[ तूतिया ] – हैजा के बाद किसी-किसी रोगी को बड़े जोर का उदरशूल ( colic ) हो जाता है, जिससे उसको बड़ी भारी तकलीफ होती है ; यही इस उदरशूल के साथ पेट फूलना, पेट का कड़ापन, जी मिचलाना इत्यादि लक्षण रहें तो ‘कूप्रम सल्फ’ से फायदा होता है, किसी अन्य दवा की जरुरत ही नहीं पड़ती।
खोपड़ी में आग की तरह जलन, खांसी – लगातार आक्षेपिक खाँसी, खांसी रात में बढ़ना ऐसे में कूप्रम सल्फ’ से फायदा होता है।
धातुगत उपदंश – इस रोग में डॉ वार्लिन का कहना है कि उन्होंने ‘मर्क्यूरियस’ इत्यादि दवाओं की अपेक्षा इस दवा के द्वारा उपदंश-रोग में ज्यादा फायदा होते देखा है।
इथिओप्स एण्टीमॉनैलिस ( aethiops ) 1x से 6x शक्ति – यह दवा पूर्व पुरुषों से आये हुए उपदंश रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुई है। ऐसा देखा जाता है कि बहुत से बच्चों के पैदा होने के बाद से ही उनके शरीर में घाव होना आरम्भ हो जाता है। यह पूर्व पुरुषों से आयी हुई बीमारी के सिवा और कुछ नहीं हो सकता। इसमें इथिओप्स फायदा करती है ( थूजा भी इसकी एक उत्तम दवा है। )
आर्सेनिक मेटालिकम ( arsenic metallicum ) – धातुगत उपदंश को फिर से जगाकर यह तुरंत बीमारी को आराम कर देती है। इसके सेवन से पहले तो बीमारी कुछ बढ़ती सी दिखाई देगी, परन्तु पाँच-सात दिन के भीतर ही रोग धीरे-धीरे घटकर प्रायः दो-एक सप्ताह के भीतर ही पूरी तरह आरोग्य हो जाता है।
सिनाबेरिस – गर्मी और सूजाक दोनों ही यानी मिश्र-दोष रहने पर यह फायदा करती है। कैल्केरिया फ्लोर भी पूर्व पुरुषों से आये हुए उपदंश की अच्छी दवा है।
गर्भावस्था में वमन – गर्भावस्था में अधिकांश गर्भवतियों की थोड़ा-बहुत वमन हुआ करता है। इसमें पल्सेटिला, क्रियोजोट, नक्स वोमिका, कार्बोलिक एसिड, सिम्फोरिक कार्पस इत्यादि दवाओं से फायदा होता है। यही इन सब दवाओं से फायदा न हो तो – ‘कुप्रम सल्फ’ से अवश्य ही फायदा होगा।
क्रम – 6 से 30 शक्ति।