intoxication) पाया जाता है। लैकेसिस का रोगी किसी को बात करने नहीं देता, स्वयं बात किये जाता है। अगर कोई बात छोड़े तो झट कहता है: हाँ, मैं जानता हूँ, और सम्बद्ध-असम्बद्ध कोई किस्सा छेड़कर बोलता चला जाता है, क्रोटेलस का रोगी भी बात करने का शौकीन है, परन्तु उत्तेजित-व्यक्ति की तरह बात न करके मदहोश-व्यक्ति की तरह लड़खड़ाती आवाज में बात करता है।
(8) रुधिर काला तथा जमनेवाला होता है – इस औषधि में जिस अंग से भी रुधिर बहे, चाहे जरायु से, फेफड़े से, नाक-कान से, जहां से भी बहे, वह काले रंग का होता है और जमता नहीं।
(9) क्रोटेलस तथा लैकसिस की तुलना – अन्य सब बातें जो लिखी गई हैं उनमें अधिकांश में दोनों की समानता है, परन्तु क्रोटेलस का प्रभाव शरीर के दायीं तरफ और लैकेसिस का प्रभाव शरीर के बायीं तरफ होता है।
कुछ स्पेसिफ़िक होम्योपैथिक औषधियां
( homeopathic medicines for various diseases )
(i) क्रोटेलस – ब्लैक-वाटर-फीवर
(ii) बेलाडोना – स्कारलेट फीवर
(iii) आर्सेनिक – टोमेन पायजनिंग
(iv) मर्क कौर – डिसेन्ट्री (खूनी)
(v) लैट्रोडेक्टस – एन्जाइना पैक्टोरिस
(vi) कोका – थकावट
(vii) कॉफ़िया .- दांत का दर्द
(viii) सीपिया – रिश्तेदारों से विराग
(ix) रस टॉस्क, रूटा – कमर का दर्द
(x) आयोडाइड, स्पंजिया – गलगंड
(xi) स्टैफिसैग्रिया – दांत खुरना
(xii) स्पंजिया और हिपर – क्रुप खांसी
(xiii) ड्रॉसेरा – हूपिंग-खांसी
(xiv) थूजा – मस्से
(xv) एकोनाइट – बेचैनी का तेज़ बुखार
(xvi) मेजेरियम – सिर की पपड़ी के नीचे पस
(10) शक्ति – 3, 6, 30, 200