यह औषधि मूत्रनली की श्लैष्मिक झिल्लियों पर विशेष क्रिया करती है। मूत्रनली का होने वाला प्रदर इत्यादि कई बीमारियों में इसका प्रयोग किया जाता है। मूत्रनली प्रदाह रोग में पेशाब हो जाने के बाद काटता हुआ दर्द होने के साथ मूत्रमार्ग में सुकड़ाव आ जाता है। पेशाब के साथ श्लेष्मा निकलना और सुजाक की बीमारी में जब पीले रंग का गाढ़ा पीब जैसा स्राव निकलता है, उस समय इस औषधि से विशेष लाभ होगा। नाक और गले का नजला उसके साथ ही दुर्गन्ध और बलगम आता है और रोगी का स्वर भंग हो जाता है।
सम्बन्ध – कुकुरविटा, कोपेवा, पाइपर, मथिस्टिकम से तुलना कीजिए।
मात्रा – 2 से 3 शक्ति ।